Monday, 10 June 2019

मेरे हमसफ़र तुम हो !


और कैसे बताऊँ तुम्हे की तुम मेरे क्या हो , 
मेरी ग़ज़लें मेरी नज़्में मेरा लहजा तुम हो ;

दुनिया वालों से वास्ता ही नहीं रक्खा मैंने , 
मुझ को दुनिया से ग़रज़ क्या मिरी दुनिया तुम हो ;

तुम को सदा सर झुका कर ही पढ़ा है मैंने , 
जैसे आसमां से उतरा कोई फरिश्ता तुम हो ; 

तुम न होते तो मेरा पुनर्जन्म ही ना होता , 
मेरी ज़िन्दगी की स्याह रातों के चाँद तुम हो ; 

मसीहाओं से मरहम की तलब नहीं मुझ को ,
दिल ये जानता है की मेरे ज़ख़्मों का इलाज तुम हो ; 

मेरी साँसों का वसीला है तुम्हारी निस्बत , 
मेरी पांव की जमीं हो तुम मेरे सर का आसमां तुम हो ; 

अपनी हाथों की लकीरों पर पूरा भरोषा है मेरा ,  
मेरे हमसफ़र मेरी तक़दीर में लिखे तुम हो ! 

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !