दरवाजा बंद कर दस्तक भी देती हो ,
फिर छुप कर आवाज़ भी लगाती हो ;
चुप रहने को कह कर मुझे तुम खुद ही ,
टेढ़ी-टेढ़ी नज़रो से सवाल भी करती हो ;
रोज रोज मेरा साथ देने के नाम पर तुम ,
कुछ देर मुझसे मिलने भी चली आती हो ;
फिर तुम ही बताओ क्यों तुम बार-बार ,
मुझे ऐसी दोहरी दुविधा में डाल जाती हो ;
यूँ रोज कल आने का बोल कर तुम मुझे ;
क्यों रोज यूँ अकेला छोड़ जाती हो !
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