Monday, 25 March 2019

अश्रु और अब्सार

अश्रु और अब्सार 

तुमसे गठबंधन की आस ने, 
लिए फेरे पुरे सात;  
मेरी अब्सार ने अश्रु के साथ !
  
एक एक कर सातों वचन, 
निभाने का वादा भी किया; 
अश्रु ने मेरी अब्सार से !

अब मेरे दिन सागर की, 
लहरों से और मेरी रातें;  
उपांत सी खींची जा रही है !

अब्सार पत्थर सी हो कर,  
टिक गयी है एक ही राह; 
के मुहाने पर !

जैसे बैठी थी अहिल्या, 
अपने "राम" के लिए; 
पत्थर की होकर !

उसके "राम" तो उसे छूकर, 
इफ़्फ़त कर गए अब बारी; 
है मेरे "राम" की !

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !