फल-फूल रही है दानवता
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मानवता को खा-खा कर
हर घर-घर में फल-फूल
रही है दानवता...
जन्म से लेकर मरण तक
के पग-पग पर देखो आज
दानवता हो रही है काबिज़
तभी तो देखो दानवता को
देख कराह रही है मानवता
मानवता को खा-खा कर
हर घर-घर में फल-फूल
रही है दानवता...
जन्म लेगा कौन ये भी अब
दानवता है निर्धारित कर रही
तभी तो देखो दानवता को
देख कराह रही है मानवता
मानवता को खा-खा कर
हर घर-घर में फल-फूल
रही है दानवता...
तभी तो देखो जरूरतों को
भी अब अपने -अपने हिसाब
से ही तौल रही है दानवता
तभी तो देखो दानवता को
देख कराह रही है मानवता
मानवता को खा-खा कर
हर घर-घर में फल-फूल
रही है दानवता...
तभी तो जंहा है लड़के ही
लड़के वंहा उनकी कलाई
की जरुरत बन रही है अब
वो अजन्मी लड़कियां जंहा
लड़कियां ही लड़कियां है
वंहा मोक्ष का द्वार बन
रहे है तकदीर में ना लिखे
वो अस्वाभाविक लड़के
तभी तो देखो दानवता को
देख कराह रही है मानवता
मानवता को खा-खा कर
हर घर-घर में फल-फूल
रही है दानवता...
तभी तो गुरुकुलों ने सकल
अख्तियार कर ली है व्यवसायिक
घरानो की जंहा संस्कारों की जगह
छल और प्रपंच है पढ़ाये जाते कैसे
एक सितारा लगाकर तुम्हे लोगो
को है ठगना ये है वंहा पढ़ाया जा रहा
तभी तो देखो दानवता को
देख कराह रही है मानवता
मानवता को खा-खा कर
हर घर-घर में फल-फूल
रही है दानवता...
शादियाँ जंहा सात जन्मो का साथ
देती थी आज वही दो देह का मिलन
भी नहीं अपितु प्रयोगात्मक सम्बन्ध
बनाने का जरिया मात्र बनकर रह रही है
तभी तो देखो दानवता को
देख कराह रही है मानवता
मानवता को खा-खा कर
हर घर-घर में फल-फूल
रही है दानवता...
बुजुर्ग जंहा नौनिहालों को
सिखलाते थे चंदा को कहना
मामा और कहना सूरज दादा है
अब कंहा और किसके नसीब में
है बचा लिखा अपने दादा-दादी
और नाना नानी की गोद में अपना
सारा बचपन है जीना बताओ जरा
तभी तो देखो दानवता को
देख कराह रही है मानवता !
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