Tuesday 29 January 2019

तुम मेरी मंज़िल हो !


तुम मेरी मंज़िल हो !
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एक मात्र तुम ही  
मेरी मंज़िल हो;

चाहे हासिल हो 
मुझे तेरा सामीप्य 
डूब कर या हो जाए 
रास्ते सारे बंद मेरी 
वापसी के;

पर तुझमे जो 
बात है वो हर 
एक बात मेरी 
ज़िन्दगी को 
छूती हुई है;
  
और चाहता हुं मैं
पहुंचना अब मेरी 
मंज़िल तक; 

चाहे धार हो पानी 
कि विपरीत दिशा 
में बहती हुई;

पर अब वो भी 
ना रोक पाएगी 
मुझे तुझ तक 
पहुंचने से;

क्योंकि एक मात्र 
तुम ही मेरी मंज़िल हो !

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !