एक सच !
तुमसे अच्छा मुझे
तुम्हारा नाम लगता है
जो हमेशा ही रहता है
मेरे आस-पास ही
महका-महका सा
और जब धीमे से
मैं गुनगुनाता हूँ
तुम्हारा वो नाम
तो हवा में घुल कर
वो हवा को भी जैसे
महका जाता है
कभी-कभी वो नाम
मुझे खिड़की से झांकती
रेशमी-मुलायम सी
सुबह के सूरज की
पहली किरण सा
ही लगता है
तो कभी मुझे
वो सर्द रातों में
गर्म लिहाफ सा
लगता है वो तुम्हारा
नाम मुझे कभी-कभी
तुमसे भी अच्छा लगता है !
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