Tuesday, 23 October 2018

समंदर उतर आता है आँखों में



समंदर उतर आता है आँखों में
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कई बार तो समंदर मेरी आँखों 
में उतर आता है जब जब प्रश्न 
करती है मुझसे मेरी ही रूह "राम"
क्या कभी होंगे उसके वादे पुरे?
फिर भी दरकिनार करते हुए 
उसके प्रश्न इकरार करता हु 
तुम्हारे किये हुए हुए वादों पर 
और आज उन्ही वादों के बोझ 
तले दबा जा रहा हु मैं लेकिन 
तुम इरादतन नित्य नए वादे 
किये जा रही हो बिना समझने
की कोशिश किये की अधूरे वादों 
के बोझ तले दबा मैं तन्हाईओं में
घिरा जा रहा हु परिणाम स्वरुप 
उन्ही तन्हाईओं में इस गूंगी दीवारों 
से अकेले में बात करने लगता हु 
बातें भी वो जिसमे एक सिर्फ तुम 
होती हो शामिल और ठीक ऐसे ही
वक़्त जब दीवारों से प्रतिउत्तर 
नहीं मिलता तब मेरी ही रूह 
करती है मुझसे प्रश्न "राम"
क्या कभी होंगे उसके वादे 
पुरे और सुनते ही ये प्रश्न 
अपनी रूह से समंदर उतर 
आता है मेरी इन आँखों में !

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !