प्रेम !
प्रेम है
एक जंगली
जानवर सा
जो चुपके से
मन और तन
को दबोच लेता है ;
उम्मीदों की रौशनी
जलाता है ना चाहते
हुए भी उस से बचा
नहीं जा सकता !
प्रेम है
उस कमर तोड़
बुखार सा जो
सरसराता हुआ
रगों में दौड़ता है ;
और हर दवा हर
वर्जना को तोड़ता
हुआ घर कर लेता है ;
वो हमारे मन तन और
मस्तिष्क पर भी आखिर
कोई कैसे और कब तक
बच सकता है उस
प्रेम से !
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