Thursday, 31 January 2019
Wednesday, 30 January 2019
सिर्फ तेरे आलिंगन में !
सिर्फ तेरे आलिंगन में !
•••••••••••••••••••••••••
सिर्फ एक तेरे ही
आलिंगन में फैलाना
चाहता हूँ अपनी जड़ो
को मैं ;
हर साँस तेरी
अपनी सांसों में
समेट लेना चाहता
हूँ मैं ;
और बून्द बून्द
अपने वज़ूद की
तेरी पाक जमीं
में उड़ेलना चाहता
हूँ मैं ;
और इस कदर
हर बार मृत्यु के
द्वार से लौट आना
चाहता हूँ मैं ;
सिर्फ एक तेरे ही
आलिंगन में फैलाना
चाहता हूँ अपनी जड़ो
को मैं !
Tuesday, 29 January 2019
तुम मेरी मंज़िल हो !
तुम मेरी मंज़िल हो !
••••••••••••••••••••••
एक मात्र तुम ही
मेरी मंज़िल हो;
चाहे हासिल हो
मुझे तेरा सामीप्य
डूब कर या हो जाए
रास्ते सारे बंद मेरी
वापसी के;
पर तुझमे जो
बात है वो हर
एक बात मेरी
ज़िन्दगी को
छूती हुई है;
और चाहता हुं मैं
पहुंचना अब मेरी
मंज़िल तक;
चाहे धार हो पानी
कि विपरीत दिशा
में बहती हुई;
पर अब वो भी
ना रोक पाएगी
मुझे तुझ तक
पहुंचने से;
क्योंकि एक मात्र
तुम ही मेरी मंज़िल हो !
Sunday, 27 January 2019
मोहब्बत की है मैंने !
मोहब्बत की है मैंने !
•••••••••••••••••••••••
तेरे हर एक जज्बात से
बेइंतेहा मोहब्बत की है
मैंने;
तेरे हर एक एहसास से
बेइंतेहा मोहब्बत की है
मैंने;
तेरी हर एक याद से
बेइंतेहा मोहब्बत की है
मैंने;
जब जब किया है तुमने
याद मैंने हर उस एक लम्हे
से बेइंतेहा मोहब्बत की है
मैंने;
जिसमे हो सिर्फ एक तेरी
और एक मेरी बात उस एक
औकात से बेइंतेहा मोहब्बत
की है मैंने;
तेरे हर इंतज़ार से भी उतनी
ही सिद्दत से मोहब्बत की है
मैंने;
तू मेरी है सिर्फ मेरी मैंने
इस भरोसे से भी उतनी ही
बेइंतेहा मोहब्बत की है
मैंने;
तेरे हर एक जज्बात से
बेइंतेहा मोहब्बत की है
मैंने !
Saturday, 26 January 2019
माँ तो आखिर माँ ही होती है !
माँ तो आखिर माँ ही होती है !
•••••••••••••••••••••••••••••••
माँ तेरी हो या माँ मेरी हो,
माँ तो आखिर माँ ही होती है;
माँ राम की हो या रहीम की,
माँ इंसान की हो या शैतान की,
माँ तो आखिर माँ ही होती है;
माँ जनती है सिर्फ एक शिशु को,
माँ की ममता राम के लिए भी वही,
माँ की ममता रावण के लिए भी वही,
क्योंकि माँ तो आखिर माँ ही होती है;
माँ चाहे हिन्दुस्तानियों की हो,
या हो पाकिस्तानियोँ की हो,
या हो अमेरिकन की या रशियन की,
माँ तो आखिर माँ ही होती है;
आज जो सत्ता के लालची,
अपने पलड़े को भारी करने,
के लिए माँ-माँ को बाँट रहे है,
उन्हें मैं बताना चाहता हु,
माँ तो आखिर माँ ही होती है;
आज जिन माँ की संताने,
बहुतायत में है उनके पीछे,
वजह उनका अहिंसक स्वभाव है,
और जो है अल्पमत में उनके,
पीछे उनका हिंसक स्वभाव है,
क्योंकि माँ तो आखिर माँ ही होती है;
आज अगर तुम भी चल रहे हो,
उनके नक़्शे कदम पर तो कल,
तुम भी आ जाओगे अल्पमत में,
क्योंकि माँ तो आखिर माँ ही होती है;
मत बांटों इन माँ और माँ को,
क्योंकि बच्चा चाहे मरे किसी,
भी माँ का छाती सुनी होती है,
सिर्फ उस बेटे की जननी की
क्योंकि माँ तो आखिर माँ ही होती है;
माँ तेरी हो या माँ मेरी हो,
माँ तो आखिर माँ ही होती है !
Friday, 25 January 2019
प्रेम पूर्ण करता है !
प्रेम पूर्ण करता है !
••••••••••••••••••••
प्रेम चाहे जिस उम्र में
हो वो उम्र चाहे बचपन
की हो या हो यौवन की ;
या फिर हो पौढावस्था
कि लेकिन प्रेम जिस
भी उम्र में होता है;
इक्षाएं ,कामनाएं स्वप्न
और ख्वाहिशें स्वतः ही
प्रेम की कोख में अवतरित
हो जाती है ;
प्रेम इंसान को आशावादी
बना ही देता है प्रेम में होने
के पहले उस चाहे इंसान का
स्वभाव निराशावादी रहा हो ;
पर जब उसे भी प्रेम हो
जाता है तब उसके प्रेम
की भी कोख हरी हो ही
जाती है ;
और वो ये मानने लग
जाता/जाती है कि उसका
प्रेम उसे अब अपूर्ण नहीं
रहने देगा !
Thursday, 24 January 2019
खुद से लड़ रहा हुं मैं !
खुद से लड़ रहा हुं मैं !
•••••••••••••••••••••••
तुम्हारे लिए हमेशा
ही सबसे लड़ा मैं ;
हम-दोनो के लिए
भी कइयों से लड़ा मैं;
अब जब तुम साथ
नहीं हो मेरे तो अब
किसी ओर से ना सही
पर अपने दिल से तो
लड़ ही रहा हुं मैं;
समझा रहा हुं अपने
ही दिल को जाने से
अब उसे चल आगे बढे
दिल अब भी है अड़ा;
कहता है नहीं बढ़ना
आगे बस यही है मुझे
रहना अब खड़ा;
तुम थी साथ तो भी
लड़ाई अकेले ही लड़
रहा था मैं;
तुम नहीं हो साथ तब
भी लड़ाई अकेले ही लड़
रहा हुं मैं ;
तुम्हारे लिए तो हमेशा
ही सबसे लड़ा मैं पर आज
खुद से ही लड़ रहा हुं मैं !
Wednesday, 23 January 2019
दायरे में सिमटा वज़ूद !
दायरे में सिमटा वज़ूद !
••••••••••••••••••••••••
जैसे अन्धकार में
जलते दीपक की लौ
और उसके वृत्त में
खड़ा दास की मुद्रा
में उसका साया;
वैसे ही तुम्हारी
गोलाकार बाँहों
के दायरे में सिमटा
मेरा वज़ूद;
दुनिया में सबसे
खुशहाल जीवन
मेरा अक्सर ऐसा
ही सोचा करता हूँ;
मन कहता है इतना
ही क्यों नहीं हो जाता है
मेरे उम्र का दायरा;
जिस तरह जलते
दीपक की लौ बुझते
ही उसके साये की सांसें
भी थम जाती है;
ठीक वैसे ही तेरी
गोलाकार बाँहों के
दायरे से बाहर आते
ही मेरी भी सांसें थम
जाए बस !
Tuesday, 22 January 2019
वर्तमान और भविष्य !
वर्तमान और भविष्य !
••••••••••••••••••••••••
जब पहली बार
थामा था मैंने
तुम्हारा हाथ
मेरे इन हाथो में ;
तब तुम्हारे एक
हाथ में था तुम्हारा
अतीत और दूसरे हाथ
में था हम दोनो का भविष्य;
मेरे दिमाग ने कहा
पहले पढू तुम्हारा बिता
अतीत पर मेरे इस दिल ने कहा;
बढ़ो बनाने दोनों का
एक सुन्दर भविष्य ओर
फिर उस दिन भी सुनी थी
मैंने अपने दिल की ही बात;
आज फिर एक बार मानने
को मन कर रहा है उसी दिल
की कही बात इसलिए एक बार
फिर चाहता हु देना अवसर तुम्हे
मेरे पास लौट आने का;
लेकिन सुनो इस बार फेंक
आना अपने अतीत के हर
एक काले पन्ने को सजाने
अपने हाथों से हम दोनो का
वर्तमान और भविष्य !
Monday, 21 January 2019
योगदान का आभार !
योगदान का आभार !
•••••••••••••••••••••••
उस ऊपर वाले ने तो
उसी दिन लिख दिया
था तुम्हारा साथ मेरे
जीवन जिस पहले दिन
मैंने रखा था अपना पहला
कदम बहुत ही सूक्ष्म रूप में
अपनी जननी की कोख में;
आज आभार प्रकट करने
का मन कर रहा है उन सभी
का जिन्होंने अपना योगदान
दिया तुम्हे मुझसे मिलाने में;
सबसे पहले आभार उस
विराट प्रकृति का जिसमे
ये सब वैसे ही घटित हुआ
जैसे इसको घटित होना था;
आभार उस पथ का जिस
पथ पर चल कर तुम मुझे
मिली हां आभार उस तलाश
का जिसने लगातार प्रेरित
किया मुझे खोजने में मेरी मंज़िल;
और आभार तुम्हारा अपना
हाथ मेरे हाथ में देने के लिए
इस वादे के साथ की वो हाथ
अब होगा हाथ में मेरे आने
वाले हर जन्म में भी यूँ ही !
Sunday, 20 January 2019
जायज़ ही जायज़ है !
जायज़ ही जायज़ है !
•••••••••••••••••••••••
प्रेम और युद्ध में
सबकुछ जायज़ है
ऐसा कई जगह
सुना और पढ़ा भी है;
हां ऐसे ही कई वाकिये
का मैं गवाह भी बना हु
लेकिन मेरी नज़र में युद्ध
में ही सब कुछ जायज़ है;
और युद्धों में इंसानों व
देवताओं को भी नाज़ायज़
करते हुए देखा है सुना भी है;
लेकिन मुझे आज तक
कोई ऐसा इंसान नहीं
मिला जो प्रेम में होकर
कुछ भी नाज़ायज़ करने
को आतुर हुआ है या हुई है;
चाहे प्रेम को पाने के लिए
हो या प्रेम के लिए बलिदान
के लिए हो लेकिन मेरी नज़र
में ये किसीयुद्धोन्मुख इंसान
ने अपने युद्ध को जायज़ ठहराने
के लिए शब्द प्रेम का इस्तेमाल
मात्र किया होगा ;
युद्ध में सब कुछ जायज़ है
और हो भी सकता है पर प्रेम
में सिर्फ जायज़ ही जायज़ था
जायज़ ही जायज़ था और जायज़
ही जायज़ है !
Saturday, 19 January 2019
यु ही जुड़ा रहूँगा तुमसे !
यु ही जुड़ा रहूँगा तुमसे !
••••••••••••••••••••••••••
आज से हज़ारों साल
बाद भी मैं रहूँगा जुड़ा
तुमसे यु ही जैसे फूल
जुड़ा है रहते है अपनी
अभिन्न खुसबू से;
आने वाले हर जन्म
भी मैं यूँ ही रहूँगा साथ
तुम्हारे जैसे पेड़ जुड़ा
रहता है अपनी अटूट
जड़ से;
मैं यु ही जगाये रखूँगा
अपनी प्यास तुम्हारे
प्रेम की जैसे रेगिस्तान
में भटका कोई पथिक
खोजता है अपनी
प्यास को;
मैं यु रहूँगा तुम्हे तकते
अपलक जैसे कोई अबोध
बच्चा ताकता है अपनी
जननी को जताने अपनी
समस्त जिज्ञासा;
हाँ आज कल और आने वाले
हज़ारों साल बाद भी मैं रहूँगा
जुड़ा तुमसे यु ही जैसे जुडी है
रूह इस देह से !
Friday, 18 January 2019
मेरे स्पर्श का अनुभव !
मेरे स्पर्श का अनुभव !
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जैसा महसूस होता है
तुम्हे मेरा स्पर्श पाकर
वैसा ही अनुभव कराना
चाहता हु मैं तुम्हे लिख
कर मेरी कविताओं से;
जब-जब तुम पढ़ो मेरी
कविता तो तुम्हे महसूस
हो की तुमने अभी अभी
किया है मुझे स्पर्श;
और मैं मेरे उन एहसास
को उतरता देख सकू तुम्हारे
हृदय के रसातल में;
ताकि जिस तरह तुम मुझसे
दूर रह कर भी खुश रहती हो
उसी तरह मैं भी मेरे एहसासों
को तुम्हारे हृदयतल में बसा
कर अनिश्चिंतता के बादलों
के पार भी तुम्हे देख सकू;
ताकि तुम्हारे इंतज़ार में जो
रुसवाईयाँ मुझे घेरें रहती है
उनको चिढ़ाते हुए उन्ही की
सोहबतों में अपनी अभिव्यक्ति
से तुम्हे अपने स्पर्श का अनुभव
कराता रहुँ !
Thursday, 17 January 2019
सिरहन की पगडण्डी !
सिरहन की पगडण्डी !
•••••••••••••••••••••••
सिहरन की पगडण्डी
पर चलते चलते देखो
कैसे मेरे रोंगटे खड़े हो रहे है;
तुम्हारी आद्रता को
महसूस करते करते
ये लिख रहे है मेरे रग
रग पर तुम्हारा नाम;
मैं बैठा हर पल तुम्हारी
धड़कनो के सिहराने सुन
रहा हु दस्तक अपने अधूरे
सपनो की;
जिन्हे अक्सर सुला देता हु
मैं देकर झूठी तसल्ली लेकिन
फिर जब तुम उन्हें फिर एक बार
सहला देती हो;
तो वो फिर एक बार ज़िद्द पर
अड़ जाते है और मेरे कदम से
कदम मिला एक बार फिर
चल पड़ते है;
उसी सिहरन की पगडण्डी
पर और चलते चलते जब
मेरे रोंगटे खड़े हो जाते है ;
तब वो तुम्हारी आद्रता को
महसूस करते हुए लिखते है
मेरे रग रग पर तुम्हारा नाम !
Wednesday, 16 January 2019
मेरी चाहत है !
मेरी चाहत है !
••••••••••••••••
मेरी चाहत है
तुम्हे ऐसे चाहने की
जैसे चन्द्रमा चाहता है
बेअंत समंदर को ;
मेरी चाहत है
तुम्हे ऐसे चाहने की
जैसे सूरज की किरण
सीप के दिल को चाहती है ;
मेरी चाहत है
तुम्हे ऐसे चाहने की
जैसे खुसबू को हवा
रंग से हटकर चाहती है ;
मेरी चाहत है
तुम्हे ऐसे चाहने की
जैसे कोई शिल्पकार
पत्थर में देख लेता है
अपने ईश को और उस
पत्थर को तराश कर
पा भी लेता है अपने ईश को ;
मेरी चाहत है
तुम्हे ऐसे चाहने की
जैसे ख्वाब को चाहता है
नव यौवन ;
मेरी चाहत है
तुम्हे ऐसे चाहने की
जैसे बारिश की दुआ
मांगते है छाले से भरे पांव ;
हा है मेरी चाहत
तुम्हे ऐसे चाहने की
जैसा अब तक किसी ने
किसी और को ना चाहा हो !
Tuesday, 15 January 2019
एक पूरी प्रक्रिया !
एक पूरी प्रक्रिया !
•••••••••••••••••••
गेहू और फिर उस
गेहू से बनता उसका
आटा है ;
और उस आटे से
बनती है उसकी लोई
फिर लोई से बनती
रोटी है ;
ये एक पूरी प्रक्रिया
है जिस से गुजर कर
गेहू रोटी की शक्ल
अख्तियार करता है ;
लेकिन इस पूरी प्रक्रिया
में बनाने वाले इंसान की
मेहनत के साथ-साथ अगर
उसकी भावना जुड़ जाती है ;
तब उस रोटी को खाने
वाले का सिर्फ पेट ही
नहीं भरता बल्कि उसका
मन भी तृप्त होता है ;
ठीक इसी प्रकार प्रेम
में देखे गए साझा ख्वाबों
को भी एक पूरी प्रक्रिया से
गुजरना पड़ता है ;
थोड़ी सी असावधानी
जिस प्रकार बानी बनाई
रोटी को जला देती है ;
वैसे ही थोड़ी सी
असावधानी साझा
देखे गए ख्वाबों को
भी चूर-चूर कर देती है !
Monday, 14 January 2019
पतंग का जीवन
पतंग का जीवन
••••••••••••••••
मेरी डोर है तेरे हाथ
इसका रखना सदा
तुम ध्यान;
पतंग का जीवन सदा
रहे बंधा उसकी डोर में
इसका रखना सदा
तुम ध्यान;
मेरी डोर तेरे हाथ
मेला लगा है आकाश
में मेरी पतंग उलझे नहीं
मेरी पतंग कटे नहीं इसका
भी रखना तुम सदा ध्यान;
मेरी डोर तेरे हाथ
मेरी पतंग किसी ओर
डालिओं में ना फसे
इसका रखना सदा
तुम ध्यान;
मेरी पतंग को रहे
सदा हवा की गति
और दिशा का ज्ञान
इसका रखना सदा
तुम ध्यान ;
मेरी डोर तेरे हाथ
कितनी ही देर रहे
वो चाहे ऊंचाई पर
पर अंततः करे वो
प्रयाण तेरी ओर
इसका रखना सदा
तुम ध्यान;
पतंग का आराध्य
रहे सदाशिव सदा
इसका भी रखना सदा
तुम ही ध्यान !
Sunday, 13 January 2019
सबसे प्यारी आदत !
सबसे प्यारी आदत !
••••••••••••••••••••••
क्या होगा तुम्हारी उस
सबसे प्यारी आदत का
जब तुम्हे पता चलेगा
वो अब तुमसे बहुत दूर
जा चूका है;
कि जिस आदत के बल
तुम उसे चिढ़ाती थी उसे
घंटों घंटो मुँह बना-बना
कर वो अब तुमसे बहुत
दूर जा चूका है;
जहा उसे अब तुम तंग
नहीं कर सकती अपनी
उसी आदत, लापरवाहियों
से तो क्या होगा तुम्हारी
उस आदत का;
जैसे उसकी चाहत थी
रोज सुबह तुम्हे छोड़ने
की तुम्हारे ही ऑफिस;
जैसे उसकी चाहत थी
रोज शाम तुम्हारे साथ
बातें करते हुए टहलने की;
जैसे उसकी चाहत थी
तुम्हारे साथ एक घर
बसा दोनों के बच्चो
के साथ खेलने की;
ऐसी कितनी ही चाहतों
के साथ वो अब बहुत
दूर चला गया है तुमसे
अब बताओ क्या होगा
तुम्हारी उस सबसे प्यारी
आदत का;
जब तुम्हे पता चलेगा
वो अब तुमसे बहुत दूर
जा चूका है !
Saturday, 12 January 2019
एक तेरा जिक्र !
एक तेरा जिक्र !
•••••••••••••••••
मेरे एहसास के
हर एक पन्ने पर
सिर्फ एक तेरा जिक्र
किया है मैंने;
तेरे किये हर एक
वादों और उन वादों
को ना निभा पाने की
तेरी हर एक वजह का
भी जिक्र किया है मैंने;
हां उन वजह में खो
रही मेरी एहमियत का
भी जिक्र किया है मैंने;
और तेरे फिर से किये
गए हर एक नए वादे
का भी जिक्र किया है मैंने;
और उन नए वादों पर
मेरे द्वारा किये गए
भरोषे का भी जिक्र
किया है मैंने;
और जिक्र किया है मैंने
तेरी हर एक लापरवाहियों
का और मेरी हर एक
परवाह का भी;
हां अपने हर एक
एहसास के पन्ने पर
सिर्फ एक तेरा जिक्र
किया है मैंने !
Friday, 11 January 2019
खामोश चाँद !
खामोश चाँद !
•••••••••••••••
रात है खामोश
और सारे सितारे
भी है खामोश;
पेड़ की एक
डाल पर बैठा
पीला-पीला सा
चाँद भी है खामोश;
मैं एक सिर्फ
तुम्हे सोच रहा
हूँ और वो सोच
मुझसे बातें कर
के है खामोश;
तुम्हारी वो सोच
जो कभी नहीं
रहती मुझसे दूर
एक पल के लिए
भी;
तो फिर तुम
कैसे रख लेती
हो खुद को यु
दूर मुझसे रह
कर के खुद को
खामोश !
Thursday, 10 January 2019
तुम्हारी अभिलाषा !
तुम्हारी अभिलाषा !
•••••••••••••••••••••
हाँ मुझे है
अभिलाषा
तुम्हारी ,
क्योंकि तुम्हारा
साथ कभी भी
मुझे भटकने
नहीं देता ,
तुम्हारा कोमल
सा नरम सा स्पर्श
मुझ में नयी ऊर्जा
का संचार कर देता है ,
तुम्हारा मेरे
जीवन में होना
मुझे कभी शुन्य
नहीं होने देता ,
शायद ये
तुम्हारी ही
अभिलाषा है,
जो मेरे जीवन
को संपूर्ण बना
उसे सम्पूर्णताः
प्रदान करती है !
Tuesday, 8 January 2019
अनकही बातों का अर्थ !
अनकही बातों का अर्थ !
••••••••••••••••••••••••••
जिन्दगी की भागमभाग
में अब तक भाग ही रहे हो
अब तक तुम;
इसलिए समझ ही नहीं पाए
कभी मेरी उर्वर आँखों की इस
नीरवता में बसा जो स्नेह है
तुम्हारे लिए;
मेरे कोमल मन का प्यार है
तुम्हारे लिए मेरे स्पर्श की
गर्मी है तुम्हारे लिए मेरे
अहसासों की नरमी है
तुम्हारे लिए;
पर तुम कभी महसूस
ही ना कर पाए उन फूलों
की खुशबू जो दबे रह गए हैं
कहीं मेरे दिल के वर्क में;
तुम कभी जान ही नहीं पाए
और उन अनकही बातों के
अद्भुत अर्थ को तुम कभी
जान ही नहीं पाए;
तभी तो अब तक खुद को
मेरे पास नहीं ला पाए हो
तुम जिन्दगी की भागमभाग
में अब तक भाग ही रहे हो तुम;
इस भागमभाग में क्या क्या
खोया है तुमने ये अब तक
जान ही नहीं पाए हो तुम !
Monday, 7 January 2019
मेरी आकंठ प्यास !
मेरी आकंठ प्यास !
•••••••••••••••••••••
तुम्हारे छूने भर से
नदी बन तुम्हारे ही
रग-रग में बहने को
आतुर हो उठती हु;
तुम बदले में रख देते हो
कुछ खारी-खारी बूंदें मेरी
शुष्क-शुष्क हथेलियों पर;
वो चमकती हैं तब तक
मेरी इन हथेलिओं पर
जब तक तुम साथ होते हो;
और तुम्हारे दूर जाते ही
लुप्त हो जाती है ठीक उस
तरह जैसे सूरज के अवसान
पर मृगमरीचिका लुप्त हो जाती है,
और तब मेरी आकंठ प्यास को
तुम्हारी वो कुछ खारी-खारी बूंदें
भी अमूल्य लगने लगती है !
Sunday, 6 January 2019
मेरे भावों की कलम !
मेरे भावों की कलम !
•••••••••••••••••••••••
जब लगे तुम्हे की
दूर बहुत हैं...राम
तो तुम मूंद अपनी
आँखों को महसूसना
उनमे उभर आयी उस
नमी को... और;
जब कुछ बुंदे लुढ़क
आये बाहर उसमे...मुझे
अपने सबसे करीब पाना;
मेरा वादा है मैं यु ही
सदा रहूँगा साथ ...तुम्हारे
अपने भावों को तुम्हारी
स्याही से उकेरते हुए;
मेरे भावों की कलम
और तुम्हारी प्रेम की
स्याही... उकेर रही होगी
सदा हमारा प्रेम;
तुम सिर्फ इतना करना
की मेरे उकेरे गए एक-एक
अक्षर को अपने कंठ से लगाना;
और जो स्वर निकले तुम्हारे
कंठ से उसमे सदा मुझे ही
अपने सबसे करीब...पाना
फिर मैं यु ही सदा रहूँगा
साथ तुम्हारे...अपने भावों
को तुम्हारे प्रेम की स्याही
से उकेरते हुए !
Saturday, 5 January 2019
तुम्हारी खामोशियाँ !
तुम्हारी खामोशियाँ !
••••••••••••••••••••••
मै समेट कर रख
लूंगा तुम्हारी सारी
खामोशियाँ ;
और तुम्हारी यादों
से कहूंगा यु बेतहाशा
बहना बंद करे ;
पत्थरों से पानी नहीं
निकलता तुम्हारी
कोहनियाँ छिल कर
लहूलुहान हो जाएँगी ;
आंसुओं के सूखने के
बाद फिर नमक नहीं
बहता हाँ जम जरूर
जाता है ;
मन के किसी कोने
में यादों की ईंट चिन
कर एक नमक का
बांध बनाना है ;
ये दर्द एक बार फिर
नहीं गुनगुनाना है;
बिना किसी शिकायत
के जीना है और जाते
समय सारा कुछ साथ
लेकर जाना है !
Friday, 4 January 2019
वो भ्रमित करता भ्रम !
वो भ्रमित करता भ्रम !
••••••••••••••••••••••••
मेरे आँसुओं की
बारिश से भीगी
मेरी ही रातों में;
मेरी ही खिड़की
के झरोखों से आती
हुई रोशनी में;
हलके अँधेरे और
हलके उजाले की
छुटपुट आहटों के
बीच-बीच में;
हमेशा ऐसा लगता
है जैसे तुम आयी हो
अभी-अभी कंही मेरे
ही घर में;
फिर सिलसिला शुरू
होता है तुम्हे खोजने
का पुकारने का की
आखिर तुम हो यही
कंही मेरे घर में;
और ये सिलसिला
अलसुबह तक यु ही
चलता है रहता और
कंही नहीं बल्कि मेरे
ही घर में;
फिर कंही दिन ढले
जाकर होता है एहसास
मैं था ऐसे ही किसी एक
दिग्भर्मित भ्रम में;
तुम तो आयी ही नहीं
भीगी पलकों और रुंधे
गले के साथ लौट आता
हु तब मैं;
अपने ही बिस्तर पर
कुछ इस तरह ही अक्सर
गुजरती है मेरी रातें यु
तेरे भ्रम में !
Thursday, 3 January 2019
मन की खिड़की !
मन की खिड़की !
••••••••••••••••••
ज़िन्दगी की बैचेनियों
से घबराकर और डरकर
मैंने मन की खिड़की से
बाहर झाँका;
तो बाहर ज़िन्दगी
की बारिश जोरो से
हो रही थी;
और वक़्त के तूफ़ान
के साथ साथ किस्मत
की आंधी भी आ रही थी;
मैंने अपनी शुष्क
आँखों से देखा तो
दुनिया के किसी
अँधेरे कोने में तुम
चुपचाप बैठी हुई थी;
शायद अपनी ज़िन्दगी
को तलाश रही थी और
इधर मैं अपनी ज़िन्दगी
को तलाश रहा था;
इसी ज़िन्दगी की बारिश
और किस्मत के तूफ़ान
ने हमें मिलाया था;
दोनों को जिस ज़िन्दगी
की तलाश थी वो उन्हें
मिल मन की खिड़की
के बहार झाँकने से ही
मिली थी !
Wednesday, 2 January 2019
नव-नूतन प्रेम !
नव-नूतन प्रेम !
•••••••••••••••••
मैं प्रेम हूँ,
नव नूतन वर्ष का
यह पहला दिन मैं,
अपनी प्रीत के नाम करता हूँ;
ठंड से ठिठुरती अकेली
मेरी ज़िन्दगी अपने ही
घुटनों के बीच ठुड्डी
टिकाए सिकुड़कर जो
है बैठी, गुमसुम सी उसे
भी मैं आज अपनी प्रीत
के नाम करता हूं;
सूरज अभी-अभी,
गर्म मुलायम धूप का
जो सबसे चमकीला टुकड़ा
मेरी पीठ पर डाल कर गया है,
उस से उपजी समस्त उर्मा भी,
मैं आज अपनी प्रीत के नाम करता हूँ;
तुम उसे खुद में कर के
जज्ब करना उसे पोषित
करने को अपने दोनों के
"मैं" का विस्तार वो अपना
"मैं" भी आज मै अपनी प्रीत
के नाम करता हूं,
मैं प्रेम हूँ,
जिस प्रीत का उसकी
ये लिखित परिभाषा भी
मैं आज मेरी प्रीत तुम्हारे
नाम करता हूं।
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प्रेम !!
ये सच है कि प्रेम पहले ह्रदय को छूता है मगर ये भी उतना ही सच है कि प्रगाढ़ वो देह को पाकर होता है !
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भाविउ मेटि सकहिं त्रिपुरारी ___________________ बदल सकता है,प्रेम का रंग ; बदल सकता है ,मन का स्वभाव ; बदल सकती है ,जीवन की दिशा ; ...
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