ख़ामोशी को खामोश समझना ,
भूल ही होती है अक्सर ;
कितनी हलचल और अनगिनत
ज्वार भाटे समाए होते है इसमें अक्सर ;
आँखों में समाई नमी जाने कितने
समंदर छुपाये होती हैं अपने अंदर अक्सर ;
नहीं टूटते ऐसे मन के ज्वार -भाटे ,
जब तक कोई कंधे को छू कर ना आँखे अक्सर ;
कि मैं तुम्हारे साथ हूँ हर पल ;
हर परिस्थिति में समझे तुम !
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