इश्क़ को यूँ आत्मसात करो ,
ख़त्म तुम अपनी ज़ात करो ;
इश्क़ से जब मिलने जाओ ,
पहले ख़ुद को तुम तैयार करो ;
दिन भर खुद के साथ रहो ,
इश्क़ में बसर अब रात करो ;
रात की ज़ुल्फ़ सँवर जाए ,
गर हिज्र को तुम वस्ल करो ;
इश्क़ को तुम दिल में बसाओ ,
फिर उसकी धड़कनों पर कब्ज़ा करो ;
मुझ पर कुछ ऐसे प्यार लुटाओ ,
बंजर जमीन पर जैसे बरसात करो ;
बात हो जब भी इश्क़ के बारे में ,
अपने लहजे को तुम थोड़ा नर्म करो ;
उम्र की पूँजी यूँ ही ख़त्म ना हो ,
कुछ कम खर्च तुम इसे उस पर करो ;
नयनों का अमृत चखने के लिए ,
तर्क सभी तुम आज़माया करो !
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