Monday, 30 April 2018

क्या अब भी जिन्दा है तुम्हारी ख्वाहिश

क्या अब भी जिन्दा है तुम्हारी ख्वाहिश
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क्या हुआ तुम्हारी उस ख्वाहिश का
जिसमे तुम देखना चाहती थी मुझे
दूल्हे के लिबास में क्या अब भी जिन्दा है
तुम्हारी वो ख्वाहिश गर हां तो फिर किन्यु
नहीं समझती की ये तन्हाई अब मुझसे नहीं है
कटती अकेले मालूम है मुझे तुम अंगुली कर
दिखाओगी मुझे चाँद भी है तन्हा तारे भी है अकेले
पर मैं क्या करू उनसे कटती है अकेले रात पर
मैंने कहा ना अब मुझ से नहीं कटती
ये रात अकेले मैं हु उदास
तेरी राह तकता हु बस अकेला और तन्हा
हा है साथ ये चाँद और तारे भी फिर भी हु
इस कदर अकेला पर ये तो बताओ तुम की
एक सिर्फ तुम्हारे आने से गर चाँद गवाह बने
और ये तारे बने बाराती और तुम्हारी वो ख्वाहिश
हो पूरी जिसमे तुम देखना चाहती थी मुझे
दूल्हे के लिबास में तो फिर भी किन्यु और किसके 
लिए रुकी हो अब तक वंहा आ जाओ ना अब पास
ताकि तुम्हारी वो ख्वाहिश पूरी हो और मेरी तन्हाई 

Sunday, 29 April 2018

तितली और रूह

तितली और रूह
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मैं जब होती हु
तुम्हारे आलिंगन में
तो ये पुरवाई हवा
भी कंहा सिर्फ हवा
रहती है वो तो जैसे
मेरी साँस सी बन 
रगो में बहने लगती है
हर एक गुलो में
जैसे तुम्हारा चेहरा
दिखने लगता है
मन उड़ता है
कुछ यूँ ख़ुश हो की
जैसे इच्छाओं ने
पर लगा लिए हो
और रूह तो मानो
स्वक्छंद तितली का
रूप धर उड़ने लगती है
मैं जब होती हु
तम्हारे आलिंगन में ..

Saturday, 28 April 2018

मेरे यकीं को ना झुठलाना तुम

मेरे यकीं को ना झुठलाना तुम
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तुम सब जानती हो इसलिए
कि शायद तुम भी वो ही सब
जी रही हो जो मैं जी रहा हु
मन से मन का जुड़ाव
मेरा तुम्हारे प्रति स्नेह...
एक जैसा था है और रहेगा ..!!
जाने कैसा है तुम्हारा मेरे लिए
ये तुम ही जानती हो पर बस जैसा है
ऐसे ही रखना कुछ नहीं ज्यादा बस
मेरा अनकहा भी समझना
और मुझसे जो चाहो वो कहना...!
ये मेरा विस्वास है इसे ना कभी
भूल कर भी झुठलाना तुम
मेरे यकीं को यकीं ही रखना
की तुम मुझे मुझसे भी अच्छी
से समझती हो

कमी तो है मुझमे


कमी तो है मुझमे
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उससे मिलने के बाद मुझे 
अब यकीं सा होने लगा है ;
कोई ना कोई कमी तो है मुझमे
तभी तो आज भी जब मैं
उससे मिलता हु तब भी वो
कुछ उदास और खोयी-खोयी
सी नज़र आती है;
जो अक्सर कहते नहीं थकती
की जब तुम नहीं होते साथ मेरे
तो तुझे मैं हर एक शै: में ढूंढती हु
पहरों सोचती हु तुम्हारे बारे
आस लगाती हु तुमसे मिलने की
पर जब मैं उसके साथ होता हु
तो कुछ उदास और खोयी-खोयी
सी किन्यु नज़र आती है

Thursday, 26 April 2018

मेरे शब्द को अपने कंठ से लगाना


मेरे शब्द को अपने कंठ से लगाना
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जब लगे तुम्हे की दूर बहुत हैं...
राम  ....तो तुम मूंद अपनी 
आँखों को महसूसना उसकी नमी  
को और जो कुछ बुंदे लुढ़क आये
बाहर उसमे मुझे अपने सबसे 
नजदीक पाना यु ही सदा रहूँगा  
साथ तुम्हारे अपने भावों को 
भाषा में ढालते हुए मेरी कलम 
और तुम्हारी सियाही उकेर रही होगी 
सदा हमारा प्रेम तुम सिर्फ इतना करना 
की मेरे शब्द शब्द को अपने कंठ से लगाना 
और जो स्वर निकले तुम्हारे कंठ से 
उसमे सदा ही मुझे अपने सबसे 
नजदीक पाना यु ही सदा रहूँगा 
साथ तुम्हारे 

Wednesday, 25 April 2018

पूरनमासी की रात


पूरनमासी की रात

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सुनो किन्यु कहती हु 
मैं तुम्हे अपना चाँद
जब तुम होते हो साथ मेरे
वो रात जैसे पूरनमासी 
की रात होती है उस रात 
चांदनी होती है अपने
पुरे शबाब पर ठीक वैसे 
ही धड़कने चलती है मेरी 
अपनी तीब्रतम गति पर
जब तुम होते हो मेरे साथ 
मन तो जैसे हिरण की तरह
कुलाचें मारने लगता है 
दिल को जैसे बरसो की 
मांगी कोई मुराद मिल गयी हो 
मेरे हाथों में तुम्हारा हाथ 
मेरी सांसों में मिलती तुम्हारी सांसें 
मुस्कुराहटें भी जैसे अतिक्रमण 
करने को आतुर हो हाँठो से फ़ैल
कर गालों तक कब्ज़ा कर लेती है
इसलिए कहती हु मैं तुम्हे अपना चाँद
जब तुम होते हो साथ मेरे
वो रात जैसे पूरनमासी 
की रात होती है मेरे लिए        

Tuesday, 24 April 2018

ख्वाहिशो का एहसास



ख्वाहिशो का एहसास 

मेरे खुश होने के लिए
बस एक तुम्हारा यु 
मेरे पास होना काफी है ... 
तुम्हारा यु मेरे पास होना 
एहसास कई ख्वाहिशों  
के पूरा होने सा होता है .....
तुम्हारा यु मेरे पास होना
अमावस में भी जैसे चाँद 
के दिख जाने सा एहसास देता है ....
तुम्हारा यु मेरे पास होना
मेरे लबों को वजह दे जाता 
है यु बरबस ही मुस्कुराने का 
और तो और आँखों को मौका 
मिल जाता है बेवज़ह बोल उठने का ....
मेरे खुश होने के लिए कहा 
कुछ ज्यादा माँगा है मैंने 
जरुरत है बस एक तुम्हारा
यु मेरे पास होना  !  

Monday, 23 April 2018

मेरे हर दर्द को हर लेती है



मेरे हर दर्द को हर लेती है

अक्सर वो मेरे बालो में 
अंगुलिया फिराते फिराते
हर लेती है मेरे हर दर्द को  
एक शिशु की तरह सिमट 
जाता हु मैं उसी गोलाकार 
बाँहों में और छोड़ देता हु 
खुद को निढाल सा उसके हवाले   
उसकी जकड़न में कुछ देर बाद 
ख़त्म हो जाता है द्वेत का भाव 
दो होने का भाव गहरी सांसो के बीच
उठती गिरती धड़कने खामोश हो जाती है 
और मिलने लगती है आत्माए जैसे 
जन्म और जन्मो की प्यासी हो 
ऐसी ही पलो में साकार होता है 
स्वप्न जीने का तेरे लिए तेरे साथ

Sunday, 22 April 2018

अकेले तन्हा-तन्हा भीगना



अकेले तन्हा-तन्हा भीगना
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मुझे गर्व है की
मैंने अपना सारा
प्यार सिर्फ एक तुम
पर ही ख़त्म कर दिया
थोड़ा भी बचा कर
नही रखा मैंने
किन्यु तुम्हारे सिवा
कोई दूसरा विकल्प
पास अपने और मुझे
कंहा पता था
की इतनी शिद्दत
से चाहने के बाद भी 
ग़मों की बारिशें होती रहेंगी
यु ही और मुझे
तुम्हारे बिना भी
भीगना पड़ेगा
अकेले तन्हा-तन्हा 

Saturday, 21 April 2018

बिखर जाता हु मैं


बिखर जाता हु मैं
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अक्सर चाँद भी
थक कर छुप जाता है
तुम्हारे इंतज़ार में
लेकिन मैं जोड़ता
रहता हु एक के बाद
एक ख्वाब तुम्हारे
इंतज़ार में और
जोड़ते-जोड़ते ख्वाब
जब थक जाता हु
तो खुद ही बिखर
जाता हु कभी तो
ऐसा भी होता है
तुम्हारी आरज़ू में
खुद को उस तरह
छू बैठता हु जैसे
आत्मीय पलों में
तुम्हे छुआ करता हु
बस इसी उधेड़बुन में
रोज रात आती है
मेरे भी पास लेकिन
रूकती नहीं बस
मेरी मुट्ठी से
फिसल जाती है

Friday, 20 April 2018

चीर प्रतीक्षित चाहत

चीर प्रतीक्षित चाहत

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तुम्हे..नसीब हों
तुम्हारी चीर प्रतीक्षित चाहत
और मिले उसके सभी अंश भी ,
वो भी जो उसने समेटे है
सहेज रखे है अपने हृदयांचल में
और वो भी जो हो रहे हैं इकट्ठा
उसकी गठरी में हर रोज तुम्हारे
चले जाने के बाद भी  ..
उसे भी नसीब हो वो हंसी
जो उगने और पकने के लिए
तुम्हारा इंतज़ार करे जिए ऐसे
जैसे ये धरती करती है आसमा का
फिर दोनों हंसो खिलखिलाओ
ताकि पके उसके बीज की फसल
तुम्हारी कोख में अब

Thursday, 19 April 2018

सिन्दूर उतर रहा हो लहरों में



सिन्दूर उतर रहा हो लहरों में
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चाहता हु अब हर शाम
उतरना तुझमे कुछ इस तरह
जैसे दिन भर का तपता सूरज
शाम को उतरता है समंदर में
तब लहरें कुछ यूँ लगती हैं की 
जैसे उतर रहा हो उनका
सारा का सारा नमक और 
सूरज भर रहा हो उनमे
तन्मयता से अपना सारा
सिन्दूर ठीक वैसे ही चाहता हु 
तुम अपने लबों को जब रख कर
मेरे होंठों पर गुजरो मुझमे से तुम
तो यु लगे जैसे की मेरे
जिस्म से उतर कर मेरा
ही जिस्म चढ़ गया हो तुझ पर 
और मेरी रूह के पांव ना ठीके
धरती पर फिर बस


वो उड़ती रहे हवाओं में !

Wednesday, 18 April 2018

मेरी हार की वजह




मेरी हार की वजह
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जब भी तुम
मुझे मिलती हो
कहीं खोई-खोई सी
रहती हो
जैसे बूँदें
गिरती हैं
पत्तों पर
और फिसल
जाती हैं ठीक
वैसे ही मेरी
कही हर बात
तुम तक पहुंच कर
लौट आती है
मुझ तक और
मैं जीत के भी हार
जाता हूँ फिर एक बार
दर्द हारने का नहीं
है मुझे दर्द है
"वजह" का
तुम कैसे वजह
बन सकती हो
मेरी हार का

Monday, 16 April 2018

मेरी पलकों मे छुपे है मोती


मेरी पलकों मे छुपे है मोती
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तुम्हे सोचती हूँ ,
तो पाती हूँ तुम्हे
अपने ही आस पास,
तुम्हे जैसे ही छूने की
कोशिश करने लगती हूँ
तो टूट जाता है मेरा
एक और मधुर स्वप्न
ये जो मेरी पलकों में
अनगिनत मोती छुपे है
तुम्हारे इंतज़ार के
बस तेरी एक झलक के
तलबगार हैं और जो मेरे
लबों पर आने को बेताब है
बरसों से उस मुस्कराहट को
बस तेरे आने का इंतज़ार है
इतना कुछ जानकर भी
जो तुम हो दूर मुझसे
क्या उसे भी तुम्हारा
प्यार समझू या तुम्हारा
कोई खेल ये बतला दो 

Sunday, 15 April 2018

इंसानो ने चुप्पी साध ली है


इंसानो ने चुप्पी साध ली है
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भेड़ियों की बस्ती में
आज एक और बेटी ने
आज एक और बहन ने
आज एक और माँ ने
अपनी अस्मत खोई है
लगता है जैसे हमारे
शेरों ने कुत्तों की खाल
भेड़ियों की तादाद से
डर कर पहन ली है
और शेरनियां भी जैसे
भेड़ियों के डर से अपनी
मांद में आज दुबक कर सोई है
और तो और इन भेड़िओं के डर से
इंसानो ने भी चुप्पी साध ली है
पता नहीं और किस किस की
बेटियां को किस किस की
बहनो को किस किस की
माओं को अपनी अस्मत खोनी है

Saturday, 14 April 2018

दर्द की अलग पहचान

दर्द की अलग पहचान

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बारिश होती है
तो देर तक
पत्ते बूँद बूँद
रिश्ते रहते हैं
दर्द छुपाना
यु तो आसान
होता है बारिशों में
मगर दरख्तों ने
भी चु -चु कर
आसमान को छुआ है
इसी बारिश ने इसकी
जड़ों को  दी है
जीने की वजह …
इन्हे अच्छी तरह पता है
दर्द से भी एक
अलग पहचान 
मिलती है !!

Friday, 13 April 2018

तुम्हारे पास होने का एहसास

तुम्हारे पास होने का एहसास
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तुम आओ मेरे पास इतनी 
की मेरी गर्म सांसें 
तुम्हारे गालो से टकराकर 
तुम्हारे पास होने का 
तुम आओ मेरे पास इतनी 
की मेरी गर्म सांसें
एहसास दिला सके
तुम्हारे बदन की खुसबू 
मेरे सांसो में घुलकर 
तुम्हे पूर्णताक का घूंट पिला सके 
तुम्हारे बंद आँखों में 
तैरते सपने मेरे होंठो
का स्पर्श पाकर 
मन ही मन इतरा सके
तुम आओ मेरे पास इतनी 
की मेरी गर्म सांसें
तुम्हारे केशो में मेरी 
अंगुलिया फिसलती 
तुम्हे सकु के पल दिला सके
मेरी बाँहों के घेरे में लिपटा 
तुम्हारा ये कोमल तन 
मेरी सारी कायनात
को हिला सके 
तुम आओ मेरे पास इतनी 
की मेरी गर्म सांसें
तुम्हारे गालो से टकराकर 
तुम्हारे पास होने का 
एहसास दिला सके  

Thursday, 12 April 2018

उमीदों से भरा आसमां



उमीदों से भरा आसमां------------------------


तेरी यादों की पोटली को 
अपने गले में लटकाये 
अपने कुछ सपनो को मुठी में भर 
तन्हा आधी रात को अपनी 
छत की मुंडेर पर जा बैठता हु ,
लिए मन मे प्रेम के ढेरों सवाल
अपलक निहारना शुरू करता हु 
उम्मीद से भरे उस आसमां को  
और इंतज़ार करता रहा उसके जवाब का 
किन्तु वो मौन था खुद में समेटे सारे 
प्रश्नो के जवाब बस चाहता ये था की जवाब
वो दे सवाल जिसके लिए किये थे मैंने उससे 
मौन ऐसा छाया था जिसमे कोई ध्वनि 
सुनाई नहीं देती शून्य के सिवा कुछ नहीं था
व्याकुल मन मेरा हमेशा की तरह निराश हुआ 
और सहसा मेरे गालों को किसी ने छुआ 
ओह ये तो बारिश की बूंदे थीं मेरी नज़र एक बार 
फिर उठी उस उम्मीद से भरे आसमां की ओर.. 
इस बार आसमां के जवाब देने काली-काली 
बदरिया बड़ी व्याकुल हो उमड़ घुमड़ कर 
मेरे सारे सवालों का जवाब दे रही थी 
जैसे मेरे सारे सवालों का जवाब उसने 
बदरिया को पहले से दे रखे थे !

Wednesday, 11 April 2018

पीड़ाएँ सहकर संयम को पोषा है




पीड़ाएँ सहकर संयम को पोषा है
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सुख और सुकून की परिभाषा
तो वही बयां कर सकता है
जिसने दुःख को हृदयतल में
सहेजा हो बर्षो अपनी हथेलिओं
की उरमा से और बेकरारी के
साथ-साथ चल घुटनो पर
सीखा हो खड़े होना अपने ही 
पैरों पर या फिर बरसो अपने
कांधो को सूना रख इंतज़ार किया हो
किसी घने केशु से भरे सर का फिर
एक दिन अचानक वो सर उसके 
उस सुने कांधे पर आ टिके
और दोनों साथ ज़िंदगी बिताने के
खयाल बुनने लगे और हाथों में हाथ डाल
उरमाओं का करने लगे आदान प्रदान
सुख और सुकून की परिभाषा तो वही
बयां करता है सही मायने में जिसने
पीड़ाएँ खुद सह कर संयम को पोषा हो
अपने ही हृदय तल में  

Tuesday, 10 April 2018

टुकुर-टुकुर ताकता कोरा कागज़
























टुकुर-टुकुर ताकता कोरा कागज़
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तुम जब नहीं होती 
मेरे ख्यालों में तब
मेरी चारो तरफ एक 
खालीपन सा होता है 
 मौत की आँखों में
ऑंखें डाल कर बात 
करने का हौसला रखने 
वाला "राम" उस वक़्त
कोरे कागज़ से भी नज़र 
मिलाने में सकुचाता है 
जब कुछ लिखने बैठता है तो 
शब्द भी ठहरते नहीं कागज पर
और वो कोरा कागज़ जो 
हवा के एक झोंके के आगे 
अक्सर घुटने टेक देता है 
वो कागज़ का छोटा सा टुकड़ा   
टुकुर-टुकुर ताकने लगता है 
लगता है जैसे पूछ रहा हो 
क्या हुआ कलम के धनी
कहलाने वाले "राम" लिखो 
कुछ लिख कर दिखलाओ 
मुझ पर तब मानूंगा तुम्हे 
कलमकार आज जब वो नहीं है
तुम्हारी सोच में नहीं तो 
तुम यही मान लेना 
तुम्हारी कलम की सियाही 
वो है जो तुमसे अपना 
प्रेम लिखवाती है !

Monday, 9 April 2018

मेरी सुबह थोड़ी बौराई सी


मेरी सुबह थोड़ी बौराई सी
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मेरी सुबह थोड़ी अलसाई सी थोड़े नखरों से भरी
थोड़ी शर्मीली भी है थोड़ी नादान भी है और मुझसे
थोड़ी परेशान भी है मेरी सुबह जब गिरा लेती है
एक लट अपने उभरे ललाट पर तब उसे यकीन होता है
की यही लट है जो खींच लाएगी मुझे उसके पास
और होता भी ऐसा ही है पास आकर मैं जब
चूम लेता हूँ उसके नयनाभिराम मुखड़े को
तब मेरी सुबह कह देती है कुछ ऐसा जो
सही नहीं होता मेरी नज़र में और मै हो जाता हूँ
नाराज उससे तब हंस कर कहती है वो मुझसे
की नाराज होकर ही तो ज्यादा पास आने देता हूँ
मै उसे और मेरी सुबह हो जाती है थोड़ी बौराई सी
मेरे ख़्वाबों की अंगडाई सी जीवन धारा सी मेरी
जीवन की पुरवाई सी मेरी सुबह मेरी है मै उसका हूँ
उसके नाज मेरे हैं उसके नखरे मेरे हैं मेरा प्यार उसका है
और मेरा गुस्सा ये तो बस एक बहाना है ऐसे ही उसे
कसकर पकड़ लेने का अपनी बाहों में उसे भर लेने का
और कहने का धीरे से इस बार तो गले लगे है
अगली बार दो से तीन हूँ जायेंगे और वो हंस देती है
जानती है की ये बस बहाना है उसे गले लगाने का
जाने मुझे कितना समझती है मेरी सुबह
और सिमट जाती है मुझमे हर सुबह मेरी सुबह ,,,,,,,,,,,

Sunday, 8 April 2018

उर्वर आँखों की नीरवता




उर्वर आँखों की नीरवता
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जिन्दगी की भागमभाग में
अब तक भाग ही रहे हो तुम
समझ ही नहीं पाए कभी
मेरी उर्वर आँखों की नीरवता
में बसा जो स्नेह है तुम्हारे लिए
मेरे कोमल मन का प्यार है तुम्हारे लिए
मेरे स्पर्श की गर्मी है तुम्हारे लिए
मेरे अहसासों की नरमी है तुम्हारे लिए
कभी महसूस ही ना कर पाए तुम
उन फूलों की खुशबू जो दबे रह गए हैं
कहीं मेरे दिल के वर्क में वो तुम कभी 
जान ही नहीं पाए और उन अनकही
बातों के अद्भुत अर्थ को तुम कभी
जान ही नहीं पाए तभी तो अब तक खुद
को मेरे पास नहीं ला पाए हो तुम 
जिन्दगी की भागमभाग में
अब तक भाग ही रहे हो तुम
इस भागमभाग में क्या क्या खोया है तुमने
ये अब तक जान ही नहीं पाए हो तुम 

Saturday, 7 April 2018

मेरी आकंठ प्यास

मेरी आकंठ प्यास --------------------

तुम्हारे छूने भर से  
नदी बन तुम्हारे ही 
रग-रग में बहने को 
आतुर हो उठती हु ,
तुम बदले में रख 
देते हो कुछ खारी बूंदें,
मेरी शुष्क हथेलियों पर 
जो चमकती हैं तब तक 
मेरी इन हथेलिओं पर
जब तक तुम साथ होते हो ,
मेरे और तुम्हारे दूर जाते ही 
लुप्त हो जाती है 
ठीक उस तरह 
जैसे सूरज के अवसान पर 
मृगमरीचिका लुप्त हो जाती है, 
और तब मेरी आकंठ प्यास 
को तुम्हारी वो कुछ खारी-खारी 
बूंदें भी अमूल्य लगने लगती है 

Friday, 6 April 2018

एक हमसफ़र


एक हमसफ़र---------------

कब तक तुम यु ही 
दुनयावी दिखावे के लिए 
मेरी चाहतों की ग्रीवा 
को दबाये रखोगी 
कंही ऐसा ना हो की 
की भूलवश तुम्हारे 
हाथों के दवाब से मेरी 
वो चाहते दम तोड़ दे 
फिर ना कहना जब तुम्हारा 
ये निसकलंक यौवन मेरी   
चाहतों की मौत का वज़न 
उठाकर चलते हुए ज़िन्दगी 
की राह पर भटक कंही 
और पराश्रय ले ले  

Thursday, 5 April 2018

विरह की तड़प























विरह की तड़प
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गर चाहो समझना 
कभी विरह की तड़प 
को महसूसना तो  
देखना सूखे पत्तों की 
फड़फड़ाहट तुम्हे सुनाई देंगी 
उनकी बेचैनी वो सूखे पत्ते 
करहाते हुए कहते है 
अपने विरह की कहानी 
दर्द होता है सुनते ही 
उनकी कराहटें मन होता है 
उन्हें फिर से रोप दू उसी 
पेड़ में जंहा से अलग हुए 
होंगे वो और ये सोचते हुए
रुक जाता हु मैं भी एक जगह  
की कई बार मौसम भी 
ठहर जाता है भूलकर   
अपनी नियति और उस 
नियति से छेड़छाड़ गवारा 
ना होगा उसे शायद उसी 
तरह नहीं तड़पना चाहती  
मैं भी उन पत्तो की तरह 
तुमसे अलग होकर 

Wednesday, 4 April 2018

जाने कैसी तृप्ति है























                जाने कैसी तृप्ति है
                ---------------------
                इस मतलबी दुनिया
                में तुम एकमात्र
                आसक्ति हो मेरी
                कहने को तो मुझे
                सांस लेने की भी
                फुर्सत नहीं थी पहले
                जबसे तुम मिली हो
                खुशियां जंहा भी दिखती है
                समेट लेता हूँ और चाहता हु
                उन सबको तुम्हे सौंप देना
                पर मेरे तुम्हारे जीवन में
                आने के बाद भी तुम्हे
                अब तक फुर्सत ही नहीं मिली
                अब तक ठीक से मुझे
                समझने की जानने की
                फिर भी जाने कैसे
                अपनी कनखियों से
                देख मुझे प्राप्त करना
                चाहती हो तुम
                जाने कैसी तृप्ति है
                ये तुम्हारी जो देखने
                मात्रा से पूरी हो जाती है ...?
                                                          @srverma

Tuesday, 3 April 2018

तुम अक्सर सवाल करती हो..

तुम  अक्सर सवाल करती हो..
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क्यूँ सोचता हूँ मैं तुम्हे ?
जरा पास आओ ,
बताना है आज ,
क्यूँ सोचता हूँ तुम्हे...
तुम्हारी खनक भरी हंसी गूंजती है
हर वक़्त मेरे कानो में ..
इसलिए सोचता हूँ तुम्हे,
तुम्हारा अक्स मेरे दर-ओ-दिवार
पर उभर आता है,
इसलिए सोचता हूँ तुम्हे...
रात के अँधेरे में चाँद की चाँदनी
बनकर जब मेरे ख्यालों की
छत पर पायल पहन कर टहलती हो,
तब मज़बूर हो जाता हु तुम्हे सोचने के लिए ...
घने काले बादल जब घिर आते हैं ,
और उन बादलों से रिसकर बूंदों के
स्वरुप गिरती हो मुझ पर
तो भीगा-भीगा मैं ,
मज़बूर हो जाता हु तुम्हे सोचने के लिए ...
तब सोचता हूँ तुम्हे...
जब सुबह की पहली किरण मेरे सिरहाने तक आती है,
और तुम छू लेती हो गुनगुने अहसास की तरह,
तब सोचता हूँ तुम्हे...
और इतना कुछ घटित होने के बाद
भी खुद को तन्हा पाता हु तो
मज़बूर हो जाता हु तुम्हे सोचने के लिए ...

Monday, 2 April 2018

तुम क्यूँ इतना सोचते हो मुझे

 तुम क्यूँ इतना सोचते हो मुझे 

मैं नहीं सोचती तुम्हे इतना 
जितना तुम सोचते हो मुझे 
क्योंकि मुझे तो तुम हर घडी दिखाई देते हो...
और कभी कभी तो तुम्हे छू भी लेती हूँ,
जैसे हम छू सकते है हवाओं को 
ठीक उसी तरह मैं भी छू लेती हु तुम्हे  ....
कई बार तो भीग भी जाती हूँ, 
दूब पर पड़ी ओस की बूंदों की तरह ..
जब तुम बिलकुल करीब से गुजरते हो 
लेकिन तुम क्यूँ इतना सोचते हो मुझे...?
अच्छा बताओ मैं कैसे न सोचूं तुम्हे.....!!!
अधूरी मुलाकात छोड़ जाती हो...
आधी अधूरी बात छोड़ जाती हो...
और रह जाता हूँ सिर्फ मैं अकेला
जो कुछ भी होता है मेरे अंदर 
थोड़ा बहुत कुछ तुमसे वो भी 
जाते जाते निचोड़ स्वयं में 
प्रवाहित कर ले जाती हो तुम 
आधे अधूरे सपनों के साथ,
कुछ खामोश से ख्यालों के साथ, 
रात भर जागने के लिए,
तुम्हे सोचने के लिए,
सुबह के इंतज़ार में ...
तुम्हारी बातों के प्यार में...
रह जाता हूँ तन्हा ...
तुम्हे सोचने के लिए....
इसलिए इतना सोचता हु तुम्हे 

Sunday, 1 April 2018

कब के बिछुड़े हुए हम




कब के बिछुड़े हुए हम
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जो कहती नही थकती थी 
मेरे लिए मुश्किल होगा जीना...
तुम्हारे संवाद के बिना वो कई
दिनों से आयी नहीं है पास मेरे
तबियत थोड़ी सी नासाज़ जो हुई मेरी
मैंने तो प्रतिउत्तर में सिर्फ
इतना ही कहा था तुम्हारे
बिना बक-बक-करने वाला राम
बस थोड़ा उदास थोड़ा गम-सुम सा
रहेगा इंतज़ार में की कब तुम आओ
और मेरे दिन जलते हुए अलावा
की जगह सावन की फुहारों से भीगे
और जो रात सर्द बर्फ सी हुई कपकपा
रही होंगी वो रातें तुम्हारे आने से
रजाई में सिमट तुम्हारी नरम नरम
उष्मा से भर खुल कर सोयेगी और       
मेरे कंठ में सोती हुई स्वर कोकिला 
तुम्हारे प्रेम के गीत गा गा कर ज़माने
को बताएगी की कब के बिछुड़े हुए हम
आज कंहा आ के मिले मैंने जैसा कहा था
वैसे ही हु तुम्हारे इंतज़ार में आज   
   

प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !