मन की खिड़की !
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ज़िन्दगी की बैचेनियों
से घबराकर और डरकर
मैंने मन की खिड़की से
बाहर झाँका;
तो बाहर ज़िन्दगी
की बारिश जोरो से
हो रही थी;
और वक़्त के तूफ़ान
के साथ साथ किस्मत
की आंधी भी आ रही थी;
मैंने अपनी शुष्क
आँखों से देखा तो
दुनिया के किसी
अँधेरे कोने में तुम
चुपचाप बैठी हुई थी;
शायद अपनी ज़िन्दगी
को तलाश रही थी और
इधर मैं अपनी ज़िन्दगी
को तलाश रहा था;
इसी ज़िन्दगी की बारिश
और किस्मत के तूफ़ान
ने हमें मिलाया था;
दोनों को जिस ज़िन्दगी
की तलाश थी वो उन्हें
मिल मन की खिड़की
के बहार झाँकने से ही
मिली थी !
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