प्रेम पूर्ण करता है !
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प्रेम चाहे जिस उम्र में
हो वो उम्र चाहे बचपन
की हो या हो यौवन की ;
या फिर हो पौढावस्था
कि लेकिन प्रेम जिस
भी उम्र में होता है;
इक्षाएं ,कामनाएं स्वप्न
और ख्वाहिशें स्वतः ही
प्रेम की कोख में अवतरित
हो जाती है ;
प्रेम इंसान को आशावादी
बना ही देता है प्रेम में होने
के पहले उस चाहे इंसान का
स्वभाव निराशावादी रहा हो ;
पर जब उसे भी प्रेम हो
जाता है तब उसके प्रेम
की भी कोख हरी हो ही
जाती है ;
और वो ये मानने लग
जाता/जाती है कि उसका
प्रेम उसे अब अपूर्ण नहीं
रहने देगा !
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