मखमली स्मृतियाँ !
•••••••••••••••••••••
दौड़ती भागती सी इस
मेरी ज़िन्दगी में ;
तेरे प्रेम की लहरों के
सिक्त किनारों पर ही,
कुछ पल ठहराव के मिलते है;
उन्ही पलों में सोचता हु,
तुम्हारे प्रेम को सौपूँ कुछ हर्फ़,
तब बर्षों से दबी मेरी प्यास को
और पिपासित पाता हु ;
तब कोलाहल मचाते मेरे
भाव मांगते है, मुझसे कुछ
हर्फ़ उधार ;
और जब मैं उनके लिए
गढ़ता हूँ कुछ हर्फ़ तो
मेरे भावों की बूंदें तेरी
प्रेम पिपासित धरा को
भी भिंगो देती हैं;
और फिर मैं मेरी तन्हाइयों
को तेरी मखमली तन की
स्मृतिओं में लपेट कर
सुला देता हु !
No comments:
Post a Comment