Wednesday, 31 October 2018

प्रेम के सफर का साथी !

प्रेम के सफर का साथी ! 
•••••••••••••••••••••••••
जब हो जाये किसी को
प्रेम अपने ही प्रतिबिम्ब 
से डरने वाले से;

तो दर्द खुद-बा-खुद उस 
प्रेम के सफर का हमसफ़र
बन जाता है;

जब हो जाये किसी को
प्रेम अपनी ही सांसों की  
तेज़ गति से डरने वाले से;

तो दर्द खुद-बा-खुद उस 
प्रेम के सफर का हमसफ़र
बन जाता है;

जब हो जाये किसी को
प्रेम अपनी ही पदचाप  
की आवाज़ से डरने वाले से;

तो दर्द खुद-बा-खुद उस 
प्रेम के सफर का हमसफ़र
बन जाता है;

जब हो जाये किसी को
प्रेम अपनी ही पदचाप  
की आवाज़ से डरने वाले से;

तो दर्द खुद-बा-खुद उस 
प्रेम के सफर का हमसफ़र
बन जाता है;

जब हो जाये किसी को
प्रेम अपने ही घर की 
दहलीज़ को पार करने 
से डरने वाले से;

तो दर्द खुद-बा-खुद उस 
प्रेम के सफर का हमसफ़र
बन जाता है;

और जब दर्द किसी प्रेम 
के सफर का हमसफ़र हो 
बन जाता है;

तो आँसुओं को देनी पड़
जाती है इज़ाज़त आँखों 
के काजल को बहा ले 
जाने की !

Tuesday, 30 October 2018

रूह चल पड़ी है विरक्ति की राह पर



 रूह चल पड़ी है विरक्ति की राह पर 
••••••••••••••••••••••••••••••••••••••
अमृत बरसाते चाँद को देख
मेरी रूह भी पुकारने लगती है तुम्हे 
सुनो प्रिय कंहा हो तुम की 
अब तो आओ तुम पास मेरे 
और देखो कैसे ये सोलह कलाओं 
का कलानिधि चाँद बरसा रहा है 
अमृत अपने अप्रीतम प्रेम का 
अपनी प्राण प्रिये धरा पर यु 
सुनो प्रिय कंहा हो तुम बोलो 
सुन रही हो ना तुम मेरी ये पुकार 
मेरी रूह की आवाज़ को जैसे ही 
मैं अधीरता को छूते देखता हु 
उसी पल मैं भी देने लग जाता हु 
उसका साथ यु तुम्हे पुकारने में
पर तुमने तो खड़ी कर रखी है 
हमारे बीच दूरियों की ऊँची-ऊँची 
दीवार तभी तो हमारी दी हुई ऊँची-ऊँची 
आवाज़ें भी उन ऊँची-ऊँची दीवारों से 
टकराकर बैरंग लौट आती है हम तक 
और फिर मुझे निरुत्तर देख मेरी रूह 
चल पड़ती है विरक्ति की राह पर अकेली 
अब तुम ही बताओ कैसे रोकू उसे उस राह
पर जाने से अकेले की मैं अभी जीना चाहता हु !

Monday, 29 October 2018

मेरे सुरमयी एहसास



मेरे सुरमयी एहसास
••••••••••••••••••••••
ना देख फिर यु मुझे 
घूरकर अपनी निगाहों से 
की मेरा इश्क़ कंही अपनी  
हद्द से गुजर ना जाए की  
मेरे ज़ज़्बात कंही अब 
छलक कर बाहर ना 
आ जाये की तू रहने दे 
भ्रम ये ज़िंदा की मेरे 
इस दिल ओ जान में 
तू है मुकम्मल शामिल 
रूह-ए-गहराई में दूर तलक
की रहने दे यु ही मुझे खोया 
हुआ तू की तेरी पलकों के 
सायों में कंही छूते ही तेरे
मुझे ये मेरे सुरमयी एहसास 
कंही अब बिखर ना जाए 
की अब और ना यु दूर 
रहकर मुझे और तड़पा 
की ये मेरा इश्क़ कंही अब
सारी हद्दों से गुजर ना जाये  
ना देख फिर यु मुझे तू  
घूरकर अपनी निगाहों से ! 

Sunday, 28 October 2018

समझा लो अपने चाँद को !

समझा लो अपने चाँद को !
••••••••••••••••••••••••••••
सुनो ना तुम समझा लो 
अपने इस जिद्दी चांद को 
तुम्हारे लिए ये कभी तो 
अमावस का और कभी 
पूनम का तो कभी यु ही 
साधारण तीज का और 
जब तुम पर ज्यादा ही 
प्रेम उमड़ता है तब तो 
ये हरतालिका तीज का 
हुआ फिरता है और देखो 
आज ये करवाचौथ का 
होकर तुम्हे सौभाग्य का
वरदान देने निकला है 
और फिर परसों दुज का 
और फिर एकम् का हों 
जाएगा सुनो इसे अपने 
पास बैठा कर एक दिन 
बड़े प्रेम से समझाओ तुम  
इस बढ़ते घटते क्रम में 
कहीं एक दिन बुझ ही 
ना जाए वरना फिर तुम्हे
ही उलहाने देगा की तुमने 
मुझे रोका क्यों नहीं ।

Saturday, 27 October 2018

तुम्हारी हथेली पर चाँद

तुम्हारी हथेली पर चाँद 
••••••••••••••••••••••••
मैंने तो उस पहले ही दिन  
रख दिया था करवा चौथ 
का चाँद हथेली पर तुम्हारे 
जिस दिन तुमने मेरे प्रेम 
को स्वीकारा था;
  
मैंने तो उस दिन भी रख
दिया करवा चौथ का चाँद
सूरज से चमकते तुम्हारे
गालों पर जिस पहले दिन
मैंने महसूस किया था उन
गालों की उष्णता को;

मैंने तो उस दिन भी रख
दिया करवा चौथ का चाँद
जिस दिन देखा था सुर्ख 
अग्निवर्ण होंठो को पपड़ाये
हुए प्रेम की प्यास में;

मैंने उस दिन तो मानो मैंने 
इस ब्रह्माण्ड के लगभग सारे 
चाँद ही लाकर रख दिए थे 
तुम्हारी हथेली पर जिस दिन 
तुमने सहर्ष ओढ़ ली थी मेरे 
नाम की वो लाल रंग की चूनड़;

पर फिर भी ना जाने तुम अब 
भी क्यों देखती हो मेरे प्रेम के 
आंगन में खड़ी होकर चलनी 
की ओट से उस पहुंच से दूर
चाँद में मुझे;

जबकि तुम्हारा चाँद तो तब से
कैद है तुम्हारी अपनी ही मुट्ठी में
जबसे तुमने उसे चाँद कहकर 
पुकारा था;  

Thursday, 25 October 2018

चांदनी की शीतल छांव

चांदनी की शीतल छांव
••••••••••••••••••••••••
सुनो प्रिये आओ पास बैठों
अमृत बरसाते चाँद को 
देख मेरी रूह भी पुकारने  
लगी है आज तुम्हे...

सुनो प्रिये आओ पास बैठों 
मेरे हम और तुम चांद पर 
आज कुछ बात करें ...

सुनो प्रिये आओ पास बैठों 
मेरे और दूध धुली शरद 
चांदनी की शीतल छांव तले 
हम और तुम कुछ देर साथ
-साथ चलकर नया सृजन करे...

सुनो प्रिये आओ पास बैठों 
मेरे और देखो चाँद कैसे 
बरसा रहा है अमृत अपनी 
धरा पर आज...

सुनो प्रिये आओ पास बैठों 
मेरे और कुमुद को ताकते
अनझिप क्षण में तुम भी 
कुछ पल मेरे जीवन के 
आज जी लो जरा...

सुनो प्रिये आओ पास बैठों 
मेरे और अनवरत बरसती 
शरद चांदनी में मेरा अन्त:
स्पन्दन चखकर पि लो जरा

सुनो प्रिये आओ पास बैठों 
मेरे और आज मेरे इस प्रेम 
के एक-एक छन -छन जी 
भर कर जी लो जरा...

Wednesday, 24 October 2018

बस यु ही सोच लिया था !

बस यु ही सोच लिया था !
••••••••••••••••••••••••••
यु ही क्या क्या नहीं 
सोच लिया था मैंने; 

सोच लिया था मैंने
मेरे एहसास तेरी सांसों 
की जरुरत हो जायेंगे;

सोच लिया था मैंने
तुझे भी एक दिन मेरी
जरुरत हो जाएगी;

सोच लिया था मैंने
तुम्हारी धड़कने ही 
सरे-शाम तुम्हे परेशां 
कर देंगी तुम्हे ;

सोच लिया था मैंने
तेरी दिल को भी मेरे
दिल की जरुरत मेरे 
दिल की तरह ही पड़ 
जाएगी;

सोच लिया था मैंने
मेरी बातें तेरी नींदों 
की हर करवट सी ही 
हो जाएगी;

सोच लिया था मैंने
किसी ना किसी एक 
मुलाकात पर तुम खुद
को मेरे पास भूल जाओगी;

सोच लिया था मैंने
की मेरा साथ तेरी 
ज़िन्दगी की प्रार्थना  
सा हो जायेगा;

सोच लिया था मैंने
की मेरी इश्क़ की 
बेइन्तेहाई तेरी भी 
हसरत सी हो जाएगी;  

यु ही क्या क्या नहीं 
सोच लिया था मैंने !

Tuesday, 23 October 2018

समंदर उतर आता है आँखों में



समंदर उतर आता है आँखों में
••••••••••••••••••••••••••••••••
कई बार तो समंदर मेरी आँखों 
में उतर आता है जब जब प्रश्न 
करती है मुझसे मेरी ही रूह "राम"
क्या कभी होंगे उसके वादे पुरे?
फिर भी दरकिनार करते हुए 
उसके प्रश्न इकरार करता हु 
तुम्हारे किये हुए हुए वादों पर 
और आज उन्ही वादों के बोझ 
तले दबा जा रहा हु मैं लेकिन 
तुम इरादतन नित्य नए वादे 
किये जा रही हो बिना समझने
की कोशिश किये की अधूरे वादों 
के बोझ तले दबा मैं तन्हाईओं में
घिरा जा रहा हु परिणाम स्वरुप 
उन्ही तन्हाईओं में इस गूंगी दीवारों 
से अकेले में बात करने लगता हु 
बातें भी वो जिसमे एक सिर्फ तुम 
होती हो शामिल और ठीक ऐसे ही
वक़्त जब दीवारों से प्रतिउत्तर 
नहीं मिलता तब मेरी ही रूह 
करती है मुझसे प्रश्न "राम"
क्या कभी होंगे उसके वादे 
पुरे और सुनते ही ये प्रश्न 
अपनी रूह से समंदर उतर 
आता है मेरी इन आँखों में !

Monday, 22 October 2018

ज़िन्दगी की पाठशाला

ज़िन्दगी की पाठशाला
•••••••••••••••••••••••
कुछ लोग तो यु ही 
पा लेते है दाखिला 
ज़िन्दगी की पाठशाला में
जैसे करनी होती है पूरी 
एक औपचारिकता
और तो और इनायत 
देखो ज़िन्दगी की उनपर
उन्हें मिल जाता है अनमोल 
खज़ाना उस ज़िन्दगी का
जो नहीं मिलता उन्हें भी 
जो प्रायः ही पढ़ते है
चारों पहर की नमाज़ 
करते है आठों पहर की पूजा 
रखती है सोलह बरसो 
तक सोमवार पर इतना 
जरूर है की वो जो 
पा लेते है दाखिला यु ही 
ज़िन्दगी की पाठशाला में
वो रह जाते है अनु-उत्तीर्ण
ज़िन्दगी की पाठशाला की
लगभग सभी परीक्षाओं में !

Sunday, 21 October 2018

कड़वी कल्पना की निशा

कड़वी कल्पना की निशा 
 •••••••••••••••••••••••••
जिस निशा का प्याला 
पूरी की पूरी रात कलानिधि 
के निचे पड़े रहने के बाद भी
हयात के मधु से नहीं भर पाता
वो निशा ही समझ सकती है 
मधु का सही-सही अंशदान 
क्योंकि उस निशा के प्याले 
से उतर चुकी होती है...
कलानिधि की कलई भी तब 
उस प्याले में पड़ी उस निशा 
की कल्पना कितनी कड़वी हो 
जाती है और उस कड़वाहट का
स्वाद भी वो ही समझ सकता है 
जो उस कड़वी हुई निशा को एक 
बार फिर से हयात के मधु में तर 
बतर करने का माद्दा रखता हो 
जबकि उसे खुद नहीं पता होता 
की उसे कड़वी हुई निशा की 
कल्पना के प्याले की कड़वाहट 
कब तक पीते रहना पड़ेगा...

Saturday, 20 October 2018

बेजुबान ख़ामोशी

बेजुबान ख़ामोशी
••••••••••••••••••
तुम्हारा दिया 
सबकुछ बचा कर
रखा है मैंने तुम्हारे लिए ,
कुछ आधी अधूरी धुनें 
कुछ पूरी सिसकती हुई 
सी आवाज़ें...
कुछ एक ही जगह 
ठहरे हुए कदम है 
कुछ आँसुओं की बूंदें 
कुछ उखड़ती हुई सी 
सांसें और कुछ आधी 
अधूरी कवितायेँ...
कुछ तड़पते से एहसास 
कुछ बेजुबान ख़ामोशी 
कुछ चुभते हुए से दर्द
की आओ अब मुझसे 
ये नहीं संभलते अकेले 
आकर सम्भालो इनको  
जो दिया था तुमने मुझे
वो सबकुछ बचा कर
रखा है मैंने तुम्हारे लिए !

Friday, 19 October 2018

श्री राम रूपी आत्मा को जगाते है!

श्री राम रूपी आत्मा को जगाते है! 
•••••••••••••••••••••••••••••••••••
चलो आज हम सब अपने   
अपने अंदर सोई मर्यादा 
पुरुषोत्तम श्री राम रूपी आत्मा 
को एक बार फिर से जगाकर 
अपने ही अंदर छुप कर बैठे 
रावण रूपी अहम् को अपने 
ही मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम 
रूपी आत्मा से मरवाते है 
चलो आज हम सब अपनी 
हरण हुई सीता स्वरुप ह्रदया 
को उस दुष्ट राक्षस रावण रूपी 
रूपी अहम् के चंगुल से अपनी 
ही मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम 
रूपी आत्मा की मदद से छुड़वाते है
चलो आज हम सब मिलकर अपने  
अपने रावण स्वरुप हो चले मस्तिष्क 
को मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम रुपी 
आत्मा की मदद से साफ़ करते है!  
चलो आज हम सब मूर्छित हो चले 
अपने अपने लक्ष्मण स्वरुप चेतना  
को मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम रुपी 
आत्मा की मदद से फिर से जागृत करते है
चलो आज हम-सब अपने-अपने हनुमान 
को उसकी शक्ति याद दिलाकर अपने 
अपने सहज बोध ,प्रज्ञा और धैर्य को 
मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम की मदद 
से पूर्ण जन्म दिलवाकर अपनी अपनी 
सीता रूपी आत्मा को फिर से पुनर्जीवित 
करवाकर अपने अंदर छुपे बैठे रावण स्वरुप 
अहम् को मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम के ही  
हाथो मरवाकर सत्य रूपेण सतयुग 
सी ही "विजयादशमी" एक बार फिर 
उसी हर्ष और उल्लास से मनाते है ! 

Thursday, 18 October 2018

फल-फूल रही है दानवता

फल-फूल रही है दानवता 
•••••••••••••••••••••••••••••
मानवता को खा-खा कर 
हर घर-घर में फल-फूल 
रही है दानवता... 
जन्म से लेकर मरण तक
के पग-पग पर देखो आज 
दानवता हो रही है काबिज़ 
तभी तो देखो दानवता को 
देख कराह रही है मानवता  

मानवता को खा-खा कर 
हर घर-घर में फल-फूल 
रही है दानवता... 
जन्म लेगा कौन ये भी अब
दानवता है निर्धारित कर रही 
तभी तो देखो दानवता को 
देख कराह रही है मानवता  

मानवता को खा-खा कर 
हर घर-घर में फल-फूल 
रही है दानवता... 
तभी तो देखो जरूरतों को 
भी अब अपने -अपने हिसाब 
से ही तौल रही है दानवता 
तभी तो देखो दानवता को 
देख कराह रही है मानवता  

मानवता को खा-खा कर 
हर घर-घर में फल-फूल 
रही है दानवता... 
तभी तो जंहा है लड़के ही 
लड़के वंहा उनकी कलाई 
की जरुरत बन रही है अब 
वो अजन्मी लड़कियां जंहा 
लड़कियां ही लड़कियां है 
वंहा मोक्ष का द्वार बन 
रहे है तकदीर में ना लिखे
वो अस्वाभाविक लड़के
तभी तो देखो दानवता को 
देख कराह रही है मानवता  

मानवता को खा-खा कर 
हर घर-घर में फल-फूल 
रही है दानवता... 
तभी तो गुरुकुलों ने सकल 
अख्तियार कर ली है व्यवसायिक 
घरानो की जंहा संस्कारों की जगह 
छल और प्रपंच है पढ़ाये जाते कैसे 
एक सितारा लगाकर तुम्हे लोगो 
को है ठगना ये है वंहा पढ़ाया जा रहा  
तभी तो देखो दानवता को 
देख कराह रही है मानवता  

मानवता को खा-खा कर 
हर घर-घर में फल-फूल 
रही है दानवता... 
शादियाँ जंहा सात जन्मो का साथ
देती थी आज वही दो देह का मिलन
भी नहीं अपितु प्रयोगात्मक सम्बन्ध 
बनाने का जरिया मात्र बनकर रह रही है 
तभी तो देखो दानवता को 
देख कराह रही है मानवता  

मानवता को खा-खा कर 
हर घर-घर में फल-फूल 
रही है दानवता... 
बुजुर्ग जंहा नौनिहालों को 
सिखलाते थे चंदा को कहना 
मामा और कहना सूरज दादा है
अब कंहा और किसके नसीब में 
है बचा लिखा अपने दादा-दादी 
और नाना नानी की गोद में अपना 
सारा बचपन है जीना बताओ जरा 
तभी तो देखो दानवता को 
देख कराह रही है मानवता  !

Wednesday, 17 October 2018

मानवता ने चुप्पी साध ली है !

मानवता ने चुप्पी साध ली है !
••••••••••••••••••••••••••••••••
मानवता जब चुप्पी 
साध लेती है तब-तब  
दानवता भूखे भेडियो 
की शक्ल अख्तियार 
कर मानवता को खा जाती है 
तभी तो देखो आज फिर  
इन भेड़ियों की बस्ती में
एक और बेटी ने
एक और बहन ने
एक और माँ ने
अपनी जान गँवा दी है
लगता है जैसे हमारे
शेरों ने कुत्तों की खाल
भेड़ियों की तादाद से
डरकर पहन ली है
और शेरनियां भी जैसे
उन भूखे लालची भेड़ियों 
के डर से अपनी मांद में 
दुबककर सो गयी है  
और मुझे क्यों लगता है 
जैसे दुर्गा,काली और
चंडी भी अपनी सारी
शक्तियां भूल चुकी है 
तभी तो मानवता पर 
दानवता हावी हुई जा रही है 
और इंसानो ने भी डरकर 
जैसे चुप्पी साध ली है
पता नहीं और किस किस की
बेटियां को किस किस की
बहनो को किस किस की
और कितनी माओं को 
अभी अपनी जान गँवानी है !

Tuesday, 16 October 2018

तुम्हारी पसंद की साडि़यां


तुम्हारी पसंद की साडि़यां
•••••••••••••••••••••••••••
सुनो तुम्हारी पसंद की 
सभी साड़ियां गीली पड़ी है 
आज गर तुम अपनी पसंद 
की साड़ी में ना देख पाओ 
मुझे तो उत्तेजित ना होना 
क्योकि इसमें मेरा कोई 
कसूर नहीं है ये जो तुम्हारे 
नम एहसासो से भरे हर्फ़ है 
अक्सर ही चुभती सी दोपहरी 
में सोच कर मेरा ही हित अपनी 
ठंडी-ठंडी फुहारों से दिन में कई 
बार मुझे भिगो कर चले जाते है
और वैसे भी आजकल तो तुम
एक नहीं दो नहीं तीन नहीं बल्कि 
चार-चार पन्नो पर उतार रहे हो
अपनी नम-नम एहसासों को 
इसलिए बदलनी पड़ी मुझे आज
तुम्हारी पसंद की चार-चार साड़ियां 
और कल की अब तक सूखी नहीं है  
इसलिए आठ साड़ियां गीली पड़ी है 
तुम्हारी पसंद की तो समझकर मेरी
परेशानी आज उत्तेजित ना होना तुम !  

Monday, 15 October 2018

आस्तिक हो या नास्तिक

आस्तिक हो या नास्तिक 
••••••••••••••••••••••••••
जब-जब तुमने पूछा मुझसे 
राम मैं तुम्हे कैसी लगती हु
तब-तब मैंने तुझमे भी 
एक रब को देखा है 
जो प्रेम में होते है 
उन्हें इस धरती के
हर एक कण कण में
भगवान बसे दिखाई देते है
और जो प्रेम में नहीं होते
उनको इंसानो में भी कई 
खामियां दिखाई देती है
जैसे उन्हें कोई सुन्दर और 
कोई बदसूरत दिखाई देता है
पर सुनो मैंने तो तुम्हे कभी 
पूछ कर देखा ही नहीं की 
मैं तुम्हे कैसा लगता हू 
चलो आज मैं तुमसे पूछता हु 
तुम बतलाओ मुझे मैं 
तुम्हे कैसा लगता हु 
गर तुम्हारा जवाब ये हो की 
मुझे भी तुझमे एक रब दिखता है
तो ये बताओ तुम कैसे खुद को 
उस रब से दूर रखती हो 
क्या तुम्हे उस रब में 
विश्वास नहीं बोलो ! 

Sunday, 14 October 2018

'अहं ब्रह्मास्मि'

'अहं ब्रह्मास्मि'
••••••••••••••••
तुम्हारे प्रेम के शब्दों को 
मैं मेरी देह में रमा लेती हु ;
तदोपरांत मैं आत्मनिर्भर हो 
अपने तमाम झूठे शब्दों को 
तुम्हारे प्रेम के उजियारे शब्दों 
से रंग लेती हु तब वो मेरी राह
में दीपक से जलकर मेरा मार्ग 
प्रशस्त करते है और मैं साहसी 
होकर के हमारे प्रेम के विरूद्ध 
उठती सभी अँगुलियों को ठेंगा 
दिखा कर तुम्हारे सिद्ध शब्दों में
 कहती हु उन सब से 'अहं ब्रह्मास्मि' 
और एक कोमल अनुभूति को महसूस 
कर खुद को यौवन की रोशनी में नहायी 
अनुभव करती हुई हमेशा के लिए तुम्हारे 
पास आने को निकल पड़ती हु !

Saturday, 13 October 2018

मेरी ही इक्षाओं के पेड़

मेरी ही इक्षाओं के पेड़
•••••••••••••••••••••••
तुमसे मिलने के बाद
उग आयें हैं मुझ में
मेरी ही इक्षाओं के 
पेड़ जिन पर खिलने 
भी लगे है मेरे ख्वाबो 
के फूल जिन्हे मैं सूँघ 
नहीं पाता और ना ही 
सही सही जान पाता हु 
उन फूलों की इक्षाओं  
को ना उनकी सुगंध के 
असर को समझ पाता हु 
हां पर इतना कह सकता हु 
उन फूलों को देखकर की 
सपनों के फूल चमकीले हैं 
बहुत जो रौशनी देते हैं दूर 
दूर तक जब मैं अपने मन 
के रास्ते पर चलता हु तब 
सुनो ना मैं तुम्हे भी देना 
चाहता हूँ अँजुरी भरकर 
मेरी इक्षाओं ये फूल तुम्हें
तुम्हारे सपनों के लिये पर 
सुनो कल जब ये सूख जाएँ 
तो बोना तुम इन्हें अपने मन 
की उर्वरा मिटटी में और फिर 
उगाना अपनी इच्छाओं के पेड़
सपनों के फूल जो तुम्हे रोशनी 
देंगे तब जब तुम चलोगी अपने 
मन की राह पर अकेली और उनकी 
सुगंध तुम्हे मेरी उपस्थिति दर्ज कराएगी !

Friday, 12 October 2018

रूह आश्वस्त है

रूह आश्वस्त है  
••••••••••••••••
तमाम-उलझनों और 
भाग दौड़ से आजिज 
मेरा ये दिल खोजता है 
सकून हर शाम पागलों 
की तरह जानते हुए की 
उसके पास एक तुम्हारे 
सिवा कोई और विकल्प 
ही नहीं फिर भी करता है 
कोशिश किसी तरह कंही 
और मिल जाए सकूँ गर 
उसकी इस अतृप भटकती 
रूह को जिस से तुम्हे ना 
समय निकलना पड़े एक 
सिर्फ मेरे लिए और तुम 
यु ही रहो व्यस्त अपनी 
दुनिया में निष्फिक्र एक 
मात्र मेरी फिक्र से लेकिन 
जब तमाम कोशिशों के 
बावजूद रूह को नहीं मिलता 
चैन तब ठहर कर कुछ देर 
तुम्हारी ही तस्वीर के सामने 
बैठता हु तो यु लगता है जैसे 
तड़पकर रूह मेरी मेरे ही जिस्म  
को छोड़ प्रवेश करती है तुम्हारी 
उस तस्वीर में और मैं देखता हु 
मेरी ही रूह को पूरी तरह आश्वस्त 
उस तुम्हारी तस्वीर में तब मेरी देह 
बिल्कूल निढाल हो एक तरफ लेट जाती है 
वैसे जैसे बिना रूह के शरीर होता जाता है 
मरणासन्न ठीक वैसे ही लेकिन चक्षु अब भी 
मेरे रहते है व्यस्त देखने में खुद को यु पूरी 
तरह आश्स्वत तुम्हारी देह में !! --

Thursday, 11 October 2018

पढ़ तो लिया करो उसे



पढ़ तो लिया करो उसे 
•••••••••••••••••••••••
अभी जिसे देख रही हो 
सिमटा-सिमटा सा जो 
अक्सर रख देता है 
खुद को पूरा का पूरा 
खोलकर तुम्हारे आगे
कई बार-हर बार 
वही जो खुला-खुला
सा बिखरा-बिखरा सा 
पड़ा था तुम्हारे घुटनो पर 
कभी तुम्हारे कंधो पर 
तो कभी तुम्हारी पलकों पर 
तो कभी ठीक तुम्हारे पीछे 
तुम्हारी उन्ही पलकों को 
बंद कर तुम्ही से पूछता है
बताओ मैं कौन? 
वही जो पूरा का पूरा 
जी लेता है खुद को 
तुम्हारे आगे बिखर-बिखर कर 
तुम पढ़ तो लिया करो 
उसको उसके चले जाने 
के बाद उठा कर कभी 
अपनी पलकों से 
कभी अपने घुटनो से 
कभी अपनी पलकों से 
तो पता चलेगा तुम्हे 
यु खुद को कर समर्पित 
लौटने का दर्द क्या होता है !

Wednesday, 10 October 2018

भाविउ मेटि सकहिं त्रिपुरारी

भाविउ मेटि सकहिं त्रिपुरारी
•••••••••••••••••••••••••••••
बदल सकता है 
                   प्रेम का रंग ,
बदल सकता है 
             मन का स्वभाव ;
बदल सकती है 
            जीवन की दिशा ,
बदल सकती है  
               हृदय की गति ;
 लेकिन तुम्हे करनी होगी ,
मदद उस ईश की 
            जिसने लिखकर; 
  भेजा था तुम्हारा भाग्य ,
अकेले नहीं उठाना 
                   चाहता वो ; 
इतना भार अब  
             अपने कंधो पर ,
जब देख लिया  
              उसने तुम्हारी ;
कोशिश बदलने की 
            अपने भाग्य को , 
जब देख लिया उसने 
   तुम्हारी इक्षाशक्ति को ; 
और देखकर तुम्हारा 
समर्पण अब चाहता है वो , 
इसमें तुम्हारी भी मदद 
 ताकि लिख सके तुम्हारा ; 
भाग्य एक बार फिर से तुम्हारे कर्मो के अनुसार !

Tuesday, 9 October 2018

बस सोचता रहा तुम्हे

बस सोचता रहा तुम्हे 
••••••••••••••••••••••
तुम्हारे लिखे तमाम 
कागज़ों को लेकर अपने
हांथो में सोचता रहा मैं
बस दिन रात एक तुम्हे
फिर एक दिन खोला तो
पढ़ा उस पर लिखा था 
प्यार  
उसी प्यार के समंदर में
हम और तुम आये बहते 
हुए इतनी दूर दर्द-ए-दंश 
से हर मोड़ पर बचाया मैंने
तुम्हे अब मेरे पांव में छाले
है और और हाथ है बिलकुल 
पूरी तरह जख्मी उनको भी
प्यार 
के वास्ते सहेज कर रखा है 
मैंने की तुम आकर इन पर
मलहम लगाओगी बोलो 
आओगी ना तुम मलहम 
लगाने इन जख्मो पर !

Monday, 8 October 2018

हमारी मति से ऊंचा

हमारी मति से ऊंचा
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हां इन्ही धधकते 
अंगारों के बीच ही 
मिलता है आश्रय 
प्रेम को जैसे इसका 
अर्थ भटकता रहता है
जीवन के निर्जन वनो 
में जैसे अकेला ठीक 
वैसे ही प्रेम आता है 
और ठहर भी जाता है 
अद्भुद सा हमारे मन 
की कल्पनाओं से भी 
लम्बा और हमारी मति  
से ऊंचा भी जो अंततः 
ढूंढ ही लेता है अपना 
आश्रय भी हां इन्ही 
धधकते सुलगते से  
अंगारों के बीच ही !

Sunday, 7 October 2018

तेरे दम की मुझे सांसें दे !

तेरे दम की मुझे सांसें दे !
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मेरी ज़िन्दगी मेरे साथ चल ,
तू थाम कर मेरे ख्वाब चल ,
मेरे हाथ में अपना हाथ दे ,
मेरी उम्र भर मेरा साथ दे ,
तुझे चाहना ही मेरी आरज़ू ,
तुझे देखना ही मेरी जुस्तजू ,
मुझे दिन दे अपने ख्याल का ,
मुझे अपनी उर्मा की रातें दे ,
अपने समर्पण की सांसें दे
तेरे दम से सांसें हो रवां मेरी ,
मुझे उलझनों से निजात दे ,
मेरी ज़िन्दगी तू अब मेरी 
हर साँस में मेरा साथ दे, 
मेरी ज़िन्दगी मेरे साथ चल ,
तू थाम कर मेरे ख्वाब चल

Saturday, 6 October 2018

ये तुम्हारी जिम्मेदारी थी !

ये तुम्हारी जिम्मेदारी थी !
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वो सिर्फ तुम्हारी 
ही ऑंखें थी जिसने 
भेद दिया था मेरी 
आत्मा पर लगे उस 
बड़े से दरवाज़े को   
जिस पर बड़े-बड़े 
अक्षरों में लिखा था
अंदर आना सख्त 
मना है पर तुम्हारी 
आँखों ने भेद ही दिया 
था उस दरवाज़े को तो
फिर ये तुम्हारी जिम्मेदारी 
थी की उस दिन के बाद
मैं कभी अकेला ना रहु 
पर फिर तुमने ऐसा क्यों 
किया की दरवाज़ा भी खोला
अंदर भी आयी पर जाते वक़्त 
दरवाज़ा खुला छोड़ कर चली गयी 
कोई जिम्मेदार ऐसे कैसे अपने घर 
के दरवाज़े किसी के लिए भी खुला 
छोड़ कर जा सकती है बोलो !

Friday, 5 October 2018

सांझ बनेगी सुहानी रात

सांझ बनेगी सुहानी रात
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मेरे प्रेमातुर मन में 
जैसे साँझ ढल रही है
एक किरण रोशनी की 
मुझे प्यार से झिड़कती है 
रूककर और मुझसे कहती है  
क्यों तुम इतनी जल्दी उम्मीद
का दामन छोड़ रहे हो पागल 
तुम देखना अभी तो साँझ के 
ऊपर छायेगा चाँद और ये साँझ
चाँद की आगोश में समाकर पूरी
की पूरी रात सुहानी हो जाएगी 
उसके बाद छायेगा उजाला एक 
नयी सुबह का फिर तुम्हारी प्रिय 
आएगी तुम्हारे पास तब यही 
तुम्हारा प्रेमातुर मन फिर से 
उसके प्रेमानंद में डूब जायेगा 
सुन उस किरण की ये बातें 
मैं भी देखने लग जाता हु 
कैसे चाँद सांझ को अपने
प्रेम में डुबाकर सुहानी रात
बनता है ताकि आज जब वो
आएगी तो मैं भी उस सुबह को
रात बनाकर रख लूंगा सदा के 
सदा के लिए मेरे ही पास ! 

Thursday, 4 October 2018

कितना सहज सोच लिया था मैंने

कितना सहज सोच लिया था मैंने
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तुम अक्सर ही यूँ जो दो-चार 
कदम मुझसे आगे चलती थी  
जब भी मैं होता था तुम्हारे साथ 
एक दिन यु बिन बताए अचानक
ही मैं अपने दो-चार कदम तेज़ 
चलकर ज्यों ही तुम्हारा हाथ  
थाम लूंगा तो कितना सहज हो 
जायेगा सबकुछ हां सबकुछ ही 
जैसे हमारी चीज़ें हमारे लोग 
और मेरे वो अलफ़ाज़ भी जो 
अक्सर तुम्हे मेरी जिव्हा पर 
कठोर तीखे और बेरुखे लगते थे 
लेकिन मुझे नहीं पता था वो 
मेरा यु तुम्हारा हाथ पकड़ना 
तुम्हे इतना अखर जायेगा की
फिर कभी तुम वैसे ही दो-चार 
कदम आगे चलने के लिए भी 
मेरे साथ तैयार ना होगी और 
देखो मैं इसे ऐसे कैसे इतना 
सहज सोच लिया था है ना !   

Wednesday, 3 October 2018

तेरा भूरा-भूरा सा इश्क़


तेरा भूरा-भूरा सा इश्क़ 

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वो भूरी-भूरी सी लहरें 
खिंच ले जाती है मुझे
उन भूरी-भूरी आँखों की
भूरी-भूरी सी गहराईयों 
में मुझे अब क्यों कोई 
और रंग नहीं भाता मुझे
एक तेरे इस भूरे रंग के 
सिवा वो ही भूरी-भूरी सी 
लहरें एक दिन कब मुझे 
अपने प्रेम के भूरे-भूरे से 
ही समंदर में खिंच ले गयी 
पता ही ना चला वो भी तब 
जब मेरे पास नहीं था प्रेम 
का कोई भी अनुभव और  
ना ही थी पास कोई नाव 
हां बस इतना ही कहा था 
लो थाम लो मेरा हाथ तुम 
मैं तो सर से पांव तक बस 
चाह ही चाह थी अब तुम्हारी 
और उसी चाह में अब डूबी हु
और अब उसी समंदर के अंदर
पानी के निचे साँस भी ले रही हु मैं  
उन भूरी-भूरी सी लहरों में डूब रही हु मैं ! 

Tuesday, 2 October 2018

ज़िन्दगी के छोटे-छोटे दिन


ज़िन्दगी के छोटे-छोटे दिन
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इस लम्बी सी जिंदगी 
के ये छोटे-छोटे से दिन
के ये छोटे-छोटे से पल 
और ये छोटे-छोटे से पल 
के छोटे-छोटे से पल छण
रूक जाते और कुछ पल
के ये छोटे-छोटे से दिन 
पर दिनों को भी चलने की
की जो आदत है जन्मो से 
शायद इसलिए चलते चलते 
बितते रहते हैं यु ही ये दिन
कभी किसी के साथ तो कभी
किसी के बिन बीतते रहते हैं
ये छोटे-छोटे से दिन और दिन
के ये छोटे-छोटे से पल और
ये छोटे-छोटे से पल के छोटे
छोटे से पल छण रूक जाते 
पर आज तुम जो साथ हो तो 
ये सिर्फ वक्त ही बन बीतेगा  
घड़ी की सुइयां बन चाहे तो 
तू सुन कान बन इसके सुर 
लेकिन तुम्हारे साथ ठहरा 
मेरा ये दिन मेरी पूरी जिंदगी 
बन ठहरा रहेगा साथ मेरे मेरा 
ये दिन मेरी पूरी जिंदगी बन
साथ लेकर अपने ये छोटे-छोटे 
से पल और ये छोटे-छोटे से पल 
के छोटे छोटे से पल छण मुझमें
ही कंही तुम्हारे साथ यूं ही संग 
मेरे हर पल हर क्षण ये दिन 
साथ साथ मेरी सांसों के यूं ही 
धक धक कर कर एक दिन 
धड़कन बन मेरी रूक जाएगा 
ये दिन और दिन के छोटे-छोटे
से पल और पल के छोटे-छोटे 
से ये पल छण एक दिन ।

Monday, 1 October 2018

तुम ही मेरी गति हो

तुम ही मेरी गति हो
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तुमने ठीक ही कहा था 
तुम्हारी चाह के बाहर
मेरा कोई जीवन नहीं 
तुम ही मेरी गति हो
तुम्हारी बांहों के घेरे 
के बाहर मेरे किसी 
सामर्थ का अर्थ नहीं
मेरे सारे आयाम तुम
ही हो और तुम्हारे कोने
तुम्हारे वृत्त और रेखाएं 
से ही मेरे समस्त जीवन 
की अभिलाषाएं जुडी है
जिस दिन तुमने प्रवेश 
किया था मेरी हथेलियों
की रेखाओं में उसी दिन 
प्रवेश पा लिया था मेरी 
आबध्ताओं में और जिस 
दिन तुम दूर चली जाओगी 
उस दिन मेरे जीवन का  
आशय समाप्त हो जायेगा है 
हां तुमने ठीक ही कहा था 
तुम्हारी चाह के बाहर...

प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !