सिर्फ तेरे आलिंगन में !
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सिर्फ एक तेरे ही
आलिंगन में फैलाना
चाहता हूँ अपनी जड़ो
को मैं ;
हर साँस तेरी
अपनी सांसों में
समेट लेना चाहता
हूँ मैं ;
और बून्द बून्द
अपने वज़ूद की
तेरी पाक जमीं
में उड़ेलना चाहता
हूँ मैं ;
और इस कदर
हर बार मृत्यु के
द्वार से लौट आना
चाहता हूँ मैं ;
सिर्फ एक तेरे ही
आलिंगन में फैलाना
चाहता हूँ अपनी जड़ो
को मैं !
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