ह्रदय आंगन !
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एक घना पेड़ है तुम्हारे ह्रदय
के विशाल आँगन के बीचों-बीच में;
जिस की छाँव में सुस्ताने
की मेरी दिली ख़्वाहिश है;
मेरी लिखी क़िस्मत को अब
तुम कुछ इस कदर संवारों की;
उस की जो शाख़ें मेरे दिल के
आंगन से बाहर फैली है;
वो आँगन में आकर सिमट जाए
ताकि उस आँगन में धूप बरसती है;
वो छांव में तब्दील हो जाए ताकि
उसकी छांव में मैं सकूँ से सुस्ता सकू !
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