अश्रु और अब्सार
तुमसे गठबंधन की आस ने,
लिए फेरे पुरे सात;
मेरी अब्सार ने अश्रु के साथ !
एक एक कर सातों वचन,
निभाने का वादा भी किया;
अश्रु ने मेरी अब्सार से !
अब मेरे दिन सागर की,
लहरों से और मेरी रातें;
उपांत सी खींची जा रही है !
अब्सार पत्थर सी हो कर,
टिक गयी है एक ही राह;
के मुहाने पर !
जैसे बैठी थी अहिल्या,
अपने "राम" के लिए;
पत्थर की होकर !
उसके "राम" तो उसे छूकर,
इफ़्फ़त कर गए अब बारी;
है मेरे "राम" की !
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