Tuesday, 25 June 2019

ख़ामोशी !


ख़ामोशी को खामोश समझना , 
भूल ही होती है अक्सर ;

कितनी हलचल और अनगिनत 
ज्वार भाटे समाए होते है इसमें अक्सर ;

आँखों में समाई नमी जाने कितने 
समंदर छुपाये होती हैं अपने अंदर अक्सर ;

नहीं टूटते ऐसे मन के ज्वार -भाटे ,
जब तक कोई कंधे को छू कर ना आँखे अक्सर ;

कि मैं तुम्हारे साथ हूँ हर पल ;
हर परिस्थिति में समझे तुम !

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !