मन में कितनी उमंगें जगाती है ,
ये बारिश कितना कुछ कहती है ;
अनगिनत सुनहरे ख़्वाब सजाती है ,
जब भी मैं इसकी बूंदों में नहाती हूँ ;
कितना कुछ ये मुझमे बोती रहती है ,
मुझे स्त्री होने का एहसास कराती है ;
रोज कितना कुछ नया सिखाती है ,
मुझे नाज़ उठाना सिखाती रहती है ;
मेरे रोम-रोम को झंकृत करती है ,
संगीत और साज़ बजाती रहती है ;
अपनी बूंदों की मनमानियों से ,
मेरे रोम रोम में आग लगाती रहती है ;
मेरे लबों पर ये दुआ पिया की सजाती है ,
प्रेम प्रीत की ये जोत जगाती रहती है ;
मन में कितनी उमंगें जगाती है ,
ये बारिश कितना कुछ कहती है !
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