Monday, 30 July 2018

मन का उपवन


मन का उपवन
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ओ रज्ज 
तुम ना होतीं तो 
कहां से होता ये प्रखर रे
ओ रज्ज 
तू ही भोग रे 
प्रखर की चित्त 
चोर सी चितवन
उसके मन का उपवन
उसकी आँखों की कोरों में सजकर अपनी चमक 
उसमे चमकाते रखना 
अपनी ख़ुशबू से उसे 
बस महकाती रहना
अपने यौवन से उसे 
रिझाती रहना और 
रखना सदा तेरी 
हरी-हरी कोख रे 
ओ रज्ज 
तुम्‍हारे ही कारण 
जीवन में प्रकट 
हुआ है प्रेम रे 
तुम्‍हारे ही कारण 
सम्भव हुई ये 
रसना युक्त रचना रे
ओ रज्ज
तुम ना होतीं तो 
कहां से होता ये प्रखर रे !
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Sunday, 29 July 2018

तड़पने की सजा


तड़पने की सजा

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जब तुम्हे पता है 
तुम्हारी एक दृष्टि 
सारी पीड़ा हर लेती है 
मेरी तो क्यों अब इन 
मेरे नैंनो को तुम्हारी ...
राह तकने की सज़ा 
क्यों दिए जाते हो रोज? 
जितनी भीगी प्रेम 
में अब तक मैं तुम्हारे 
उतनी ही अब अपनी प्यास 
क्यों दिए जाते हो रोज? 
जब तुम्हे पता है की रोज 
ढलती शाम को मैं करता हु 
इंतज़ार फिर यु मुझे 
अकेले तड़पने की सजा 
क्यों दिए जाते हो रोज?
मेरे नैंनो को ही क्यों तुम्हारी ...
राह तकने की आदत 
लगा जाते हो रोज?
जब तुम्हे पता है की 
तुम्हारी एक दृष्टि मेरी 
सारी पीड़ा हर लेती है 
फिर क्यों वो पीड़ा 
नही हर जाते हो तुम ?
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Saturday, 28 July 2018

तुम्हे मेरी याद नहीं आती !

तुम्हे मेरी याद नहीं आती !
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सुनो .... 
मुझे तो हर पल बस  
तुम्हारी याद आती है; 
मेरी ही साँसों के चलने पर 
मेरे ही दिल के मचलने पर
मेरे ही आंगन में बेमौसम 
बारिश के बरसने पर
मेरी ही छत के आकाश 
पर चंदा के चमकने पर 
तो कभी मेरी ही आँखों 
के सामने सूरज के ढलने पर 
तो कभी शब के अंधेरों पर
कभी दिन के सवेरों पर
कभी लोगो के मेले पर
कभी तन्हा अकेले होने पर
तुम्हारी बस तुम्हारी 
याद आती है और तब 
मैं बैचैन हो तुम्हे पुकारता हु 
तुम ये बताओ इतना सब 
होते हुए देखने पर भी क्या 
तुम्हे मेरी याद नहीं आती !

Friday, 27 July 2018

घर की दहलीज़


घर की दहलीज़
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अब तक तो अपनी स्मृतियों में ले ही जाता आया हु 
मैं तुम्हे अपने साथ अपने घर
इस विश्वास के साथ की 
एक दिन तुम्हे जब याद हो जायेगा 
मेरे घर का ये रास्ता 
उस दिन तुम स्वयं आओगी 
साथ लेकर अपनी आँखों में वही चमक
जिस चमक के साथ दिया था 
तुमने अपना हाथ मेरे हाथो में इस वचन के साथ की आने वाले 
हर पुनर्जन्म तुम ही बनोगी 
मेरी जीवन संगिनी और मुझे मानोगी 
इस काबिल की मैं तुम्हारे अपनेपन के 
अंतरंग स्पर्श के चिन्हो को 
तरुणाई के साथ रख सकूंगा 
सदा-सदा के लिए अपने घर की दहलीज़ 
ही नहीं बल्कि अपने ह्रदय के अंदर !

Thursday, 26 July 2018

प्रेम आंकलन नहीं करता


प्रेम आंकलन नहीं करता
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प्रेम का जीवन में प्रकट होना आसान 
हो भी सकता है पर 
उस प्रेम को जीवन 
में थामे रखना उतना 
ही मुश्किल क्योंकि जब
प्रश्न उठते है उस प्रेम पर 
तब अक्सर लोग उससे 
होने वाले फायदे और 
नुकसान का आंकलन 
करने लग जाते है और 
यही आंकलन अक्सर
लोगों को कहता है अपने
पांव पीछे खींचने को 
जबकि इतिहास गवाह है 
प्रेम को आता ही नहीं आंकलन करना प्रेम तो 
उन खड़े हुए प्रश्न का जवाब 
स्वयं देता है बिना कुछ सोचे 
उसी दृढ़ता से जिस दृढ़ता से 
उसने किया होता है स्वीकार 
अपने प्रकट हुए प्रेम को !

Wednesday, 25 July 2018

साज़िश-ए-मोहब्बत



साज़िश-ए-मोहब्बत   
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मैं जो एक जलता चिराग था 
मेरे करीब आने के पहले उसने 
बड़े करीब से जाना था मुझे 
कितनी पुरवैया कितनी पछुआ 
और कितनी मंद बयारें आयी और 
थक-हार कर लौट गयी साथ लेकर
अपने यौवन का गुरुर पर जिस जिस 
का टुटा था गुरुर वो कंहा चुप बैठने 
वाली थी उन्होंने फिर रची साज़िश-ए-मोहब्बत 
मनाया सबने मिलकर तुफानो और उफानो 
को वो भी आये बड़ी तैयारी से और उन्हें भी  
लौटना पड़ा खाली हाथ पर मैं जो एक जलता 
चिराग था वो वैसे ही जलता रहा अब बारी थी 
उसकी जिसने मेरे करीब आने के पहले मुझे 
पहचाना था बड़े करीब से वो आयी छायी और 
बन उन सभी पुरवैया,पछुआ व तुफानो की बून्द 
बैठ गयी जलते चिराग की लौ पर और मैं चाहकर 
भी बुझने के अलावा कुछ ना कर सका !   

Tuesday, 24 July 2018

गवाह बनना चाहता हु



गवाह बनना चाहता हु  

मैं चाहता हु बनना गवाह 
हमारे उन्मुक्त देह-संगम का 
मैं चाहता हु बनना गवाह 
उस परिवर्तन का जिसमे 
परिवर्तित होते देख सकू 
एक हिरणी को सिंघनी होते  
मैं चाहता हु बनना गवाह
प्रथम छुवन के स्पंदन का 
जो अभिव्यक्त कर सके 
तुम्हारी इंतज़ार करती 
धड़कनो की गति को  
मैं चाहता हु बनना गवाह
तुम्हारी तपती देह की से 
उठती उस तपन का जो 
पिघला दे लौह स्वरुप मेरे 
मैं को अपनी उस तपन से  
मैं चाहता हु बनना गवाह 
तुम्हारे होठों को थिरक थिरक 
कर यु बार बार लरजने को 
मैं चाहता हु बनना गवाह
तुम्हारी उष्ण देह से निकलती  
करहो को अपने कानो से सुनकर 
अपनी आँखों से देख सकू 
ठन्डे होते उसी तुम्हारे उष्ण 
देह को जिससे निकले तृप्ति 
का वो कम्पन जिसे पाकर 
तुम हो जाओ पूर्ण  !

Monday, 23 July 2018

चीड़ों की चहचहाहट


चीड़ों की चहचहाहट
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सुबह के कोहरे में 

भले ही छुपा लो तुम 
मेरी पहचान सबसे 
और छुपा लो मेरी 
उभरी आकृति अपनी 
आँखों में से भी ना 
मिलाकर अपने घर
वालों से भी अपनी 
दर्पण से आँखें लेकिन 
ये जो बिलकुल महीन सी 
खून से खींची लकीर 
मौजूद है तुम्हारी हथेली 
के बिलकुल बायीं और 
तुम्हारी मुठी से बाहर 
निकली हुई उस पर लिखा 
मेरा नाम तुम चाह कर भी 
नहीं छुपा सकती अब किसी 
से भी लेकिन सुनो गर तुम 
चाहो जाहिर करना मेरी पहचान
अपने घर वालों के सामने तो 
तो ढूंढने मत निकलना कंही 
तुम तो उन्हें दिखा देना सुबह 
उन चीड़ों की चहचहाट जो अपनी 
अपनी चिड़ियों के आगे पीछे उड़ते फिरते 
अपनी चहचहाहट से खुशनुमा कर 
देते है अक्सर खुले घरों के बरामदे को भी !

Sunday, 22 July 2018

मेरी चाहत है

मेरी चाहत है ➖➖➖➖➖


 चाहत है 

तुम्हारी बाँहों की गोलाईयों में सोते हुए ज़िन्दगी के दिए
तमाम दर्दों से निज़ाद पाने की;
मेरी चाहत है
मौत की घनी ख़ामोशी को भी 
तुम्हारे ऊपर लिखी तमाम
कवितायेँ सुनाने की ; 
मेरी चाहत है
तुम्हारी इन्ही गोद में सोकर 
उस छोटे से राम को एक बार 
फिर से जीते हुए देखने की 
मेरी चाहत है
तुम्हे उस माँ के सामने गले 
लगाने की जिनके लिए तुम 
आज तक नहीं निभा पायी हो 
अपने वो वादे जो तुमने किये थे
मुझसे अपने प्रेम की दुहाई देते हुए;
मेरी चाहत है
बस सिर्फ चाहत है और ये तो तुम्हे
भी पता है चाहतें पूरी हो ये भी तो 
कोई जरुरी नहीं और वैसे भी ये मेरी 
अकेले की चाहत है तुम्हारी तो नहीं !

Saturday, 21 July 2018

आज भी वैसा ही हु मैं तुम्हारे लिए

आज भी वैसा ही हु मैं तुम्हारे लिए  
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हा मैंने सुना था खुदा के सिवा 
एक सा कोई नहीं रहता यंहा;
एक से नहीं रहते हालात भी यंहा 
एक से नहीं रहते ताल्लुकात भी यंहा  
एक से नहीं रहते सारे सवालात भी यंहा 
एक से नहीं रहते सारे जवाबात भी यंहा 
एक से नहीं रहते सारे तजुर्बात भी यंहा 
एक से नहीं रहते सारे दिन-रात भी यंहा 
हा ठीक ही सुना था मैंने एक खुदा के सिवा 
एक सा कोई नहीं रहता यंहा;
तो फिर मैं क्यों हु आज भी  
ठीक वैसा ही जैसा था उस पहले दिन  
जिस दिन मिला था तुमसे मैं पहली बार  
तो फिर तुम ही बताओ ना ऐसा क्यों है 
जब आज भी दो घडी तुम नहीं दिखती
मुझे तो मन मेरा क्यों बैचैन हो उठता है 
जब एक सा कुछ नहीं रहता यंहा तो फिर 
तुम्हारे लिए क्यों हु मैं
उस पहले दिन सा आज भी 
जिस पहले दिन मिला था मैं तुमसे  ...!  

Friday, 20 July 2018

साँझ की लाली



साँझ की लाली
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जिस दिन चाहो तुम आना 
सदा के लिए मेरे पास बस 
मुझे एक आवाज़ दे देना 
मैं लौट आऊंगा उन सपनो 
की दुनिया से निकलकर 
आज के वर्तमान में और 
तुम्हारे साथ-साथ साँझ 
की लाली भी उतर आएगी 
मेरे आंगन में जिसे देखकर 
वक़्त भी कुछ पलों के लिए 
ठिठक जायेगा वंही और ठीक 
उसी पल तुम्हे साँझ की सिन्दूरी
आभा छूने उतर रही होगी चुपचाप
तब मैं तुम्हारे सुर्ख होंठो सेथोड़ी 
सी लाली चुराकर अपने घर के 
आंगन में बिखेर दूंगा जो तुम्हारे 
पांव को अलता से रंग में रंग देंगे 
और उस घर के चप्पे-चप्पे पर 
तुम्हारे पैरो के शुभ निशान अंकित 
हो जायेंगे और ये सब होते देख 
तुम्हारे होंठो पर वही चीर परिचित 
हंसी बिखर जाएगी और उस हंसी को 
सुनकर मैं भी लौट आऊंगा तुम्हारे 
दिखाए उन सपनो में से जिसमे 
इसी कल्पना को संजोकर रखा था मैंने
आज तक की एक दिन तुम आओगी 
मेरे पास बची अपनी ज़िन्दगी जीने के लिए !   

Thursday, 19 July 2018

नया जीवन रचे




नया जीवन रचे 
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सुनो तुम मेरे साथ
चलना एक नया जीवन 
रचने जिस सुबह रात का 
किंवाड़ खटखटाने खुद 
सुहाती हुई सूरज की 
किरणे आए तब वंही  
कंही पेड़ों की छांव में 
छुपकर बैठी होगी 
चाँद की चांदनी जो  
सूरज की सुहाती किरणों 
को देखकर मुस्कुराये 
तब सुनो ओ स्याह रात 
की स्याही तुम मेरे घर 
ही ठहर जाना क्योंकि 
उस रात मैं उसी स्याही 
से अपनी प्रेमा के साथ 
रचूंगा एक नया जीवन 
जिसमे होंगे सच वो सभी 
सपने जिन्होंने उम्र के चालीस 
सावन आँखों में ही है निकाले !

Wednesday, 18 July 2018

बिलकुल पागल हो तुम



बिलकुल पागल हो तुम 

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वो चाँद की रात और 
तुम्हारी और मेरी बात
तुम कुछ भी कह रही थी 
जैसी मंद-मंद ठंडी हवा 
बह रही थी और मैं 
वो सब लिख रहा था 
जो तुम कही जा रही थी 
सच कहो तो कोशिश कर रहा था 
तुमको अपने शब्दों में पिरोने की 
जिस बात पर तुम बीच-बीच में 
नाराज़ भी हो रही थी की क्यों 
बांध रहा हु तुम्हे अपने शब्दों में 
और मैं पलट कर जवाब देता तुम्हे 
की ये कोशिश है मेरी तुम्हे 
अपने पास संजो कर रखने की 
और इस बात पर तुम हंसकर 
कह देती हो की बिलकुल 
पागल हो तुम "राम" 
और मैं भी बिना समय
गंवाए सहर्ष स्वीकार कर लेता हु अपना ये नाम "पागल"क्यों की 
ये वो ही पागल था जिसके पागलपन ने मुझे कभी तुमसे एक 
पल के लिए भी आज तक अलग नहीं होने दिया है क्यों सही कहा ना मैंने !!      

Tuesday, 17 July 2018

शोहरत नवाज़ने आ जाओ







शोहरत नवाज़ने आ जाओ 

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अच्छा बताओ मेरे 

चीर प्रतीक्षित इश्क़ को 
अपनी रूह में पनाह देने 
ही तो आयी हो ना तुम;
अच्छा बताओ मेरे
जीवन की तमाम अमावस 
वाली रात को पूनम करने 
ही तो आयी हो ना तुम;
मेरे विश्वास को अपने
समर्पण से ईश करने 
ही तो आयी हो ना तुम;
मेरे नाम का सिन्दूर 
अपनी सुनी मांग में सजा कर मेरी बेनाम 
सी हैसियत को शोहरत 
से नवाज़ने की ख्वाहिश 
ही तो लेकर आयी हो ना तुम;
बोलो ना तुम मेरे ही 
चीर प्रतीक्षित इश्क़ को 
अपनी रूह में पनाह देने 
ही तो आयी हो ना !!

Monday, 16 July 2018

आँखों का दिव्यांग



आँखों का दिव्यांग
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बड़े-बड़े कवियों और
शायरों को कहते सुना 
की प्रेम इंसान को आँखों से कर देता है दिव्यांग ;
तो कोई मुझे ये समझाओ 
की प्रेम में पड़े इंसान को 
इंद्रधनुष के सातों रंग कैसे 
दिख जाते है;गर वो प्रेम में पड़ हो चूका या चुकी होती है 
आँखों से दिव्यांग ;गर कोई
आज नहीं समझा सका मुझे
तो फिर कम से कम मेरी ये
कविता पढ़ने वालो तुम आज से 
ये ना मानना की प्रेम में पड़ कोई
भी इंसान हो जाता है आँखों से दिव्यांग
बल्कि आज से ये मन्ना की ये दुनिया 
जब प्रेम में पड़े उस इंसान को देखती है 
करते नज़र अंदाज़ सभी बहुमूल्य चीज़ों को 
या सबसे सुन्दर चीज़ों को या सबसे कीमती 
समय को तब उन्हें लगता है ऐसा तो कोई 
आँखों का दिव्यांग ही कर सकता है पर 
प्रेम में पड़ चुके इंसान के लिए उस प्रेम 
के अलावा हर चीज़ हो जाती है नगण्य 

Sunday, 15 July 2018

मणकों की माला

मनको की माला

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मन के मनको की माला 
गूँथ रहा हु कुछ जो मणकेँ 
पहले से पिरोये मिले मुझे  
इस मन की माला में वे वो है  
जो मिले रक्त संपत्ति से 
और कुछ मनकेँ जो बीज 
डाल कर उगाये थे खुद मैंने 
मुझसे मिलते जुलते पाने
की चाहत में उनको पिरो  
रहा हु इस मनको की माला
में अब एक सुमेरु बाकी है 
जिसे प्राप्त किया था मैंने   
अपनी उत्कृष्ट प्रार्थनाओ से  
उसको पिरो इस मनको की 
माला में गांठ लगा दू जिससे  
पूर्ण हो ये मनको की माला  
ताकि उसके बाद किसी और 
मनको या मणियों को जगह 
ही ना मिले इस मेरी मन की 
मनकों की माला में !

Saturday, 14 July 2018

बाँहों के दरमियाँ

बाँहों के दरमियाँ
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उसने कहा क्यों इतनी ज़िद्द करते हो तुम 
मुझे अपने पास बुलाने की क्या प्रेम की 
तपीश दूर रहकर नहीं पनपती ?अब तुम्हे 
कैसे समझाऊ की एहसासो को सहेज कर 
गुलाबो में रखा तो जा सकता है लेकिन वो  
एहसास तब तक ही महकेंगे उन गुलाबो में
जब तक उसमे ज़िंदा रहेगी उसकी खुसबू  
फिर जब वो सुख जायेंगे तो एहसास भी 
तड़प कर दम तोड़ देंगे उन्ही मुरझाते 
फूलो में जिन्हे आखिर एक दिन उठा कर 
फेंक दिया जायेगा कचरे के एक डब्बे में 
और जब एक दिन तुम आकर मांगोगी 
उन गुलाबो में लपेट कर रखे मेरे एहसासो 
को तो कुछ कहने की बजाय मेरे ये असमय 
बड़बड़ाते रहने वाले होंठ बेबस हो सुख कर 
तुम्हे चिल्ला-चिल्ला कर पूछेंगे की आज 
क्यों चाहती हो पास आकर महसूसना मेरे उन  
दम तोड़ चुके एहसासो को और अब जब आ ही   
चुकी हो तुम तो ये बताओ की तुमने जो कहा था 
प्रेम की तपीश दूर रहकर भी पनपती है तो फिर 
बाँहों के दरमियाँ आखिर पनपता क्या है? 

Friday, 13 July 2018

भिक्षुक सा अँधेरा

भिक्षुक सा अँधेरा 
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नहीं कटती रातें मुझसे 
तुम्हारे बिन जबकि 
देखता हु अक्सर ठंडी 
रातों में नग्न अँधेरा 
एक भिक्षुक की भांति 
इधर-उधर तलाशता है 
गर्माहट कभी बुझते हुए 
दीपक की रोशनी में तो 
कभी काँपते हुए पेड़ों के 
पत्तों में तो कभी खोजता है 
सर छुपाने का आश्रय 
टूटे और वीरान खंडहरों में  
और कभी कभी दिलो में 
उठती सुगबुगाहट के साथ 
गुजार देता है अपनी 
पूरी की पूरी ज़िन्दगी
भी यु बेबस सा थरथराते 
ठण्ड के साये में बनकर 
याचक वो भी वस्त्रो से हीन 
लेकिन अपनी रातें तो फिर 
भी वो काट ही लेता है 
फिर क्यों नहीं कटती 
मुझसे ये रातें तुम्हारे बिन

Thursday, 12 July 2018

मेरा अकेलापन

 मेरा अकेलापन
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नज़ारों को नज़र से 
कहते सुना था नयन 
से बड़ी चीज़ कोई नहीं ;
पर माना मैंने तब जब  
तुम्हारे नयन ने भेद दिया था
मेरी रूह के उस दरवाज़े को 
जिस पर लिखा था बड़े-बड़े
अक्षरों में अंदर आना सख्त 
मना है; पर फिर भी जब भेद 
ही दिया तुमने उस सख्त 
दरवाज़े को तो फिर ये 
तुम्हारी जिम्मेदारी थी की
तुम्हारे अंदर आने के बाद 
मैं ना रहू फिर कभी अकेला
पर ऐसा क्यों किया तुमने 
की दरवाज़ा भेदा भी अंदर
आयी भी पर मेरा अकेलापन
क्यों दूर नहीं कर पायी तुम ?      

Wednesday, 11 July 2018

प्रेम क्षुधा



प्रेम क्षुधा
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तुम्हारे प्रेम क्षुधा से 
व्याकुल मेरा हृदय 
तृप्ति की चाह सिर्फ 
एक तुमसे रखता है ; 
मेरे मन में जबसे तुम 
हुई हो शामिल ये दिल 
जिद्द पर अड़ा है बनने 
को तुम्हारे हवन कुंड 
की समिधा जो हर 
एक आहुति के साथ 
धधक कर पूर्ण होना
चाहता है सुनते ही स्वाहा 
ताकि तुझमे मिलकर   
प्रेम की समिधा सा 
वो हो जाए पूर्ण 
और मेरे मन की  
व्याकुल क्षुधा को 
यज्ञ की पूर्णाहुति के 
साथ चीर शांति मिले  ! 

Tuesday, 10 July 2018

प्रीत का धागा




प्रीत का धागा
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मुझे सिर्फ इतना बता  
दे तू की मेरी प्रीत का  
धागा ना जाने कितनी 
ही मौतों से लड़कर भी   
तुझसे लिपटा रहता है 
और मेरे अस्तित्व का  
छोटा सा हिस्सा उस 
मंदिर में जलती "धुप"   
की तरह स्नेह:स्नेह:
जलता रहता है और  
उसी मंदिर में रखी 
पत्थर की देवी की 
मूर्ति के समान तुम 
ये सब चुपचाप होते  
देखती रहती हो जैसे 
उस जन्म का बदला 
इस जन्म में ले रही हो  
जैसे "राम" ने अहिल्या  
को छूने में लगा दिए थे 
कई वर्ष ठीक वैसे ही तुम 
इस जन्म में इस "राम" को 
रखना चाहती हो उतने ही 
वर्ष खुद से दूर ?

Monday, 9 July 2018

सच्ची लग्न और निष्ठां



सच्ची लग्न और निष्ठां
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जैसे मेरा दिल तुम्हारे लिए 
धड़कता है तुम्हारा दिल भी 
तो धड़कता होगा मेरे लिए 
पर ये तो बताओ की क्या  
कोई जुबान है तुम्हारे मुख 
में जिससे करती हो तुम भी 
मेरे नाम का उच्चारण ;
कहते है ढूंढो सच्चे लग्न 
और निष्ठा से तो भगवान 
भी मिल जाते है इंसान को 
शर्त एक होती है की भावो 
में धीरज के साथ-साथ 
होना चाहिए सच्चापन भी  
यही सोच कर तो तुम्हे बुलाने
अपने पास बनाये रखा धीरज 
और अपने सच्चे लग्न और 
निष्ठा को रखा कायम पर 
पांच साल बीत जाने के बाद 
भी तुम वंही हो जहा थी फिर 
क्या कमी है मेरे भावो में जो 
तुम से भी ज्यादा कठोर हो 
गयी हो मेरे लिए आज !

प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !