Sunday 14 July 2019

प्रेम !


 प्रेम !

प्रेम है 
एक जंगली 
जानवर सा
जो चुपके से 
मन और तन 
को दबोच लेता है ;
उम्मीदों की रौशनी
जलाता है ना चाहते 
हुए भी उस से बचा
नहीं जा सकता !
प्रेम है
उस कमर तोड़
बुखार सा जो 
सरसराता हुआ
रगों में दौड़ता है ;
और हर दवा हर
वर्जना को तोड़ता 
हुआ घर कर लेता है ;
वो हमारे मन तन और 
मस्तिष्क पर भी आखिर 
कोई कैसे और कब तक 
बच सकता है उस 
प्रेम से !

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !