एक अदना बूंद
सी पहचान रखता हूँ
बाहर से शांत हूँ
मगर अंदर एक
तूफान रखता हूँ
रख के तराजू में
अपने प्यार की
खुशियाँ दूसरे
पलड़े में मैं अपनी
जान रखता हूँ
किसी से क्या उस
रब से भी कुछ नहीं
माँगा अब तक मैंने
मैं मुफलिसी में भी
नवाबी शान रखता हूँ
मुर्दों की बस्ती में
ज़मीर को ज़िंदा
रख कर ए जिंदगी
मैं तेरे उसूलों का
मान रखता हूँ !
No comments:
Post a Comment