Tuesday, 5 March 2019

जय हिन्द !

जय हिन्द !
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इकबाल-ए-मौत की आरज़ू ने उसे
इतना उत्साहित कर दिया कि, उस   
दिन से दुश्मनो की गिनती पर दिन 
और रात ग़ौर करने लगा ! 

इंतेक़ाम के लिए वो सीमा पर चल दिया ,
अपने हिस्से की जिम्मेदारी जब पूरी कर चुका; 
तब उसने कल की तारीख़ पर भी अपना नाम  
ख़ुशी-ख़ुशी से लिख दिया !

एक तारीख पर अपना सर दूसरी तारीख पर, 
अपना जिगर रख कर अपने मंसूबों को; उसने 
बड़े गर्व से जाहिर कर दिया !

उस की अपनी पसंद की तारीख चुनी थी,  
वादियों के कोने कोने से मिटा दिए; उसने 
सारे ना पार्कों के निशाँ थे !

वादियों में दूर तक चलती पुरवईयाँ हो,  
हर एक दिल में सकूँ के बादल उमड़े बस;  
यही उसका एक मात्र मंसूबा था !

इकबाल-ए-मौत की आरज़ू ने उसे इतना 
उत्साहित कर दिया था कि उस दिन वो 
चुन-चुन कर दुश्मनो का खात्मा करने 
की सौगंध खा कर गया था ! 

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !