Tuesday, 11 June 2019

ऐसा क्यों है !


सुना था की, 
एक से नहीं रहते हालात, 
एक से नहीं रहते तअल्लुक़ात, 
एक से नहीं रहते सवालात; 
एक से नहीं रहते जवाबात !

सुना था की,
एक से नहीं रहते तजुर्बात, 
एक से नहीं रहते दिन-रात, 
एक सी नहीं रहती कायनात, 
एक सिर्फ ऊपर वाले के सिवा;
एक सा कोई नहीं रहता यहाँ !

फिर ऐसा क्यों है, 
कि मैं आज भी वैसा ही हूँ,
तेरे लिए जैसा उस पहले दिन था;
जिस पहले दिन मैंने तुम्हे देखा था ! 

फिर ऐसा क्यों है, 
कि आज भी दो घड़ी जब तुम, 
नहीं दिखती मुझे तुम तो क्यूँ ;
मन मेरा बैचैन हो उठता है !

फिर ऐसा क्यों है, 
कि आज भी जिस दिन तुम, 
ना मिलो तो वो दिन गुजरता, 
ही नहीं वैसा जैसा दिन गुजरता है ; 
जब तुम होती हो साथ मेरे !

फिर तुम ही बताओ, 
क्यूँ हूँ मैं आज भी वैसा, 
जैसा था मैं उस दिन जिस; 
दिन मैं मिला पहली बार तुमसे !

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !