ज़िन्दगी का निवाला !
आंसुओं को अपनी ज़िन्दगी का,
निवाला समझकर ही तो अब तलक,
अपनी आँखों से ही पीया है मैंने;
दिल की लगी को अब तलक,
अपने ही दिल में कुछ इस तरह
पनाह दी है मैंने;
तुम नहीं हुए हो मेरे अब तलक,
पर किसी गैर के साथ भी तो अभी
तलक तुम्हे देखा नहीं है मैंने;
तभी तो तुम को अब तलक नहीं खोया है,
मैंने मगर ये भी याद रखना तुम की तुम्हे,
अब तलक पाया भी नहीं है मैंने;
मेरा दिल तो ज़ख़्मी ही है पहले से,
इसे तू दुखी और ना कर ऐ ज़माने,
तेरा लिहाज़ ही तो अब तलक किया है मैंने;
मुझ से मिलते हैं वो ही दुश्मनो की तरह,
जिस किसी को भी अपने दिल का अब तलक,
ये जख्म सिला हुआ दिखाया है मैंने;
सर झुकाए बैठा हु अब तलक,
हर एक लम्हा में ऐ ख़ुदा तुझ को ही तो,
हर एक ज़र्रे में पाया है मैंने !
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