तुम मेरी मंज़िल हो !
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एक मात्र तुम ही
मेरी मंज़िल हो;
चाहे हासिल हो
मुझे तेरा सामीप्य
डूब कर या हो जाए
रास्ते सारे बंद मेरी
वापसी के;
पर तुझमे जो
बात है वो हर
एक बात मेरी
ज़िन्दगी को
छूती हुई है;
और चाहता हुं मैं
पहुंचना अब मेरी
मंज़िल तक;
चाहे धार हो पानी
कि विपरीत दिशा
में बहती हुई;
पर अब वो भी
ना रोक पाएगी
मुझे तुझ तक
पहुंचने से;
क्योंकि एक मात्र
तुम ही मेरी मंज़िल हो !
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