Friday, 15 March 2019

ह्रदय आंगन !

ह्रदय आंगन !
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एक घना पेड़ है तुम्हारे ह्रदय 
के विशाल आँगन के बीचों-बीच में;  

जिस की छाँव में सुस्ताने 
की मेरी दिली ख़्वाहिश है; 

मेरी लिखी क़िस्मत को अब 
तुम कुछ इस कदर संवारों की;

उस की जो शाख़ें मेरे दिल के  
आंगन से बाहर फैली है;

वो आँगन में आकर सिमट जाए 
ताकि उस आँगन में धूप बरसती है;

वो छांव में तब्दील हो जाए ताकि  
उसकी छांव में मैं सकूँ से सुस्ता सकू !

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !