Friday, 8 March 2019

मखमली स्मृतियाँ !

मखमली स्मृतियाँ !
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दौड़ती भागती सी इस 
मेरी ज़िन्दगी में ;

तेरे प्रेम की लहरों के 
सिक्त किनारों पर ही, 
कुछ पल ठहराव के मिलते है;

उन्ही पलों में सोचता हु,   
तुम्हारे प्रेम को सौपूँ कुछ हर्फ़, 
तब बर्षों से दबी मेरी प्यास को 
और पिपासित पाता हु ; 

तब कोलाहल मचाते मेरे 
भाव मांगते है, मुझसे कुछ 
हर्फ़ उधार ;
  
और जब मैं उनके लिए 
गढ़ता हूँ कुछ हर्फ़ तो 
मेरे भावों की बूंदें तेरी
प्रेम पिपासित धरा को 
भी भिंगो देती हैं;

और फिर मैं मेरी तन्हाइयों  
को तेरी मखमली तन की 
स्मृतिओं में लपेट कर 
सुला देता हु !

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !