Saturday, 30 November 2019

चले चलो !


चले चलो !

तंहा मेरे कदम अब उठते नहीं , 
साथ तुम मेरे अब चले चलो ; 
नींद भी मुझे अब आ रही है ,
ख़्वाब मेरे तुम अब पलो पलो ;
महबूबा मेरी बहुत हसीन है ,
चाँद तुम अब जलो जलो ;
हो वो अब मेरे इतने करीब , 
बर्फ तुम अब गलो गलो ;
देखता हूँ अब मैं एक तुम्हे , 
प्रीत तुम मेरी बढ़ी चलो ;
जुड़ा अब कभी ना होंगे हम ,
ए वक़्त तुम अब टलो टलो ;
दूरियां अब सिमटने वाली है ,
हसरतों तुम अब फूलो फलो ;
प्रेम दीप 'प्रखर' अब जला रहा ; 
प्रीत 'रज्ज" मेरी अब मिलो मिलो !   

Friday, 29 November 2019

ऐ ज़िन्दगी !


ऐ ज़िन्दगी !

ऐ ज़िन्दगी सुन 
इतनी सी गुज़ारिश 
तू मेरी ! 

अब कहीं दूर ना जा 
कर दे रोशन इन सियाह 
रातों को तू मेरी !

और कर दे शीतल से 
ठन्डे मेरे तपते दिनों को 
तू मेरे ! 

फिर आकर पास मेरे 
ले ले अपने आगोश 
के घेरे में तू मुझे !  

और ले चल इस दुनिया 
से बिलकुल दूर तू 
मुझे ! 

ऐ ज़िन्दगी आ मेरी 
आँखों में बस जा और 
अपनी आँखों में बसा ले 
फिर से तू मुझे !

मुझसे दूर ना जाना 
इतनी सी गुज़ारिश है
तुझ से मेरी !

Thursday, 28 November 2019

तृप्ति !


तृप्ति !

तुम्हारी तृप्ति मेरी ,
अभिव्यक्ति में छुपी है ;
मेरी तृप्ति एक तुम्हारे ,
ही सानिध्य में छुपी है ;
तुम्हे तुम्हारी तृप्ति सुबह , 
आंख खोलते ही मिल जाती है ;
मेरी तृप्ति रातों में करवट ,
बदल-बदल कर जगती है ; 
तुम्हे तुम्हारी तृप्ति मेरी ,
महसूसियत से मिलती है ; 
मेरी तृप्ति तुम्हारे पीछे-पीछे ,
दौड़ती भागती बैरंग लौट आती है ; 
तुम्हारी तृप्ति तुम्हारे चारों ओर ,
फैले शोर के निचे दब जाती है ;  
मेरी तृप्ति तुम्हारी दहलीज़ पर ,
तुम्हारा दरवाज़ा खटखटाती है ;
लेकिन मैंने तो कहीं पढ़ा है ,  
तृप्ति तो केवल तृप्ति होती है ;
फिर क्यों तुम्हारी तृप्ति और मेरी 
तृप्ति अलग अलग जान पड़ती है !

Wednesday, 27 November 2019

खारी-खारी बूँदें !


खारी-खारी बूँदें ! 

तुम्हारे छूने भर से नदी बन 
तुम्हारे ही रगों में बहने को 
आतुर हो उठती हूँ ;

बदले में कुछ खारी-खारी बूंदें  
मेरी शुष्क हथेलियों पर तुम  
रख देते हो ; 

वो बूंदें मेरी इन हथेलिओं पर
चमकती हैं तब तक जब तक 
तुम मेरे साथ होते हो ;

तुम्हारे दूर जाते ही खारी-खारी  
बूंदें भी जैसे लुप्त हो जाती है 
ठीक उस तरह ;

जैसे सूरज के अवसान पर 
चारों ओर छायी मृगमरीचिका 
लुप्त हो जाती है ;

तब मेरी आकंठ प्यास को 
तुम्हारी वो कुछ खारी-खारी 
बूंदें भी अमूल्य लगने लगती है !

Tuesday, 26 November 2019

एहसास !


एहसास ! 

मेरे खुश होने के लिए
एक बस तुम्हारा यूँ  
मेरे पास होना काफी है !

तुम्हारा यूँ मेरे पास होना 
एहसास कई ख्वाहिशों  
के पूरा होने सा होता है !

तुम्हारा यूँ मेरे पास होना
अमावस की रात में भी जैसे 
चाँद के दिख जाने सा एहसास 
देता है !

तुम्हारा यूँ मेरे पास होना
यूँ बरबस ही मेरे लबों को 
मुस्कुराने की वजह दे 
जाता है !
  
और तो और मेरी आँखों को 
भी बेवज़ह बोल उठने का
मौका मिल जाता है !

मेरे खुश होने के लिए 
मेरे दिल ने तुझ से कहाँ 
कुछ ज्यादा माँगा है !

Monday, 25 November 2019

तुम्हारा आलिंगन !


तुम्हारा आलिंगन !

मैं जब जब होती हूँ 
तुम्हारे आलिंगन में
तो ये पुरवाई हवा भी 
कहाँ सिर्फ हवा रहती है 
वो तो जैसे मेरी साँस 
सी बन मेरे रगो में 
बहने लगती है ;
हर एक गुल में जैसे 
एक सिर्फ तुम्हारा ही 
तो चेहरा दिखाई देने 
लगता है ;
मन उड़ता है कुछ यूँ 
ख़ुश होकर कि जैसे 
इच्छाओं के भी पर 
लग गए है ;
और रूह तो मानो
स्वक्छंद तितली का
रूप धर उड़ने लगती है ;
मैं जब जब होती हूँ 
तम्हारे आलिंगन में 
तो कितना कुछ स्वतः 
ही घटित होने लगता है !

Sunday, 24 November 2019

मन मंदिर !


मन मंदिर !

मन के इसी मंदिर में
शिवाया और भागीरथी
बहती है ;  
मन के इसी मंदिर में
दुनिया के सभी दुर्लभ
पुष्प भी खिलते है ; 
मन के इसी मंदिर में
सह्दुल पंछी भी मौजूद  
रहते है ; 
मन के इसी मंदिर में
नौ रंग के पंखों वाली 
पिट्टा चिड़िया भी 
चहचहाती है ;  
मन के इसी मंदिर में
सृष्टि की सारी कराहें 
बसती है ;  
मन के इसी मंदिर में 
खुशियों की घण्टिया 
भी बजती है ;
मन के इसी मंदिर में 
चीर प्रतीक्षित प्रेम भी 
प्रकट होता है !

Saturday, 23 November 2019

वही तो है !


वही तो है !

वो जो झील को 
अपनी दोनों आँखों 
में रखती है ; 
वो ही तो गुलाबों
को अपने दोनों 
रूख़सारों पर 
रखती है ;
वो जो अपनी 
ज़ुल्फ़ों में छुपा 
कर कहीं शाम 
को रखती है ; 
वो वही है जो 
सबसे छुपाकर 
मुझे भी अपने 
दिल में कहीं 
रखती है ;
वो वही है जो 
अपने होंठों पर 
ना ना और अपने 
दिल में हाँ हाँ 
रखती है !

Friday, 22 November 2019

वहम !


वहम !

सुनो तुम चुप-चुप 
सी ना रहा करो 
मुझे वहम सा हो 
जाता है ; 
कहीं तुम ख़फ़ा तो 
नहीं हो मुझे ये वहम 
सा हो जाता है ; 
मुझे तुम सदा 
चहकती हुई ही 
अच्छी लगती हो ; 
तुम मुझे यूँ ही 
डाँटती डपटती ही 
अच्छी लगती हो ;
कभी मज़ाक में तो 
कभी शरारत में ही 
मगर तुम मुझे बस 
हंसती हुई ही अच्छी 
लगती हो ;
सुनो चुप-चुप सी   
ना रहा करो मुझे 
वहम सा हो जाता है !

Thursday, 21 November 2019

मैं सिर्फ तुमको चाहूंगा !


मैं सिर्फ तुमको चाहूंगा !

मैं एक सिर्फ तुम को चाहूंगा ,
सुख के मौसम में राहत 
भरा स्पर्श बन कर !
मैं एक सिर्फ तुम को चाहूंगा ,
दुःख के मौसम में हंसी का 
ठहाका बन कर !
मैं एक सिर्फ तुम को चाहूंगा ,
भरी दुपहरी में तुम्हारे सर 
पर छांव का छाता बन कर !
मैं एक सिर्फ तुम को चाहूंगा ,
थकन भरे माहौल में तुम्हारे
देह का आरामदेह बिछौना 
बन कर !
मैं एक सिर्फ तुम को चाहूंगा ,
विरह की वेदना में मिलन
की आस बनकर !        
मैं एक सिर्फ तुम को चाहूंगा ,
साथ तुम्हारे तुम्हारी ही 
परछाई बन कर !   

Wednesday, 20 November 2019

रात की ये कालिमा !


क्यों रात की ये कालिमा है , 
क्यों किरणों से तपता दिन है ; 

क्यों आँखों से आसमां ओझल है , 
क्यों हवाएँ सूखी और मद्धम है ; 

क्यों ये लम्हें दर-दर बिखरे है ,
क्यों यादों के प्रतिबिंब धुँधले है ;  

क्यों आहें कराहें हो रही है ,
क्यों दिन बीत ही नहीं रहे है ;

क्यों एक नई सुबह की ख़्वाहिश है ,
क्यों अब चुप रहना भी मुश्किल है ;

क्यों अब अकेले चलते रहना भारी है , 
क्यों भटके-भटके से ये पदचिन्ह है ;

क्यों अब सारी तस्वीरें चुभती सी है ,
क्यों सिमट रहा जीवन प्रतिदिन है ; 

क्यों एक सिर्फ तेरे साथ ना होने से 
कितने कुछ पर क्यों लग रहा है !   

Tuesday, 19 November 2019

तेरे प्यार में पागल हूँ !


तेरे हर दर्द को मैं अब , 
अपना दर्द समझता हूँ ;

तेरी हर खता को मैं अब , 
अपनी ही खता समझता हूँ ; 

तेरे प्यार में मैं पागल हूँ अब , 
इसलिए तो मज़बूरियों को समझता हूँ ;   

खुश रखूं तुझे सदा मैं अब ,
यही अब दिल से चाहता हूँ ;

तेरी हर एक आह को मैं अब , 
बस एक सिर्फ दुआ मानता हूँ !  

Sunday, 17 November 2019

तुम मेरी हो !


तुम मेरी हो !

तुम आँखों में देखो 
मेरी और खुद को 
इन्ही में खो जाने दो ;

तुम बाँहों में आओ 
मेरी और खुद को 
बहक जाने दो ;

तुम दिल में आओ 
मेरे और खुद को इसी 
में बस जाने दो ;

तुम मेरी हो और 
मेरी ही रहोगी सदा 
आज सभी से ये कह दो ;
  
तुम अब कुछ इस 
कदर चाहो मुझे और 
खुद को मुझ पर फनाह 
हो जाने दो ;

प्रखर है बस एक 
तुम्हारा वो चाहेगा 
बस एक तुम्ही को !

एक वो ही तो है !


एक वो ही तो है !

ना शिकायतें करती है 
ना ही गिला करती है

हाँ एक वो ही तो है 
जो मुझे सिर्फ प्यार 
किया  करती है

एक वो ही तो है 
जो एक मेरे लिए 
ही जिया करती है 

एक मुझ से ही तो 
बातें किया करती है

कभी हंसा करती है 
कभी रोया करती है

वो जो भी करती है 
बस बेपनाह करती है

कभी चुपके-चुपके 
बिना आवाज़ किये  
ही मेरे पीछे पीछे 
आ जाया करती है

जब मैं रूठा करता हूँ 
उस से वो मेरे आने का 
तब और इंतज़ार करती है

ना शिकायतें करती है 
ना ही गिला करती है !

Saturday, 16 November 2019

रात आती है !


रात आती है !

मेरी रातें तो 
गुमनाम होती है ; 
दिन मेरे लेकिन 
तेरे नाम होते है ; 
मैं जीता हूँ कुछ 
इस तरह की मेरा 
हर एक लम्हा तेरे 
नाम होता है ; 
मुझे सुलाने के 
खातिर रात तो 
आती है ; 
मगर मैं सो नहीं 
पाता हूँ पर रात 
सो जाती है ;
पूछने पर दिल 
से मेरे आवाज़ 
ये आती है ; 
आज याद करो 
उसे जो तुम्हारी 
नींद चुराती है ; 
ये सिलसिला तो 
सालों से चल रहा है ;
रात आती है और 
आकर चली जाती है ! 

Friday, 15 November 2019

लौटाती है बचपन !



वो जो आज भी खुद में सहेजे है 
हम सब का सूंदर सा बचपन ;

वो जो हम सब को प्रेरित करती है 
जीने को अपना सूंदर सा बचपन ; 

वो जो आज भी अपने व्यवहार में 
शामिल रखती है सूंदर सा बचपन ;

वो जो सहेज कर तुम्हारा तुम अपनी 
कोख में तुम्हे लौटती है सूंदर सा बचपन ;

वो जिसकी बदौलत आज तुम्हारी अंगुली 
पकड़कर कर चल रहा है तुम्हारा बचपन ;

वो जिसने दिया है तुम्हे ये मौका की 
तुम जी सको फिर से अपना वो बचपन ;

वो जो हमें कई बार मौका देती है
धूम धाम से मनाने को अपना बचपन ;

वो जिसे हम सब माँ कहते है 
वो ही तो है जो लौटाती है बचपन !

Thursday, 14 November 2019

औरत सुंदर है !


औरत सुंदर है
उसके बालो से ?
औरत सुंदर है
उसकी आंखों से ?
औरत सुंदर है 
उसके नैन नक्श से ?
औरत सुंदर है
उसके रूप रंग से ?
औरत सुंदर है
उसके लाल होठ से ?
औरत सुंदर है
उसके आकार प्रकार से ?
औरत सुंदर है 
उसके डिल डौल से ?
औरत सुंदर है 
उसके वक्ष से ?
औरत सुंदर है
उस चाल चलन से ?
औरत सुंदर है
उसकी शर्म हया से ?
औरत सुंदर है
उसके यौवन से ?
ना ना ना ना
औरत सुंदर है
औरत सुंदर थी
औरत सुंदर रहेगी
सदा सिर्फ उसके
एक औरत होने से
क्योंकि औरत का
मतलब है जो
औरौ में खुद को
रत कर ले !

Wednesday, 13 November 2019

हरी कोख का आनंद !


हरी कोख का आनंद !

तुम्हे चाहने के लिए 
अपनी सांसों से तुम्हारे 
विकल ह्रदय को तृप्त 
रखना चाहता हूँ !

तुम्हारे ही भाव मेरे 
लफ़्ज़ों में उतरते रहें सदा 
इसलिए तुम्हारी रज्ज से 
जुड़े रहना चाहता हूँ !

भविष्य में तुम्हारे भाव 
और भी सूंदर हों इसलिए
मैं अब तुम्हारी रूह में 
उतरना चाहता हूँ !

तुम्हारी आँखों में उतर 
आये हरी हुई कोख का 
आनंद इसलिए तुम्हारी 
कोख को सदा सींचते  
रहना चाहता हूँ !

तुम्हारे होंठ सदा यूँ ही 
गुलाबी रस भरे बने रहे 
इसलिए मेरे शहद रूपी 
आखरों को सदैव तुम्हारे 
होंठों पर रखना चाहता हूँ !

Monday, 11 November 2019

इश्क़ की दीवानगी !


इश्क़ की दीवानगी !

मेरे ये एहसास तेरी इन सांसों 
की जरुरत हो जायेंगे ;
तुझे भी एक दिन मेरी 
मुझ जैसी जरुरत हो जाएगी ;
तेरी धड़कन भी कर देंगी
तुझे एक दिन परेशान ;
फिर तेरे इस देह को मेरी 
रूह की जरुरत  जाएगी ;       
तुझे महसूस होगी मेरी 
मौजूदगी तेरे रग-रग में ;
तब जा कर मेरी छुवन 
तेरी हर करवट हो जाएगी ;
फिर हर मुलाकात पर तुम 
खुद को मेरे पास भूल जाओगी ;
तुझे अपने पास बुलाने की तमन्ना 
मेरे इश्क़ की दीवानगी बन जाएगी !    

Sunday, 10 November 2019

मैं वाक़िफ़ हूँ !


दर-ब-दर ठोकर खाती 
फिर रही हूँ मैं ; 
तभी तो दर-ब-दर खुद को 
खोजती फिर रही हूँ मैं ;
कौन यूँ खुद में जज्ब कर 
ले गया है मुझे ;
कोई जा कर बताये उसे  
खुद उसमे खोना चाहती हूँ मैं ;
इश्क़ के इस रस्ते की ऊँच नीच से 
अच्छी तरह वाक़िफ़ हूँ मैं ;
फिर भी ठोकर क़दम क़दम पर 
अब खा रही हूँ मैं ;
ठोकर अगर किसी पत्थर से 
से ही खाई हूँ मैं ;
तो मेरा जख्मी होना भी 
लाज़मी समझती हूँ मैं !
  

Saturday, 9 November 2019

हाँ हाँ ना ना !


हाँ हाँ ना ना !

जब रुकने लगे सांसें मेरी 
तो तुम छोड़ छाड़ कर सारे 
काम मेरे पास चली आना ;
अपनी गोद में रख कर सर
मेरा मुझ को तुम सुला लेना ;
उन पलों को तुम मेरी तन्हाईयों 
की सारी दास्ताँ सुना लेने देना ;
उस वक़्त तुम बिलकुल भी मत 
रोना वरना मेरी भी ऑंखें भर आएंगी ;
बस एक बार तुम मुस्कुराकर 
उस वक़्त मेरी हर बात मान लेना ;
कम से कम उस वक़्त तो तुम 
मेरे कहने पर हाँ हाँ बिना किसी 
ना ना के कह तो हां हां देना ;  
जब रुकने लगे सांसें मेरी 
तो तुम छोड़ छाड़ कर सारे 
काम मेरे पास चली आना !

Friday, 8 November 2019

ईश सा मन !


ईश सा मन !

सीढ़ी-दर-सीढ़ी वो 
मेरे दिल में उतरी है ;
जैसा मैंने सोचा था ठीक 
वैसा ही उसका मन है ;
तभी तो लगता है जैसे 
ये जज्बा मेरा उसका है ;
सागर में बून्द के मानिंद 
प्यार उसका बरसता है ;
मैंने देखा है उसका दिल 
बिलकुल ईश के जैसा है ;
उसकी झील सी आँखों में 
डूबे सारे जज्बों पर अब 
हक एक सिर्फ मेरा है ;
इन भीगते बरसते मौसमों 
में दिल उसका भी तड़पता है ;
गवाह है मेरी प्यास अभी 
हमारा मिलन भी तो होना है !   

Thursday, 7 November 2019

करीब आने के दिन !


करीब आने के दिन !

लगता है तेरे मेरे करीब 
आने के दिन आ रहे है ;

लगता है अपने नसीब  
खुलने के दिन आ रहे है ; 

अब तक जो तेरे दिल ने कहा है 
वही तुम्हारे दिल ने सुना है 

अब लगता है तुझ को रु-ब-रु 
सुनने के दिन नज़दीक आ रहे है 

जी चाहता है अभी से ये  
दिल-ओ-जान सरेराह रख दूँ

कि तुझ पर अपनी जान 
लुटाने के दिन आ रहे है 

अब तो टपकने लगी है इन  
मेरी आँखों से मस्ती भी 

लगता है अब तुझ से निगाहें 
मिलाने के दिन आ रहे है !  

Wednesday, 6 November 2019

एक मैं और एक तुम !


एक मैं और एक तुम !

हर दिन में कुछ पल तो हों 
जो सिर्फ तेरे और मेरे हो ;

जिसमे कोई तीसरा ना हो  
उस पल में हम दोनों साथ हो ;
  
उसमे सिर्फ एक दूजे की बात हो
उन बातों को सुनने वाला कोई और ना हो ;
  
यूँ ही बैठे बैठे एक दूजे की बात 
पर दोनों बेतहाशा हंस पड़ते हो ;

हँसते-हँसते एक दूजे की आँखों 
से बरबस आसूं निकल पड़ते हो ;

उन आँसुओं को पोछने वाला 
वहां कोई और तीसरा ना हो ;

बस मैं और तुम एक दूजे 
के बहते आंसू पोंछते हो !  

Tuesday, 5 November 2019

तीन लफ़्ज़ों का वजन !


तीन लफ़्ज़ों का वजन !

लफ्ज़ कह दिए गए थे
कायनात की लगभग 
सारी भाषाओँ में ;  
उन तीन लफ़्ज़ों के लिए
और सारे लफ्ज़ दरकिनार  
कर दिए गए थे ;
होंठों पर सदियों से जमा 
इन लफ़्ज़ों का सारा वजन 
आज उतार दिया  गया था ;
उसके भीतर कोई नाच उठा था
जो नाचता हीं जा रहा था
लगातार...लगातार ;
आज तक वो यूँ ही नाच रहा है
बिना जाने की जिसे बोले गए है
वो तीन लफ्ज़ उसके लिए क्या
मायने रखते है वो लफ्ज़ !

Monday, 4 November 2019

यूँ लौट जाती है !


यूँ लौट जाती है !
  
कभी तो तू आकर मेरे ही 
पहलु में तड़प उठती है 
कभी तू जा कर रेत के
सीने से लिपट जाती है 
यूँ लगता है जैसे तुझे 
आगोश-ए-यार में 
आता ही नहीं करार है  
तभी तो तू आती है 
मौज़ों की तरह पास 
मेरे और चुम कर होंठ 
मेरे यूँ लौट जाती है !

Sunday, 3 November 2019

मन और मनन !


मन और मनन !

मेरी आँखों की नमी
तुम्हारी आँख में साफ 
साफ़ झलकती है ;
तुम ये बताओ कि 
तुम्हारी आँख क्यों 
नम नहीं हो पाती है ;
इस बात को मेरा मन 
और मनन दोनों अच्छे 
से समझता है ;
पर मेरा ये दिल इस 
हकीकत को फिर भी 
क्यों नहीं स्वीकार 
करता है !

Saturday, 2 November 2019

प्रीत की रीत !



प्रीत की रीत !

जब तुम्हारे ह्रदय में 
मेरे लिए बेइंतेहा और 
बेपनाह प्यार उमड़ आये 
और तुम्हारे इन नयनों 
से बाहर वो छलक आये 
मुझसे अपनी इस पीड़ा 
को बयां करने तुम्हारा 
ये मन व्याकुल हो जाए 
तब तुम एक आवाज़ 
देकर मुझे बुलाना
कुछ इस तरह तुम 
अपनी प्रीत की  
रीत निभाना 
तन्हा रातों में जब 
नींद तुम्हारी उड़ जाए 
सुबह की लाली में भी 
जब तुम को मेरा ही 
अक्स नज़र आये 
ठंडी हवा के झोंके भी 
जब मेरी खुशबु तुम 
तक पहुचाये  
तब तुम एक आवाज़ 
देकर मुझे बुलाना
कुछ इस तरह तुम 
अपनी प्रीत की  
रीत निभाना !

Friday, 1 November 2019

पलकें झपकी नहीं !


पलकें झपकी नहीं !

रात भर सोया नही मैं
सोचता तुमको रहा ;
चांदनी खिड़की पर खड़ी रही 
मैं खिड़की पर बैठा रहा ;
चांदनी से बातें ही बातें हुई
रोशन सितारों को मैं तकाता रहा ;
नींद मेरे पास में थी
पलकें मगर झपकी ही नहीं ;
मुझसे नाराज थे 
चादर, बिस्तर, तकिये मेरे ;
उनको सोना था मगर
मैं बस सोचता तुमको रहा ;
मेरी इन आंखों में उलझे हैं 
ख्वाब कितने तुम्हारे ;
क्या इन्हे जानोगी तुम
इक बार बस तुम पास मेरे 
आकर तो रहो ;
देखना फ़िर मानोगी तुम
रात मुझसे अक्सर पूछा करती है ;  
एक सवाल जुल्फ़ में जो 
उलझती हवा मुझसे कहती है ;
उसे भी मलाल  है
क्यूं रात भर सोता नहीं मैं ;
तुमने कभी जाना ही नहीं 
किस तकलीफ में जी रहा हूँ मैं ;
रात भर सोया नही मैं
सोचता तुमको रहा !

प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !