Thursday, 28 March 2019

ज़िन्दगी नामक किताब !

ज़िन्दगी नामक किताब !

ज़िन्दगी नाम की जो, 
ये किताब है इस किताब 
की ज़िल्द है माँ; 
हैं ना ?

जिस किताब की जिल्द 
है माँ तो उस किताब का 
शीर्षक है पिता; 
है ना ?

किताब का जिल्द जब फट 
जाता है, फिर उस किताब के 
पन्ने जल्द ही बिखर जाते है; 
है ना ?

अतः इस किताब के जिल्द, 
और शीर्षक को संभाल कर, 
रखने की जिम्मेदारी हमारी है; 
है ना ?

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !