Sunday, 2 June 2019

बारिश की बूंदें !


मन में कितनी उमंगें जगाती है , 
ये बारिश कितना कुछ कहती है ;  

अनगिनत सुनहरे ख़्वाब सजाती है , 
जब भी मैं इसकी बूंदों में नहाती हूँ ;

कितना कुछ ये मुझमे बोती रहती है , 
मुझे स्त्री होने का एहसास कराती है ;

रोज कितना कुछ नया सिखाती है , 
मुझे नाज़ उठाना सिखाती रहती है ;

मेरे रोम-रोम को झंकृत करती है ,
संगीत और साज़ बजाती रहती है ;

अपनी बूंदों की मनमानियों से , 
मेरे रोम रोम में आग लगाती रहती है ;

मेरे लबों पर ये दुआ पिया की सजाती है , 
प्रेम प्रीत की ये जोत जगाती रहती है ;

मन में कितनी उमंगें जगाती है ,
ये बारिश कितना कुछ कहती है ! 

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !