Wednesday, 31 July 2019

वादों वाली शाम !


वो तुम्हारे किये गए वादों वाली शाम भी , 
कब की आकर खाली हाँथ लौट गई ; 

फिर उसके पीछे-पीछे सितारों वाली उजियारी ,
रात भी बिन गुनगुनाये ही भरे दिल से लौट गई ; 

फिर एक नयी आस वाली भोर आयी भी और , 
बिन कुछ बताये उनमुनि सी हो कर लौट गयी ; 

फिर एक नयी दोपहर भी आकर बैरंग ही लौट गयी ,
उसके ठीक पीछे पीछे तुम्हारे वादे वाली शाम आई ;

काफी देर इधर-उधर अकेली ही टहलती रही और , 
फिर थक कर अपने घुटनों में सर छुपाये ही बैठी रही ;

फिर काफी देर अकेले ढीठ की तरह वहीँ बैठी रही ;
फिर बे-मन से कुछ मन ही मन बड़बड़ाते हुए लौट गयी ;  

गर ना हो पता तो कर लो पता मुझे नहीं लगता अब ; 
वो शाम फिर कभी लौट कर आएगी तुम्हारे द्वार !   

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !