सुना था की,
एक से नहीं रहते हालात,
एक से नहीं रहते तअल्लुक़ात,
एक से नहीं रहते सवालात;
एक से नहीं रहते जवाबात !
सुना था की,
एक से नहीं रहते तजुर्बात,
एक से नहीं रहते दिन-रात,
एक सी नहीं रहती कायनात,
एक सिर्फ ऊपर वाले के सिवा;
एक सा कोई नहीं रहता यहाँ !
फिर ऐसा क्यों है,
कि मैं आज भी वैसा ही हूँ,
तेरे लिए जैसा उस पहले दिन था;
जिस पहले दिन मैंने तुम्हे देखा था !
फिर ऐसा क्यों है,
कि आज भी दो घड़ी जब तुम,
नहीं दिखती मुझे तुम तो क्यूँ ;
मन मेरा बैचैन हो उठता है !
फिर ऐसा क्यों है,
कि आज भी जिस दिन तुम,
ना मिलो तो वो दिन गुजरता,
ही नहीं वैसा जैसा दिन गुजरता है ;
जब तुम होती हो साथ मेरे !
फिर तुम ही बताओ,
क्यूँ हूँ मैं आज भी वैसा,
जैसा था मैं उस दिन जिस;
दिन मैं मिला पहली बार तुमसे !
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