Monday, 24 June 2019

भयहीन प्रेम !


भयहीन प्रेम !

प्रेम में होने से
भय कैसा ?
मानव जीवन
का सारा लेखा 
जोखा बाँच पता 
यही चलता है 
चिर काल से ही
प्रेम में उत्थान 
पाये अस्तित्व ही
जी पाये हैं
काल की सीमाओं को 
वो ही पार कर पाये हैं
इस अदभुत अनुभव
को जी पाने 
की संभावना
से मुँह क्यों मोड़ना ?

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !