Saturday, 23 March 2019

ज़िन्दगी का निवाला !

ज़िन्दगी का निवाला !

आंसुओं को अपनी ज़िन्दगी का, 
निवाला समझकर ही तो अब तलक,  
अपनी आँखों से ही पीया है मैंने; 

दिल की लगी को अब तलक, 
अपने ही दिल में कुछ इस तरह 
पनाह दी है मैंने;  

तुम नहीं हुए हो मेरे अब तलक, 
पर किसी गैर के साथ भी तो अभी 
तलक तुम्हे देखा नहीं है मैंने;

तभी तो तुम को अब तलक नहीं खोया है, 
मैंने मगर ये भी याद रखना तुम की तुम्हे, 
अब तलक पाया भी नहीं है मैंने;

मेरा दिल तो ज़ख़्मी ही है पहले से,  
इसे तू दुखी और ना कर ऐ ज़माने, 
तेरा लिहाज़ ही तो अब तलक किया है मैंने;  

मुझ से मिलते हैं वो ही दुश्मनो की तरह, 
जिस किसी को भी अपने दिल का अब तलक, 
ये जख्म सिला हुआ दिखाया है मैंने;  

सर झुकाए बैठा हु अब तलक, 
हर एक लम्हा में ऐ ख़ुदा तुझ को ही तो, 
हर एक ज़र्रे में पाया है मैंने !  

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !