Thursday, 17 January 2019

सिरहन की पगडण्डी !

सिरहन की पगडण्डी !
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सिहरन की पगडण्डी 
पर चलते चलते देखो
कैसे मेरे रोंगटे खड़े हो रहे है;

तुम्हारी आद्रता को 
महसूस करते करते 
ये लिख रहे है मेरे रग 
रग पर तुम्हारा नाम;

मैं बैठा हर पल तुम्हारी 
धड़कनो के सिहराने सुन 
रहा हु दस्तक अपने अधूरे 
सपनो की;

जिन्हे अक्सर सुला देता हु 
मैं देकर झूठी तसल्ली लेकिन
फिर जब तुम उन्हें फिर एक बार 
सहला देती हो;

तो वो फिर एक बार ज़िद्द पर 
अड़ जाते है और मेरे कदम से 
कदम मिला एक बार फिर 
चल पड़ते है;

उसी सिहरन की पगडण्डी 
पर और चलते चलते जब 
मेरे रोंगटे खड़े हो जाते है ;

तब वो तुम्हारी आद्रता को 
महसूस करते हुए लिखते है 
मेरे रग रग पर तुम्हारा नाम !

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