Monday, 11 March 2019

भावों की स्याही !

भावों की स्याही ! 
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मेरे भावो को स्याह, 
स्याही से उतारता हु;

तुम्हारे दिल के कोरे, 
कागज़ पर कुछ इस तरह;
  
कि वो उतर कर तेरे दिल, 
पर उसे फूलों सा महका दे; 

तुम्हारे पुरे मन आँगन को,
ऐसा अकसर मैं तब करता हु;

जब अकेलापन मुझे आ, 
घेरता है और मेरी सांसें थोड़ी; 

मद्धम-मद्धम होने लगती है, 
तब कुछ सांसें उधार लेता हु;

तुम्हारे महकते उसी मन, 
आँगन से थोड़ा और जीने की; 

आस अपने दिल में जगाता हु, 
ताकि मेरे भाव तुम पर प्रेम पुष्प 
बरसा सके ;

इसलिए मेरे भावो को स्याह, 
स्याही से तेरे दिल के कोरे, 
कागज पर उतारता हु !

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !