Sunday, 6 January 2019

मेरे भावों की कलम !

मेरे भावों की कलम !
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जब लगे तुम्हे की 
दूर बहुत हैं...राम 
तो तुम मूंद अपनी 
आँखों को महसूसना 
उनमे उभर आयी उस  
नमी को... और; 

जब कुछ बुंदे लुढ़क
आये बाहर उसमे...मुझे 
अपने सबसे करीब पाना;
  
मेरा वादा है मैं यु ही 
सदा रहूँगा साथ ...तुम्हारे 
अपने भावों को तुम्हारी 
स्याही से उकेरते हुए;

मेरे भावों की कलम 
और तुम्हारी प्रेम की 
स्याही... उकेर रही होगी 
सदा हमारा प्रेम;

तुम सिर्फ इतना करना 
की मेरे उकेरे गए एक-एक  
अक्षर को अपने कंठ से लगाना;

और जो स्वर निकले तुम्हारे 
कंठ से उसमे सदा मुझे ही 
अपने सबसे करीब...पाना 

फिर मैं यु ही सदा रहूँगा 
साथ तुम्हारे...अपने भावों 
को तुम्हारे प्रेम की स्याही 
से उकेरते हुए !

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !