Thursday, 4 July 2019

बांहो के दरमियाँ !


बांहो के दरमियाँ !

एहसास में लिपटा 
वह सूखा सा फूल 
जो रखा सहेज कर 
वो मेरा आज तुम्हें 
दे जाना !

फटे से कागज़ पर 
लिखते रहना बस   
एक तेरा नाम और 
फिर उसे भी सहेज 
कर रख लेना !

कुछ ना कहने पर 
भी मेरे सामने आते 
ही तुम्हारे होंठो का
बेबस हो सुखना !

ना जाने क्यों वो सब  
फिर  सोचते हुए आज 
फिर तुमसे ये पूछने को 
मन कर रहा है

क्या प्रेम की तपीश 
एक दूसरे से दूर रहकर 
भी पनपती रहती है ?

अगर हां तो फिर
ये बताओ मुझे तुम
की एक-दूजे की बांहो 
के दरमियाँ क्या 
पनपता है ! 

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !