Friday, 28 June 2019

बारिश की बुँदे !


बारिश की बुँदे !

बारिश की ये रिमझिम 
बुँदे मुझे तुम्हारे स्पर्श,
का एहसास दिलाती है !

वो कभी तुम्हारी ही 
तरह मेरी इन पलकों,
पर ठहर जाती है !

तो कभी रूककर मेरे 
होंठों पर बिलकुल 
तुम्हारी ही तरह, 
मुस्कराती है !

तुम छायी रहती हो 
मेरे अस्तित्व के आकाश, 
पर कुछ इस तरह !

कि मुझे हर शय में, 
सिर्फ और सिर्फ एक 
तुम नजर आती हो !

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !