Thursday, 3 January 2019

मन की खिड़की !

मन की खिड़की !
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ज़िन्दगी की बैचेनियों
से घबराकर और डरकर 
मैंने मन की खिड़की से
बाहर झाँका; 

तो बाहर ज़िन्दगी 
की बारिश जोरो से 
हो रही थी;

और वक़्त के तूफ़ान 
के साथ साथ किस्मत 
की आंधी भी आ रही थी;

मैंने अपनी शुष्क  
आँखों से देखा तो 
दुनिया के किसी 
अँधेरे कोने में तुम 
चुपचाप बैठी हुई थी;

शायद अपनी ज़िन्दगी 
को तलाश रही थी और 
इधर मैं अपनी ज़िन्दगी 
को तलाश रहा था;

इसी ज़िन्दगी की बारिश 
और किस्मत के तूफ़ान 
ने हमें मिलाया था;

दोनों को जिस ज़िन्दगी 
की तलाश थी वो उन्हें 
मिल मन की खिड़की 
के बहार झाँकने से ही  
मिली थी !

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