भावनाए जब बहती है
तो बहकर वो सब कुछ
ही तो कह देना चाहती है
और कई बार वो खो जाती है
मन के अथाह महा सागर की
किसी ऊँची नीची होती लहर
के नीचे दबकर जैसे कोई
अनजान भंवर लीन लेता है
उसे खुद में ठीक वैसे ही
भावनाएं मन में उठती है
और मन ही में मर जाती है
या कभी-कभी वो बन आंसू
खुद अपनी मौत बन जाती है
कभी कोई अधूरा चित्र बना
वो अपनी लाचारी कहती है
और कभी-कभी पाकर वो
कलम और स्याही का सहारा
कविता भी बन जाती है...
जब भावनाए बहती है
तो बहकर वो सब कुछ
ही तो कह देना चाहती है
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