Friday, 4 January 2019

वो भ्रमित करता भ्रम !

वो भ्रमित करता भ्रम !
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मेरे आँसुओं की 
बारिश से भीगी 
मेरी ही रातों में;

मेरी ही खिड़की 
के झरोखों से आती 
हुई रोशनी में;

हलके अँधेरे और 
हलके उजाले की 
छुटपुट आहटों के 
बीच-बीच में;

हमेशा ऐसा लगता
है जैसे तुम आयी हो 
अभी-अभी कंही मेरे 
ही घर में;

फिर सिलसिला शुरू 
होता है तुम्हे खोजने 
का पुकारने का की 
आखिर तुम हो यही 
कंही मेरे घर में;

और ये सिलसिला 
अलसुबह तक यु ही 
चलता है रहता और 
कंही नहीं बल्कि मेरे 
ही घर में;
   
फिर कंही दिन ढले 
जाकर होता है एहसास  
मैं था ऐसे ही किसी एक 
दिग्भर्मित भ्रम में;

तुम तो आयी ही नहीं 
भीगी पलकों और रुंधे 
गले के साथ लौट आता 
हु तब मैं;

अपने ही बिस्तर पर  
कुछ इस तरह ही अक्सर
गुजरती है मेरी रातें यु 
तेरे भ्रम में ! 

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !