Tuesday 19 March 2019

ओ मां

ओ मां,

अपनी जननी को,
मुरझाया फूल थमा 
कर आया हूं ;

अपनी प्रिया के, 
हाथों की चूड़ियां
उसी के हाथों में, 
तोड़कर आया हूं ;

बस तेरी छाती का, 
दुध कभी ना सूखे,
मेरे किसी भाई के, 
लिए इसीलिए; 

उनदोनों के जन्मसिद्ध 
अधिकार को तेरे ऊपर  
वार कर आया हूं !

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !