नव-नूतन प्रेम !
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मैं प्रेम हूँ,
नव नूतन वर्ष का
यह पहला दिन मैं,
अपनी प्रीत के नाम करता हूँ;
ठंड से ठिठुरती अकेली
मेरी ज़िन्दगी अपने ही
घुटनों के बीच ठुड्डी
टिकाए सिकुड़कर जो
है बैठी, गुमसुम सी उसे
भी मैं आज अपनी प्रीत
के नाम करता हूं;
सूरज अभी-अभी,
गर्म मुलायम धूप का
जो सबसे चमकीला टुकड़ा
मेरी पीठ पर डाल कर गया है,
उस से उपजी समस्त उर्मा भी,
मैं आज अपनी प्रीत के नाम करता हूँ;
तुम उसे खुद में कर के
जज्ब करना उसे पोषित
करने को अपने दोनों के
"मैं" का विस्तार वो अपना
"मैं" भी आज मै अपनी प्रीत
के नाम करता हूं,
मैं प्रेम हूँ,
जिस प्रीत का उसकी
ये लिखित परिभाषा भी
मैं आज मेरी प्रीत तुम्हारे
नाम करता हूं।
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