बांहो के दरमियाँ !
एहसास में लिपटा
वह सूखा सा फूल
जो रखा सहेज कर
वो मेरा आज तुम्हें
दे जाना !
फटे से कागज़ पर
लिखते रहना बस
एक तेरा नाम और
फिर उसे भी सहेज
कर रख लेना !
कुछ ना कहने पर
भी मेरे सामने आते
ही तुम्हारे होंठो का
बेबस हो सुखना !
ना जाने क्यों वो सब
फिर सोचते हुए आज
फिर तुमसे ये पूछने को
मन कर रहा है
क्या प्रेम की तपीश
एक दूसरे से दूर रहकर
भी पनपती रहती है ?
अगर हां तो फिर
ये बताओ मुझे तुम
की एक-दूजे की बांहो
के दरमियाँ क्या
पनपता है !
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