जय हिन्द !
••••••••••••
इकबाल-ए-मौत की आरज़ू ने उसे
इतना उत्साहित कर दिया कि, उस
दिन से दुश्मनो की गिनती पर दिन
और रात ग़ौर करने लगा !
इंतेक़ाम के लिए वो सीमा पर चल दिया ,
अपने हिस्से की जिम्मेदारी जब पूरी कर चुका;
तब उसने कल की तारीख़ पर भी अपना नाम
ख़ुशी-ख़ुशी से लिख दिया !
एक तारीख पर अपना सर दूसरी तारीख पर,
अपना जिगर रख कर अपने मंसूबों को; उसने
बड़े गर्व से जाहिर कर दिया !
उस की अपनी पसंद की तारीख चुनी थी,
वादियों के कोने कोने से मिटा दिए; उसने
सारे ना पार्कों के निशाँ थे !
वादियों में दूर तक चलती पुरवईयाँ हो,
हर एक दिल में सकूँ के बादल उमड़े बस;
यही उसका एक मात्र मंसूबा था !
इकबाल-ए-मौत की आरज़ू ने उसे इतना
उत्साहित कर दिया था कि उस दिन वो
चुन-चुन कर दुश्मनो का खात्मा करने
की सौगंध खा कर गया था !
No comments:
Post a Comment