Friday, 7 June 2019

राजकुमारी मेरी आँखें !


कितनी शिद्दत से तुम्हे पुकारी थी मेरी ऑंखें ,
ख़्वाबों के बिखर जाने से हार गयी मेरी आँखें ;

दीपों की भांति सारी रात जागती मेरी आँखें ,
नींदों के शबिस्तान में भारी भारी मेरी आँखें ;

तन्हाई में भी कितने ख्वाब सजाती है ऑंखें , 
बुझ सकती नहीं रंज की मारी मेरी आँखें ;

तुम्हे इस मकां की मकीं बनाने की खातिर ,  
शबनमी हुई और भी प्यारी ये मेरी आँखें ;

एक तेरी ज़ियारत से छलकता है उजाला इसमें ,
एक तेरे सुर्मा-ए-मंज़र ने निखारी मिरी आँखें ;

सपनों के तख़्त-ओ-ताज पर बैठी है ,
ऐसे की जैसे राज-कुमारी हो मेरी आँखें ;

हिज़्र के मौसमों ने भी अपना फ़र्ज़ निभाया ;
उसने अश्कों के सितारों से सँवारी मेरी  आँखें !

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !