वो कोई और नहीं इश्क़ है !
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सलामती उसी की मांगता हैं इश्क़ ,
जिसने खुद उजाड़ा है उसको ;
तुम सिर्फ इतना बता दो मुझ को ,
क्या ये ठीक है कि इसी को कहता हु मैं इश्क़ !
सारी उम्र अपना कसूर ढूँढता रहा इश्क़ ;
और फिर ज़िदगी भर उसी कसूर वार ,
मोहब्बत को ढूँढता रहा वही नादान इश्क़ !
कोई तो है आज भी मेरे अंदर ,
जो मुझ को संभाले हुए अब तलक ;
यही सोचता हुआ वो उसे पुकारता रहता है ,
रात और दिन और बेक़रार होकर भी ;
बरक़रार रखा हुआ है खुद को अब तलक ;
तुम सिर्फ इतना बता दो मुझे वो इश्क़ है या नहीं !
लगता है भूल गयी है शायद मोहब्बत मुझे ,
या फ़िर कमाल का सब्र रखती है वो ;
लेकिन तुम ये तो बता दो मुझे ,
तेरा दिल धड़कता है अब तलक ;
या वो भी पत्थर का रखती हो तुम !
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