Saturday 6 October 2018

ये तुम्हारी जिम्मेदारी थी !

ये तुम्हारी जिम्मेदारी थी !
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वो सिर्फ तुम्हारी 
ही ऑंखें थी जिसने 
भेद दिया था मेरी 
आत्मा पर लगे उस 
बड़े से दरवाज़े को   
जिस पर बड़े-बड़े 
अक्षरों में लिखा था
अंदर आना सख्त 
मना है पर तुम्हारी 
आँखों ने भेद ही दिया 
था उस दरवाज़े को तो
फिर ये तुम्हारी जिम्मेदारी 
थी की उस दिन के बाद
मैं कभी अकेला ना रहु 
पर फिर तुमने ऐसा क्यों 
किया की दरवाज़ा भी खोला
अंदर भी आयी पर जाते वक़्त 
दरवाज़ा खुला छोड़ कर चली गयी 
कोई जिम्मेदार ऐसे कैसे अपने घर 
के दरवाज़े किसी के लिए भी खुला 
छोड़ कर जा सकती है बोलो !

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !