Tuesday, 9 July 2019

कविता !


कविता !

मैं प्रेमाग्नि में धधकती सी  
कविता लिखना चाहता हूँ

ताकि तुम्हारे सिवा जब कोई 
और उसे महसूस करे तो उसकी 
महसूसियत झुलस जाएँ,

मेरे लफ़्ज़ों के धधकते कोयले 
से उस आग को भभका कर
तुम्हारी समस्त मज़बूरियो को
मैं जला देना चाहता हूँ 

और बन जाना चाहता हूँ
इस ब्रह्मांड का धधकता 
हुआ एक आख़री लावा 

जो जले भी 
तो एक सिर्फ तेरे प्यार में
और बुझे भी तो एक 
सिर्फ तेरे प्यार में !

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !