वापस कोई नहीं आता !
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जिस्म के रास्तों से गुज़र कर,
रूह की आरज़ू में जो भी बसा;
वो वापस कभी ना आया !
रूह के अकेलेपन में उलझ कर,
रूह की आरज़ू में जो भी निकला;
वो वापस कभी ना आया !
लोग फिर भी ये देखकर,
समझते क्यूँ नहीं हैं;
जो गया वो वापस कभी ना आया !
लोग फिर भी ये देखकर,
स्वीकारते क्यूँ नहीं करते हैं;
जो गया वो वापस कभी ना आया !
जिस्म के रास्तों से गुज़र कर,
रूह की आरज़ू में जो भी बसा !
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