और कैसे बताऊँ तुम्हे की तुम मेरे क्या हो ,
मेरी ग़ज़लें मेरी नज़्में मेरा लहजा तुम हो ;
दुनिया वालों से वास्ता ही नहीं रक्खा मैंने ,
मुझ को दुनिया से ग़रज़ क्या मिरी दुनिया तुम हो ;
तुम को सदा सर झुका कर ही पढ़ा है मैंने ,
जैसे आसमां से उतरा कोई फरिश्ता तुम हो ;
तुम न होते तो मेरा पुनर्जन्म ही ना होता ,
मेरी ज़िन्दगी की स्याह रातों के चाँद तुम हो ;
मसीहाओं से मरहम की तलब नहीं मुझ को ,
दिल ये जानता है की मेरे ज़ख़्मों का इलाज तुम हो ;
मेरी साँसों का वसीला है तुम्हारी निस्बत ,
मेरी पांव की जमीं हो तुम मेरे सर का आसमां तुम हो ;
अपनी हाथों की लकीरों पर पूरा भरोषा है मेरा ,
मेरे हमसफ़र मेरी तक़दीर में लिखे तुम हो !
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