Thursday, 7 March 2019

वो कोई और नहीं इश्क़ है !

वो कोई और नहीं इश्क़ है !
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सलामती उसी की मांगता हैं इश्क़ , 
जिसने खुद उजाड़ा है उसको ;
तुम सिर्फ इतना बता दो मुझ को ,
क्या ये ठीक है कि इसी को कहता हु मैं इश्क़ ! 

सारी उम्र अपना कसूर ढूँढता रहा इश्क़ ;
और फिर ज़िदगी भर उसी कसूर वार ,
मोहब्बत को ढूँढता रहा वही नादान इश्क़ !

कोई तो है आज भी मेरे अंदर ,
जो मुझ को संभाले हुए अब तलक ; 
यही सोचता हुआ वो उसे पुकारता रहता है , 
रात और दिन और बेक़रार होकर भी ;
बरक़रार रखा हुआ है खुद को अब तलक  ;
तुम सिर्फ इतना बता दो मुझे वो इश्क़ है या नहीं !

लगता है भूल गयी है शायद मोहब्बत मुझे , 
या फ़िर कमाल का सब्र रखती है वो ;
लेकिन तुम ये तो बता दो मुझे ,
तेरा दिल धड़कता है अब तलक ;  
या वो भी पत्थर का रखती हो तुम !

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !