Wednesday, 26 June 2019

अकेला छोड़ जाती हो !


दरवाजा बंद कर दस्तक भी देती हो , 
फिर छुप कर आवाज़ भी लगाती हो ;
  
चुप रहने को कह कर मुझे तुम खुद ही ,   
टेढ़ी-टेढ़ी नज़रो से सवाल भी करती हो ;

रोज रोज मेरा साथ देने के नाम पर तुम , 
कुछ देर मुझसे मिलने भी चली आती हो ;

फिर तुम ही बताओ क्यों तुम बार-बार , 
मुझे ऐसी दोहरी दुविधा में डाल जाती हो ;

यूँ रोज कल आने का बोल कर तुम मुझे ; 
क्यों रोज यूँ अकेला छोड़ जाती हो !

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !