सिरहन की पगडण्डी !
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सिहरन की पगडण्डी
पर चलते चलते देखो
कैसे मेरे रोंगटे खड़े हो रहे है;
तुम्हारी आद्रता को
महसूस करते करते
ये लिख रहे है मेरे रग
रग पर तुम्हारा नाम;
मैं बैठा हर पल तुम्हारी
धड़कनो के सिहराने सुन
रहा हु दस्तक अपने अधूरे
सपनो की;
जिन्हे अक्सर सुला देता हु
मैं देकर झूठी तसल्ली लेकिन
फिर जब तुम उन्हें फिर एक बार
सहला देती हो;
तो वो फिर एक बार ज़िद्द पर
अड़ जाते है और मेरे कदम से
कदम मिला एक बार फिर
चल पड़ते है;
उसी सिहरन की पगडण्डी
पर और चलते चलते जब
मेरे रोंगटे खड़े हो जाते है ;
तब वो तुम्हारी आद्रता को
महसूस करते हुए लिखते है
मेरे रग रग पर तुम्हारा नाम !
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