कुदरत का नज़ारा !
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जो न होता कुदरत में,
सूरज का ताप और बादलों
की नमी का नजारा;
तो बताओ कैसे रहता,
धरती के आँचल का रंग
इतना हरहरा और प्यारा;
दिल में जलती सूरज
सी आग और नयनों से,
टिप टिप होती बस बरसात;
कुदरत के रंग सा ही तो
होता है, इस मोहब्बत का
भी मौसम और नज़ारा;
लेकिन शायद कहने और
करने की, जिसमे सारी हदें
टूट जाती है, वही तो बेइंतेहा
मोहोब्बत कहलाती है !
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