मेरे भावों की कलम !
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जब लगे तुम्हे की
दूर बहुत हैं...राम
तो तुम मूंद अपनी
आँखों को महसूसना
उनमे उभर आयी उस
नमी को... और;
जब कुछ बुंदे लुढ़क
आये बाहर उसमे...मुझे
अपने सबसे करीब पाना;
मेरा वादा है मैं यु ही
सदा रहूँगा साथ ...तुम्हारे
अपने भावों को तुम्हारी
स्याही से उकेरते हुए;
मेरे भावों की कलम
और तुम्हारी प्रेम की
स्याही... उकेर रही होगी
सदा हमारा प्रेम;
तुम सिर्फ इतना करना
की मेरे उकेरे गए एक-एक
अक्षर को अपने कंठ से लगाना;
और जो स्वर निकले तुम्हारे
कंठ से उसमे सदा मुझे ही
अपने सबसे करीब...पाना
फिर मैं यु ही सदा रहूँगा
साथ तुम्हारे...अपने भावों
को तुम्हारे प्रेम की स्याही
से उकेरते हुए !
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