Wednesday, 30 May 2018

‘अहं ब्रह्मास्मि'



‘अहं ब्रह्मास्मि'
-----------------
तुम्हारे प्रेम के शब्दों को
मैं मेरी देह में रमा लेती हु ;
तदोपरांत मैं आत्मनिर्भर हो 
अपने तमाम झूठे शब्दों को
तुम्हारे प्रेम के उजियारे शब्दों
से रंग लेती हु तब वो मेरी राह
में दीपक से जलकर मेरा मार्ग 
प्रशस्त करते है और मैं साहसी 
होकर के हमारे प्रेम के विरूद्ध उठती
सभी अँगुलियों को ठेंगा दिखा कर
तुम्हारे सिद्ध शब्दों में कहती हु उन सब से 
'अहं ब्रह्मास्मि' और एक कोमल अनुभूति को
महसूस कर खुद को युवापन की रोशनी में
नहायी अनुभव करती हुई
तुम्हारे पास आने को निकल पड़ती हु !

Tuesday, 29 May 2018

मेरे शब्दों में उतरे तुम्हारे भाव सदा


मेरे शब्दों में उतरे तुम्हारे भाव सदा 
-----------------------------------------
तुम्हे चाहने के लिए 
अपनी साँसों से
तुम्हारे विकल हृदय को 
खुश रखना चाहता हु सदैव;
तुम्‍हारे भाव मेरे शब्दों में 
यु ही उतरते रहे सदा 
इसलिए तुम्हारी रज्ज से 
जुड़ा रहना चाहता हु सदैव;
भविष्‍य में तुम्हारे भाव 
और सुंदर हो इसके लिए 
तुम्हारी रूह को महसूसता 
रहना चाहता हु सदैव;
तुम्हारी आँखों में उतर आए
हरी कोख का आनंद 
इसलिए तुम्हारी कोख को 
सींचता रहना चाहता हु सदा ;
तुम्हारे होंठ सदा यु ही गुलाबी
और रसभरे बने रहे ; 
इसलिए मेरे शहद रूपी 
अक्षरों को तुम्हारे होंठो पर 
रख कर ही सोता हु सदा ! 

Monday, 28 May 2018

खुशियों की घण्टिया !



 खुशियों की घण्टिया ! 
_______________

इसी मन के मंदिर  में
बहती है शिवाया और भागीरथी 
इसी मन के मंदिर  में 
खिलते हैं दुनिया के सभी दुर्लभ 
पुष्प भी खिलते है  
इसी मन के मंदिर  में
सह्दुल भी पाए जाते है 
इसी मन के मंदिर  में
नौ रंग के पंखों वाली 
पिट्टा चिड़िया भी फड़फड़ाती है  
इसी मन के मंदिर  में
छिपी रहती है सारी 
सृस्टि की कराहटें और 
इसी मन के मंदिर में 
बजती है खुशियों की घण्टिया !

Sunday, 27 May 2018

अक्षत-रोली के छींटे


अक्षत-रोली के छींटे
----------------------
मैं अपनी कामनाओं के
अक्षत-रोली के छींटे तुम्हारे   
कोरे कागज से हृदय पर 
प्रायः हर रोज ही छींटता हूँ
और तुम उसको अपनी हँसी
के लिफाफे में डाल सुबह-सुबह
कचरे के डब्बे में डाल उसे 
कचरे बीनने वाली को 
दे आती हो देकर उसे ऊपर से 
दस रुपैये का एक नोट ताकि 
वो कंही आस पास ही ना डाल आये
मेरी उन कामनाओं को जो मुझे फिर 
कंही फिर मिल ना जाए उस 
उस रास्ते पर आते जाते  
ऐसा क्या तुम इसलिए करती हो 
क्योकि मैंने तुम्हारी इक्षाओं को ही 
बना ली थी अपनी कामनाएं  
ये सोच कर की इनको कर पूर्ण 
तुम्हे भी उतनी ही ख़ुशी मिलेगी 
जितनी ख़ुशी मुझे होगी ?

Saturday, 26 May 2018

तुम्हारी ही सियाही से तुम्हे रंग देता हु मैं



                तुम्हारी ही सियाही से तुम्हे रंग देता हु मैं 
                -------------------------------------------------
               क्रूर से क्रूर इतिहास को 
                बदलने में समर्थ होता है 
                मिलन के वो कुछ पल बस
                जरुरत है हमारे मिलन की 
                घडी में पैदा हुई लहरों की ताकत 
                को खुद में सिंचित कर उस तुम्हारी 
                कराह से आगे निकलने की 
                जब-जब होती है दूर हमसे रोशनी 
                तब-तब हम होते है सबसे करीब  
                एक दूजे के और इस मिलन का गवाह होता है                 
                गवाह होता है वो सियाह अँधेरा  
                जो कर रहा होता है तुम्हे प्रेरित 
                करने को क्रंदन और तुम उससे 
                प्रेरित करने लगती हो चीत्कार 
                फुट-फुट कर तब भी मैं 
                करता हु सिंचित तुम्हारे भीतर  
                वो अपना अदम्य साहस
                जो करता है मुझे प्रेरित अपनी 
                कलम में तुम्हारी सियाही भरने को 
               और मैं तुम्हारी ही सियाही से 
               तुम्हे ही रंग देता हु सोच कर की 
               पल-दो-पल की वो तुम्हारी चीत्कार 
               बदल कर रख देगी हमारे बीते क्रूर से 
                क्रूरतम इतिहास को अब !  

Friday, 25 May 2018

स्वर और शब्द


स्वर और शब्द 
__________

स्वर आकाश की 
धरोहर है और शब्द
धरा की पूंजी है ;
शब्द सृष्टि की कुंजी है
इसलिए कोई भी चीज़ जो  
हमारे संपर्क में आती है ;
तो हम उसको एक नाम देते है  
क्योकि वही शब्द मौन की ऊँची
से ऊँची दीवार को गिरा देते है ; 
ठीक वैसे ही जैसे रिश्ते अजनबियों 
को भी एक दूसरे से जोड़ देते है ;
स्वर सिर्फ लबो की एक क्रिया नहीं है
जैसे लिखना अंगुलिओं की केवल एक वर्जिश नहीं;
ये वो प्रक्रिया है जो तन्हाई की दीवारों लांघना सिखलाती है   
बस ध्यान ये रखना होता है सदा की शब्द की उम्र उस दिन तय हो जाती है ;
जब उन्हें सियाही ओढ़ लेती है वही दूसरी ओर स्वर अविनाशी रहते है ;
जो हमारा पीछा धरा से कुछ करने के बाद भी करते है  !

Wednesday, 23 May 2018

अदृश्य और सजीव अग्नि



अदृश्य और सजीव अग्नि----------------------------

सुनो कंहा  खोज रहे हो
अग्नि को वो तो मौजूद है; 
हर जगह बस दृश्य नहीं है  
रूह की ही तरह जो होती है 
अदृश्य और सजीव और   
यौवन की तरह निडर 
और उत्साहित देखना चाहो 
तो झांक लो स्वयं के 
ही अंदर मिलेगी मौजूद 
वो अग्नि गर चाहो तुम 
आज़माना उसकी पवित्रता को
तो ले जाओ कुछ भी उसके नज़दीक 
और बिलकुल पास यु जैसे स्पर्श किया हो 
उसे स्पर्श पाते ही वो "कुछ" भी हो जाएगी 
या जायेगा अग्नि वही अग्नि जो घोतक है 
प्राणो की जब तक वो है मौजूद 
चाहे मुझमे चाहे तुझमे चाहे ! 
किसी में भी ये अग्नि जो घोतक है 
जिन्दा होने की जीवन की प्राणो की !

Tuesday, 22 May 2018

दृश्य सीमित है अदृश्य है असीमित


दृश्य सीमित है अदृश्य है असीमित 
-----------------------------------------
कुछ अक्षर है जो  
सने नहीं है सियाही में अभी  
कुछ बच्चे है जो 
गर्भ में आये नहीं है अभी
कुछ सपने है जो 
पहुंचे नहीं है अभी आँखों में 
कुछ प्रेम कथाएँ भी है 
जिनकी  नीव रखी नहीं गयी है अभी 
कुछ रंग है जो फूलों में  
डले नहीं है अभी
कुछ किरणें भी है सूरज की जो  
नहीं पहुँचीं है धरती पर अभी
कुछ नाम है जो 
दर्ज़ नहीं हुए इतिहास में अभी
लेकिन ये संभव है की रह जाए 
सिर्फ वही जो अदृश्य है अभी !

Monday, 21 May 2018

मैं तुमसे बातें करती हूँ !



मैं तुमसे बातें करती हूँ !-----------------------------

मैं तो जब भी  
करती हूँ तुमसे बातें 
अपने आप को पा लेती हूँ 
,न दिखावा ,
न छलावा,
न बनावट ,
न सजावट ,
बस अपने मन की 
परतों को खोलती जाती हूँ,
और मेरे साथ साथ 
तुम भी मंद-मंद मुस्कुराते हो,
अपनी अँखिओं के कोरों से 
मेरी मस्ती,मेरी चंचलता ,
मेरा अल्हड़पन ,मेरा अपनापन ,
मेरा यौवन थाम लेते हो 
अपने हांथो में तब 
मैं काँप जाती हूँ ,
और नाज़ुक लता सी ,
लिपट जाती हूँ मानकर 
तुम्हे अपनी शाख से ! 

Sunday, 20 May 2018

केवल तुम्हें ही लिखता हूँ



केवल तुम्हें ही लिखता हूँ
---------------------------

सुबह से ही
दिल के ज़ज़्बातों को
जोर-जोर से बोल - बोलकर
पढता हूँ और
रात ढलने तक
अपने वज़ूद की सियाही से
अपने ही दिल के
कोरे पन्नों पर
केवल तुम्हें लिखता हूँ .
कुछ साधारण से
शब्दों को जोड़ -जोड़कर
अपनी अभिव्यक्ति में
केवल तुम्हें ही रचता हु
इस चाहत के साथ की
एक दिन स्वाति की
बून्द बन तुझमे समां
मोती बन जाऊँगा ..  

Friday, 18 May 2018

भाविउ मेटि सकहिं त्रिपुरारी




भाविउ मेटि सकहिं त्रिपुरारी
___________________


बदल सकता है,प्रेम का रंग ;
बदल सकता है ,मन का स्वभाव ;
बदल सकती है ,जीवन की दिशा ;
बदल सकती है ,हृदय की गति ;
लेकिन तुम्हे ,करनी होगी ;
मदद उस ईश की जिसने लिख कर 
भेजा था तुम्हारा भाग्य; 
अकेले नहीं उठाना चाहता वो 
इतना भार अब अपने कंधो पर
जब देख लिया उसने तुम्हारी 
कोशिश बदलने की अपने भाग्य को   
जब देख लिया उसने तुम्हारी इक्षाशक्ति को 
और देखकर तुम्हारा समर्पण अब चाहता है वो 
इसमें तुम्हारी भी मदद ताकि लिख सके 
तुम्हारा भाग्य एक बार फिर से तुम्हारे कर्मो के अनुसार 

सोलह श्रृंगार युक्त धरा !



सोलह श्रृंगार युक्त धरा !
----------------------------

धरा का हृदय व्याकुल
हो उठता है जब वो देखती है
आसमा का खालीपन
और उसी पल धरा की
दोनों आँखें समां लेती है
आसमां के वृहद्‍ अस्तित्व को
जो यु तो दिखने में हर पल
छाया रहता इतनी विस्तृत
धरा पर और वही विस्तृत धरा
जो अपनी आँखों में समाये रखती है
उस वृहद्‍ आसमां के अस्तित्व को
वो स्वयं समां जाती है उसी
आसमां से निकल उसी के कुछ भाग
पर फैले समन्वित सागर में
रहने को सदा हरी भरी ताकि
जब जब उसका आसमां देखे
अपनी धरा को वो उसे दिखे
सदा सोलह श्रृंगार किये हुए
और उसे फिर कभी में ना दिखे
कोई खालीपन अपने वृहद्‍ आसमां में !

Thursday, 17 May 2018

सांस है मेरी वो



सांस है मेरी वो 

__________
वो जो सांस है 
ज़िन्दगी की मेरी 
अपनी ही गति 
से बहती है अभी; 
होकर बिलकुल बेखबर
दर्द से मेरे ;
और बेअसर मेरी 
छुवन से अभी तलक;
मगर जिन्दा रखे
हुए है अभी तलक;
वो मुझे जो अपनी 
शीतल छुवन से 
हर तपन से आज़ाद 
करती है मुझे;
उसकी खामोश 
उपस्थिति अब तलक
करती है तर्क-वितर्क;
जो साँस है मेरी 
ज़िन्दगी की अब 
भी बहती है अपनी 
ही गति से होकर 
बिलकुल बेखबर
मेरे हर दर्द से !

Wednesday, 16 May 2018

जज्बा ही प्रेम का वज़ूद है !


जज्बा ही प्रेम का वज़ूद है !  
------------------------------
तेरे उस एक जज्बे से है 
मेरा अस्तित्व काबिज यंहा  
जो कभी मुझे खड़ा कर देता है 
ईश्वर के समक्ष तो कभी तुम्हारा 
वो जज्बा लड़कर ले आता है 
मुझे वापस उस यम से 
जिसके जिक्र मात्र से 
प्राणी नतमस्तक हो सौंप 
देता है खुद को उनके हाथ 
मोक्ष की कामना लिए दिल में 
तो कभी तुम्हारा वो ही जज्बा 
जगतनियंता ब्रह्मा विष्णु और महेश
को बनाकर नवजात झूला झूला देता है  
पालने में तो कभी पूरी तरह आकर्षित 
व समर्पित प्रेमी कालिदास को वो तुम्हारा 
जज्बा एक झिड़की में बना देता है महाकवि
या फिर हो विमुख तड़पने देती हो मेरे वज़ूद को 
भूके प्यासे अपनी ही दहलीज़ के बाहर ! 

Tuesday, 15 May 2018

जन्मदिन


जन्मदिन----------

आज ही के दिन 
ठीक रात के लगभग 
इसी वक़्त जब घडी में 
आठ बजकर दस मिनट 
हो रहे थे तो मैं भी अपनी 
माँ के गर्भ से निकल उनके 
पैरों में आ गिरा था जैसे 
आटे का लौंदा आ गिरता है 
तवे पर रोटी-सा सिंकने के लिए 
बिलकुल नरम और लाचार
जिसे समय खुद-ब-खुद  
आकार देता है जैसा विधाता 
ने लिख कर भेजा होता है 
उसका भाग्य जिसे करना ही 
होता है उसे सहर्ष स्वीकार 
और कितने गर्व की बात है 
की हर एक बच्चा गवाह होता है 
अपने माँ-और पिता के अनुराग का  
ठीक वैसे ही आज कोई मुझे 
चाहे या ना चाहे लेकिन हु तो 
मैं भी निशानी अपने-माँ-पिता 
के प्रेम और अनुराग की !  
  

Monday, 14 May 2018

स्वप्न "अमर" होते है !


स्वप्न "अमर" होते है !
--------------------------
सुनो सपने कभी नहीं मरते 
हम इंसानो की तरह 
नहीं होती उनकी उम्र ;
कभी ना कभी हम सब 
जरूर पहुंचते है ज़िन्दगी के 
उस आखरी पन्ने पर जंहा 
जब तकिये पर अटकी 
आखरी झपकियों के सहारे
हम देख रहे होते है अपनी 
ज़िन्दगी के वो अधूरे स्वप्न;
जो रह गए होते है अधूरे
और एक बात हम रहे या 
ना रहे पर हमारे स्वप्न
रहते है यही इसी धरा पर
किन्यु की स्वप्न होते ही है 
"अमर"; वो कभी नहीं मरते
इंसानो की तरह किन्यु की 
उनकी उम्र तय नहीं होती 
और जब हम फिर लौटते है 
एक नया रूप नया शरीर  
लेकर इस धरा पर तो वो ही 
स्वप्न हमे एक बार फिर से
ढूंढ कर सज जाते है हमारी पलकों पर 
फिर से अधूरे ना रह जाने का मलाल लिए !      
  

Sunday, 13 May 2018

एक सिर्फ तुम्हारा चेहरा


एक सिर्फ तुम्हारा चेहरा हो-----------------------------

बहुत प्यार करता हूं मैं तुमसेखुद से भी ज्यादा और शायद  रह भी लूं मैं तुमसे दूर लेकिन चाहती नहीं रहना मैं तुम्हारे बिना, और मांगना भी चाहती हु तुमसे एक अधिकार अगर तुम दो मुझे वो अधिकार की हर सुबह जब मैं आंखें खोलू तो सबसे पहले देखूं वो एक सिर्फ तुम्हारा चेहरा हो जिस एक सीने में छिपने से मुझे मेरी हर एक खुशी मिल जाएवो सीना सिर्फ एक तुम्हारा होजिसका साथ पाकर हर एक छोटी और बड़ी मुश्किल से अकेलेलड़ सकूं मैं वो एक सिर्फ तुम्हारा साथ हो वो भी हर पल और एक एक साँस के साथ का साथ और जिस एक कांधे पर सिर रखकर हर गम को एक पेय तत्त्व की तरह पी जांऊ वो कांधाएक सिर्फ तुम्हारा हो जिस एक सहारेके सहारे अपना पूरा जीवन जी जांऊवो सहारा सिर्फ एक तुम्हारा हो और जिसकी सकूँ भरी बांहो के घेरे मेंमैं खुद को सबसे सुरक्षित महसूस करूंवो बाँहों का घेरा सिर्फ एक तुम्हारा होमेरी हर सुबह हर शाम पर पहरा सिर्फ एक तुम्हारा हो बोलो क्या क्या तुम दोगे  मुझे ये हक की कि जिसका हाथ थामकर मैं सात फेरे लूंवो हाथ सिर्फ एक तुम्हारा हो और फिर मेरे हर गम हर खुशी हर दिन हर रातहर लम्हे हर पल पर एक सिर्फ नाम तुम्हारा होबहुत प्यार करता हूं मैं तुमसेखुद से भी ज्यादा और शायद  रह भी लूं मैं तुमसे दूर लेकिन चाहती नहीं रहना मैं तुम्हारे बिना, 

Saturday, 12 May 2018

तुम्हारा यु जाना


तुम्हारा यही होने का भ्रम और
तुम्हारे हिलते डुलते हाथ,
यकीं दिला ही रहे थे की अचानक
मुझे पीठ दिखा कर
जाना ऐसा प्रतीत हुआ
मनो पलक झपकते ही
तुम मेरी नज़रों से ओझल
हुए और मैं अचानक रो पड़ी,
जबरन रोके भी पानी
भला कहाँ रुकता है.
यु तुम्हारे जाने के बाद
ढूंढती रहती हु तुम्हे
और मिलती है मुझे
तुम्हारे अमर प्रेम की बेल की जडें
अपनी जिस्म की मिट्टी में
और तुम्हारी आवाज तब भी
लिपटी हुई होती है ..
मेरे जेहन से पर तुम
नहीं होती पास मेरे
पर तुम्हारे यही होने का भ्रम
अब भी यु ही बना हुआ है  ....

Friday, 11 May 2018

मेरी वफ़ा बड़ी मुस्कुराती है


जब भी याद मुझे तेरी 
आती है मेरी वफ़ा मुझ  
पर बड़ी मुस्कुराती है 
दर्द होता है देख उसकी  
कटाक्ष भरी मुस्कान 
फिर भी  खुद पर होता है फक्र 
की मैंने इतने सालों तक जकड़े रखा  
अपनी यादों को ज़ंजीरों में 
ताकि तुम चैन से जी सको वंहा  
और रातों को सकूँ से सो सको वंहा 
लेकिन सुनो कल रात से फरार है
मेरी वो यादें ख्याल रखना अपना 
जैसे तुम्हारी यादें मुझे रात रात सोने नहीं देती 
वैसे ही कंही मेरी यादें तुम्हे ना करे बैचैन   
पर सुनो मेरी यादें तुम्हारी यादों से कंही ज्यादा 
ज़िद्दी और शैतान है पर अगर वो करे तुम्हे कुछ ज्यादा ही परेशान 
तो उनके सामने ही तुम एक आवाज़ देना मुझे 
मैं फिर से पकड़कर उन्हें ला जकड़ूँगा उन्ही ज़ंजीरों में !

Thursday, 10 May 2018

रूह मेरी आश्स्वत तुम्हारी देह में


रूह मेरी आश्स्वत तुम्हारी देह में 
--------------------------------------

तमाम-उलझनों और भाग दौड़ 
से आजिज जब सुकून खोजता हुआ 
मेरा ये दिल खोजता है सकून हर शाम  
पागलों की तरह जानते हुए की उसके पास 
तुम्हारे सिवा कोई और विकल्प ही नहीं फिर भी
करता है कोशिश  किसी तरह कंही और
मिल जाए सकूँ उसकी इस अतृप भटकती रूह को
जिस से तुम्हे ना समय निकलना पड़े मेरे लिए 
और तुम यु ही रहो व्यस्त अपनी दुनिया में निष्फिक्र 
मेरी फिक्र से लेकिन जब तमाम कोशिशों के बावजूद
रूह को नहीं मिलता चैन तब ठहर के कुछ देर तुम्हारी 
तस्वीर के सामने बैठता है तो यु लगता है जैसे तड़प कर 
रूह उसकी उसके ही जिस्म को छोड़ प्रवेश करती है तुम्हारी 
उस तस्वीर में और वो देखता है खुद को आश्वस्त तुम्हारी 
तस्वीर में तब उसकी देह बिल्कूल निढाल हो एक तरफ 
लेट जाती है वैसे जैसे बिना रूह के शरीर होता जाता है मरणासन्न 
ठीक वैसे ही लेकिन चक्षु अब भी उसके रहते है व्यस्त देखने में 
खुद को यु आश्स्वत तुम्हारी देह में !!

Wednesday, 9 May 2018

इतनी सी गुज़ारिश है



इतनी सी गुज़ारिश है
------------------------
ऐ ज़िन्दगी सुन 
इतनी सी गुज़ारिश  
मेरी अब कहीं दूर ना जा,
कर दे रोशन इन सियाह 
रातों को मेरी और कर दे  
शीतल से ठन्डे मेरे तपते 
दिनों को फिर आकर पास   
मेरे मुझे ले ले अपने 
आगोश में और कर दे मुझे  
इस दुनिया से जुदा
ऐ ज़िन्दगी मेरी
आ मेरी आँखों में बस जा
और मुझे अपनी आँखों 
में बसा ले फिर कभी 
तू मुझसे दूर ना जाना 
इतनी सी गुज़ारिश है 
मेरी तुझसे ऐ ज़िन्दगी सुन

Tuesday, 8 May 2018

प्रेम की धुन गुनगुनाती है



प्रेम की धुन गुनगुनाती है 
----------------------------
अक्सर वो मुझसे 
दूर जाकर , 
अपनी सुरीली 
आवाज़ में प्रेम
की धुन सुनाती है,
और नित नए 
कुछ ख्वाब मेरी ही 
आँखों में बुनती है,
और अपनी सांसो में 
मुझे बांधकर यंहा मुझे
अकेला छोड़ खुद  
मुझसे दूर चली जाती है ,
उफ्फ़! ये ज़िन्दगी 
कैसा असर कर जाती है..
पाटता हु जोर जितनी दूरियां
उससे एक कदम और 
दूर वो चली जाती है,
एक दिन बैठा कर 
पास मेरे मैं उसको 
पूछना चाहता हु, 
फिर किन्यु वो अक्सर मुझसे 
दूर जाकर अपनी सुरीली 
आवाज़ में मेरे ही प्रेम
की धुन मुझे सुनाती है,

Monday, 7 May 2018

केवल प्रेम करना था



केवल प्रेम करना था
----------------------
तुम्हे तो केवल
प्रेम ही करना था
डाल सभी जिम्मेदारियों
को मेरे कांधो पर
की तुम जानो कैसे सामना
करोगे इस मतलबी
दुनिया का कैसे समझाओगे
मेरे घरवालों को और
इस प्रेम को कैसे क़ानूनी
जामा पहना मुझे
हक़ दोगे सभी के सामने
ये कहने का की
हा तुम हो सिर्फ मेरे
और मैं हु सिर्फ एक तुम्हारी
अपनी सारी  मज़बूरियों को
ताक पर रख ,
पर अब तक तुमसे
इतना भी नहीं हो सका तुमसे
जबकि मैं अब भी
इंतज़ार में हु की
डाल सभी जिम्मेदारियों
को मेरे कांधो पर
तुम केवल करोगी मुझे प्रेम 

Sunday, 6 May 2018

उष्णता की सार्थकता


उष्णता की सार्थकता
-----------------------
सीली-सीली लकड़ियाँ जब 
मद्धम- मद्धम आँच में सुलगेंगी 
तो चटकने की आवाज़ तो होंगी ही ; 
पर लकड़ियों का उस आंच की  
तपिश से एकीकृत होकर अपना 
स्वरुप खो देना ;उष्णता की सार्थकता 
को प्रमाणित करती है ;
उष्णता का होना जीवंत बनाता है हमें 
साथ ही सार्थकता का अहसास कराता है ;
आँच पर तपकर ही सोना  
स्वरुप बदलकर कुंदन बनता है  
फिर चाहे ज़िन्दगी हो या हो रिश्ते 
या फिर हो एहसास 
उनमे उष्णता का होना और 
उन सभी को उसमे तपना ही 
जीवन की सार्थकता का प्रमाण होता है 
उसी प्रकार तन की लकड़ियां भी 
मद्धम-मद्धम आँच में पकती रहनी चाहिए 
जिससे आंच की सार्थकता का बोध होता रहे !

Friday, 4 May 2018

मेरे जिस्म का हिस्सा



मेरे जिस्म का हिस्सा
--------------------------
एक-एक लम्हा जो मैंने 
अपना बोया है तुझमे 
जब उगेगी उसकी फसल
तो सोचता हु क्या क्या 
हासिल होगा हम दोनों को 
शायद इतना कुछ 
जितना ना हुआ हो 
हासिल अब तक 
किसी भी दौलतमंद को 
और वो कभी ना ख़त्म 
होने वाली मोहब्बत हर 
रोज़ खर्च करेंगे दोनों मिलकर 
तब भी वो ख़त्म नहीं होगी   
लेकिन थोड़ा थोड़ा हिस्सा 
मेरे जिस्म का जो मैं तुझ पर  
खर्च करूँगा तो तुम मुझे 
थोड़ा सुकून इकठा कर के देना 
जो मेरे जाने के बाद भी 
तुम्हे मेरी याद दिलाता रहेगा 
और मुझे खर्च होकर भी मलाल नहीं होगा ! 

Thursday, 3 May 2018

मेरे अरमानों की भी तो जननी तुम हो !

मेरे अरमानों की भी तो जननी तुम हो !
_____________________________

आधी रात कौंधी उसकी चितवन 
और उसने दरवाज़ा अपने घर का 
खुला छोड़ दिया कायम रखते हुए अँधेरा 
और लिख छोड़ा सन्देश अपने घर के दरवाज़े पर 
जिससे होकर आने वाला है उसका चितचोर घर के अंदर  
की मैंने बहुत मुश्किलों से सुलाया है थपथपाकर 
अपने व्यस्क अरमानो को आवाज़ मत करना वरना 
सारी मेहनत पर पानी फिर जायेगा ;आकर कानो में हौले से 
कहा उस चितचोर ने तुम भी यु ही आँखें बंदकर सोने का 
बहाना करती रहो कुछ देर क्योकि मेरे अरमान भी 
मेरा पीछा करते करते आ गए है यंहा तक क्योंकि 
ये तुम्हारे अरमानो की तरह मेरे कहे में नहीं बड़े ही ज़िद्दी है 
मना करते ही सड़क पर उस ज़िद्दी बच्चे की तरह लेट गए थे 
जैसे कोई बच्चा अपनी माँ से चॉकलेट की ज़िद्द करता है 
और माँ के मना करने पर बिगड़ैल बच्चों की तरह 
रास्ते पर लौट लौट तमाशा खड़ा करता है 
और जब तक माँ से चॉकलेट नहीं ले लेता 
तब तक मानता  ही नहीं है तुम बस   
इन्हे यकीं दिला दो की तुम सो गयी हो 
ताकि ये चले जाए फिर हम दोनों साथ
बैठ कर खूब बातें करेंगे अरमानो का क्या है 
ये तो हमारे पैदा किये हमारे ही बच्चे तो है !

Tuesday, 1 May 2018

बेहाल और लहूलुहान चेहरा


बेहाल और लहूलुहान चेहरा
___________
कितना तीक्ष्ण है 
चेहरा तुम्हारा की वो 
आसानी से समां जाता है 
मेरे चेहरे में और तुम हर  
शाम अलग कर लेती हो 
मेरे चेहरे से अपना चेहरा
फलस्वरूप बेहाल और लहूलुहान 
हो जाता है मेरा चेहरा इस बात से  
तुम्हे कोई फर्क नहीं पड़ता 
क्यूंकि तुम्हारा तो सब कुछ
तुम्हारे पास रह ही जाता है
साथ में अपने ले जाती हो 
तुम मेरे अस्तित्व की निशानी 
भी अपने साथ काश की मेरा 
भी चेहरा इतना ही तीक्ष्ण होता 
और मेरा चेहरा जब तुम्हारे चेहरे से 
जुदा होता तो तुम्हारा चेहरा भी 
कुछ यु रोज शाम लहूलुहान होता   
तब तुम्हे उस दर्द का एहसास होता 

प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !