Saturday 13 October 2018

मेरी ही इक्षाओं के पेड़

मेरी ही इक्षाओं के पेड़
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तुमसे मिलने के बाद
उग आयें हैं मुझ में
मेरी ही इक्षाओं के 
पेड़ जिन पर खिलने 
भी लगे है मेरे ख्वाबो 
के फूल जिन्हे मैं सूँघ 
नहीं पाता और ना ही 
सही सही जान पाता हु 
उन फूलों की इक्षाओं  
को ना उनकी सुगंध के 
असर को समझ पाता हु 
हां पर इतना कह सकता हु 
उन फूलों को देखकर की 
सपनों के फूल चमकीले हैं 
बहुत जो रौशनी देते हैं दूर 
दूर तक जब मैं अपने मन 
के रास्ते पर चलता हु तब 
सुनो ना मैं तुम्हे भी देना 
चाहता हूँ अँजुरी भरकर 
मेरी इक्षाओं ये फूल तुम्हें
तुम्हारे सपनों के लिये पर 
सुनो कल जब ये सूख जाएँ 
तो बोना तुम इन्हें अपने मन 
की उर्वरा मिटटी में और फिर 
उगाना अपनी इच्छाओं के पेड़
सपनों के फूल जो तुम्हे रोशनी 
देंगे तब जब तुम चलोगी अपने 
मन की राह पर अकेली और उनकी 
सुगंध तुम्हे मेरी उपस्थिति दर्ज कराएगी !

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प्रेम !!

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