भावों की स्याही !
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मेरे भावो को स्याह,
स्याही से उतारता हु;
तुम्हारे दिल के कोरे,
कागज़ पर कुछ इस तरह;
कि वो उतर कर तेरे दिल,
पर उसे फूलों सा महका दे;
तुम्हारे पुरे मन आँगन को,
ऐसा अकसर मैं तब करता हु;
जब अकेलापन मुझे आ,
घेरता है और मेरी सांसें थोड़ी;
मद्धम-मद्धम होने लगती है,
तब कुछ सांसें उधार लेता हु;
तुम्हारे महकते उसी मन,
आँगन से थोड़ा और जीने की;
आस अपने दिल में जगाता हु,
ताकि मेरे भाव तुम पर प्रेम पुष्प
बरसा सके ;
इसलिए मेरे भावो को स्याह,
स्याही से तेरे दिल के कोरे,
कागज पर उतारता हु !
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