Sunday, 24 March 2019

ये मेरी बरबस बरसती ऑंखें !

ये मेरी बरबस बरसती ऑंखें !

हर घड़ी दर्द की शिद्दत से, 
बिलखती है ये मेरी आँखें; 

हिज्र की आग में हर लम्हा, 
पिघलती है ये मेरी आँखें; 

एक लम्हे की खता हुई और,  
सारी उम्र का रोग लगा लिया;  

अब उस की सूरत को ही हैं, 
हर वक़्त तरसती ये मेरी आँखें; 

ख्वाहिश-ए-दिल में अब तक, 
मचलती है उसकी अदाएं; 

तेरी ख़ुश्बू से मुसलसल अब, 
ये महकती है मेरी आँखें; 

मेरे ख्वाबों में ठहरा हुआ है, 
अल्हड नदी का वो मंज़र; 

और उसी नदी किनारे हैं, 
अब भटकती ये मेरी आँखें; 

अब तो आग सी टपकती है, 
हर एक हिज़्र के मंज़र से; 

हिज़्र-ए-मंज़र की तपिश से ही,  
सुलगती है ये मेरी आँखें; 

मोहब्बत आबाद हुई या, 
हुई है नाकाम मेरी;  

रह गईं अहल-ए-वफ़ा मुँह देखते, 
तभी तो बरसती ये मेरी आँखें;

कभी सामने पा कर भी उसे, 
उसे ही ना देखने की मज़बूरी;  

गर ये हक़ीक़त हो जाए "राम" 
तो फिर संभाले नहीं संभालती ये मेरी ऑंखें !

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !