Friday, 25 January 2019

प्रेम पूर्ण करता है !

प्रेम पूर्ण करता है !
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प्रेम चाहे जिस उम्र में 
हो वो उम्र चाहे बचपन 
की हो या हो यौवन की ;

या फिर हो पौढावस्था
कि लेकिन प्रेम जिस 
भी उम्र में होता है;

इक्षाएं ,कामनाएं स्वप्न 
और ख्वाहिशें स्वतः ही 
प्रेम की कोख में अवतरित 
हो जाती है ;

प्रेम इंसान को आशावादी
बना ही देता है प्रेम में होने 
के पहले उस चाहे इंसान का 
स्वभाव निराशावादी रहा हो ;

पर जब उसे भी प्रेम हो 
जाता है तब उसके प्रेम 
की भी कोख हरी हो ही 
जाती है ;

और वो ये मानने लग 
जाता/जाती है कि उसका 
प्रेम उसे अब अपूर्ण नहीं 
रहने देगा ! 

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !