Wednesday, 19 June 2019

फिर क्यूँ परेशां हूँ मैं !


सब कुछ तो है,
पास मेरे और है; 
थोड़ी सी आस भी,
फिर क्यूँ परेशां हूँ मैं !  
सब कुछ तो है,
पास मेरे एक; 
छोटी सी ज़िन्दगी,
पाषाण सा तन;
और ये शिला सा, 
स्थिर मन भी तो है;
फिर क्यूँ परेशां हूँ मैं !  
सब कुछ तो है,
पास मेरे और; 
हाँ रुकी-रुकी सी, 
सांस भी तो है;
फिर क्यूँ परेशां हूँ मैं ! 
सब कुछ तो है,
पास मेरे बस; 
थोड़ी सी ख़ुशी,
थोडा सा सुकून;
और थोडा सा, 
चैन ही तो नहीं है;
फिर क्यूँ परेशां हूँ मैं !

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !