तुम्हारी पसंद की साडि़यां
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सुनो तुम्हारी पसंद की
सभी साड़ियां गीली पड़ी है
आज गर तुम अपनी पसंद
की साड़ी में ना देख पाओ
मुझे तो उत्तेजित ना होना
क्योकि इसमें मेरा कोई
कसूर नहीं है ये जो तुम्हारे
नम एहसासो से भरे हर्फ़ है
अक्सर ही चुभती सी दोपहरी
में सोच कर मेरा ही हित अपनी
ठंडी-ठंडी फुहारों से दिन में कई
बार मुझे भिगो कर चले जाते है
और वैसे भी आजकल तो तुम
एक नहीं दो नहीं तीन नहीं बल्कि
चार-चार पन्नो पर उतार रहे हो
अपनी नम-नम एहसासों को
इसलिए बदलनी पड़ी मुझे आज
तुम्हारी पसंद की चार-चार साड़ियां
और कल की अब तक सूखी नहीं है
इसलिए आठ साड़ियां गीली पड़ी है
तुम्हारी पसंद की तो समझकर मेरी
परेशानी आज उत्तेजित ना होना तुम !
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