मैं इश्क़ के पानी में हल हो गई हूँ ,
अब तक अधूरी थी मुकम्मल हो गई हूँ ;
पलट पलट कर आता है जो कल ,
मैं वो आने वाला कल हो गई हूँ ;
बहुत देर से पाया है मैंने खुद को ,
मैं अपने सब्र का फल हो गई हूँ ;
हुआ है मोहब्बत को इश्क़ जब से ,
उदासी तेरा आँचल मैं हो गई हूँ ;
सुलझाने से और उलझती जा रही हूँ ,
मैं अपनी ज़ुल्फ़ का बल हो गई हूँ ;
बरसता है जो बे-मौसम ही अक्सर ,
मैं उस बारिश में जल थल हो गई हूँ ;
मेरी ख़्वाहिश है की मैं तुम हो जाऊ ,
मुझे लगता है की मैं पागल हो गई हूँ !
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