Tuesday, 12 March 2019

कुदरत का नज़ारा !

कुदरत का नज़ारा !
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जो न होता कुदरत में, 
सूरज का ताप और बादलों 
की नमी का नजारा;

तो बताओ कैसे रहता, 
धरती के आँचल का रंग 
इतना हरहरा और प्यारा; 

दिल में जलती सूरज 
सी आग और नयनों से, 
टिप टिप होती बस बरसात;

कुदरत के रंग सा ही तो 
होता है, इस मोहब्बत का  
भी मौसम और नज़ारा;

लेकिन शायद कहने और 
करने की, जिसमे सारी हदें 
टूट जाती है, वही तो बेइंतेहा 
मोहोब्बत कहलाती है !

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !