Wednesday, 23 January 2019

दायरे में सिमटा वज़ूद !

दायरे में सिमटा वज़ूद !
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जैसे अन्धकार में
जलते दीपक की लौ
और उसके वृत्त में 
खड़ा दास की मुद्रा 
में उसका साया;

वैसे ही तुम्हारी 
गोलाकार बाँहों 
के दायरे में सिमटा 
मेरा वज़ूद;

दुनिया में सबसे 
खुशहाल जीवन 
मेरा अक्सर ऐसा 
ही सोचा करता हूँ;

मन कहता है इतना 
ही क्यों नहीं हो जाता है 
मेरे उम्र का दायरा;

जिस तरह जलते 
दीपक की लौ बुझते 
ही उसके साये की सांसें 
भी थम जाती है;

ठीक वैसे ही तेरी 
गोलाकार बाँहों के 
दायरे से बाहर आते  
ही मेरी भी सांसें थम 
जाए बस !

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !